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Hindi News पैसा बिज़नेस Economic Crisis: अमेरिका को मंदी से बचाने की कोशिशें भारत का करेंगी बंटाधार, पॉवेल की घोषणा ने बढ़ाई टेंशन

Economic Crisis: अमेरिका को मंदी से बचाने की कोशिशें भारत का करेंगी बंटाधार, पॉवेल की घोषणा ने बढ़ाई टेंशन

यूरोप में यूक्रेन और रूस के बीच लंबे खिंचते युद्ध ने भी कच्चे तेल को स्थाई रूप से 100 डॉलर के पार पहुंचा दिया है। महंगे क्रूड के आयात के कारण इसी सप्ताह भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 6 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है।

Economic Crisis- India TV Paisa Image Source : FILE Economic Crisis

Highlights

  • अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस साल दो बार ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर चुका है
  • अमेरिकी की इस कोशिश के कारण भारत जैसे विकासशील देशों में संकट बढ़ रहा है
  • चार दशकों में सबसे ऊंची मुद्रास्फीति से गुजर रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था

अमेरिका को मंदी और महंगाई से बचाने के लिए अमेरिकी कंेद्रीय बैंक एक्शन में है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस साल दो बार ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर चुका है। यूएस फेड की कोशिशों के कारण डॉलर मजबूत हो रहा है साथ ही दुनिया भर के निवेशक अमेरिका में पैसा लगाना अधिक सुरक्षित मान रहे हैं। अमेरिकी की इस कोशिश के कारण भारत जैसे विकासशील देशों में संकट बढ़ रहा है। भारत पहले ही गिरते रुपये से परेशान है वहीं फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने जा संकेत दिए हैं वे अमेरिका के लिए तो अच्छे हैं लेकिन भारत के लिए आपदा से कम नहंी है। 

फेडरल रिजर्व जारी रखेगा सख्ती 

मुद्रास्फीति के लगातार ऊंचे स्तर पर रहने से परेशान अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने शुक्रवार को अपना कड़ा मौद्रिक रुख आगे भी जारी रखने के स्पष्ट संकेत दिए। चार दशकों में सबसे ऊंची मुद्रास्फीति से गुजर रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिए फेडरल रिजर्व ने पिछले कुछ महीनों से नीतिगत ब्याज दर में बढ़ोतरी का रुख अपनाया हुआ है। 

ब्याज दरें बढ़ाने से जाएंगी नौकरियां

पॉवेल ने जैक्सन होल में आयोजित फेडरल रिजर्व की सालाना आर्थिक संगोष्ठि को संबोधित करते हुए कहा, ’फेडरल का कर्ज को लेकर सख्त रुख जारी रहने से परिवारों एवं कारोबारों को काफी तकलीफ होगी। कर्ज की दरें महंगी होने से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होगी और नौकरियों के जाने का भी खतरा होगा।’ उन्होंने कहा, ष्मुद्रास्फीति को नीचे लाने की यह दुर्भाग्यपूर्ण लागत है। लेकिन कीमतों में स्थिरता लाने में नाकाम रहना कहीं ज्यादा दर्दनाक होगा।’ 

दो बार में डेढ़ फीसदी बढ़ी ब्याज दरें

निवेशकों ने पिछले कुछ दिनों से फेडरल रिजर्व के रुख में नरमी आने की उम्मीद लगाई हुई थी लेकिन पॉवेल के इस संबोधन ने उनकी उम्मीदें तोड़ दी हैं। उन्होंने ऐसे संकेत दिए हैं कि ब्याज दरों में कमी करने का वक्त अभी नहीं आया है। फेडरल रिजर्व ने पिछले दो बार 0.75-0.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी नीतिगत दर में की है। यह 1980 के दशक के बाद फेडरल रिजर्व की सर्वाधिक तीव्र वृद्धि रही है।

भारत के लिए बढ़ेगा संकट 

अमेरिका की मजबूती भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। अमेरिका और यूरोप में मौजूदा महंगाई से भारत के लिए अमेरिकी सामान को आयात करना सस्ता नहीं रह गया है। उस पर भारतीय रुपये के कमजोर पड़ने से वस्तुओं और सेवाओं का आयात महंगा हो गया है। इसके अलावा यूरोप में यूक्रेन और रूस के बीच लंबे खिंचते युद्ध ने भी कच्चे तेल को स्थाई रूप से 100 डॉलर के पार पहुंचा दिया है। महंगे क्रूड के आयात के कारण इसी सप्ताह भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 6 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। 

आपकी जेब में एक और महंगाई का छेद 

रुपये की कमजोरी से सीधा असर आपकी जेब पर होगा। आवश्यक सामानों की कीमतों में तेजी के बीच रुपये की कमजोरी आपकी जेब को और छलनी करेगी। भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। अमेरिकी डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी। इसका सीधा असर हर जरूरत की चीज की महंगाई पर होगा। 

पेट्रोल डीजल सहित दूसरे आयातित प्रोडक्ट होंगे महंगे

डॉलर के मजबूत होने का सीधा असर हमारे आयात पर पड़ता है। भारत जिन वस्तुओं के आयात पर निर्भर है, वहां रुपये की गिरावट महंगाई ला सकती है। इसका असर कच्चे तेल के आयात पर भी पड़ेगा। दूसरी ओर भारत गैजेट्स और रत्नों का भी बड़ा आयातक है। ऐसे में रुपये में गिरावट का असर यहां पर भी देखने को मिल सकता है। 

मोबाइल लैपटॉप की कीमतों पर असर

भारत अधिकतर मोबाइल और अन्य गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता है। विदेश से आयात के लिए अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है। विदेशों से आयात होने के कारण अब इनकी कीमतें बढ़नी तय मानी जा रही है। भारत में अधिकतर मोबाइल की असेंबलिंग होती है। ऐसे में मेड इन इंडिया का दावा करने वाले गैजेट पर भी महंगे आयात की मार पड़ेगी। 

विदेश में पढ़ना महंगा 

इसका असर विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों पर रुपये की कमजोरी का खासा असर पड़ेगा। इसके चलते उनका खर्च बढ़ जाएगा। वे अपने साथ जो रुपये लेकर जाएंगे उसके बदले उन्हें कम डॉलर मिलेंगे। वहीं उन्हें चीजों के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके अलावा विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीयों को भी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा

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