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Hindi News पैसा बिज़नेस गोल्ड जूलरी की बिक्री FY2023-24 में जोरदार रहने की उम्मीद, खुदरा आभूषण विक्रेताओं की कमाई बढ़ी

गोल्ड जूलरी की बिक्री FY2023-24 में जोरदार रहने की उम्मीद, खुदरा आभूषण विक्रेताओं की कमाई बढ़ी

2023-24 की पहली छमाही में सोने की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर थीं, हालांकि एक साल पहले की समान अवधि की औसत कीमतों की तुलना में यह 14 प्रतिशत ज्यादा थीं।

कीमतों में बढ़ोतरी के चलते खुदरा आभूषण विक्रेताओं की इनकम बढ़ी।- India TV Paisa Image Source : FILE कीमतों में बढ़ोतरी के चलते खुदरा आभूषण विक्रेताओं की इनकम बढ़ी।

देश में सोने और दूसरी कीमती धातु के आभूषणों (जूलरी) की बिक्री रफ्तार में है। अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में जूलरी की बिक्री में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है। सोने की कीमतों में बढ़ोतरी के बीच रेटिंग एजेंसी इक्रा ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट में यह बात कही। भाषा की खबर के मुताबिक, वित्तीय वर्ष के दौरान घरेलू स्तर पर आभूषणों की बिक्री में मूल्य के लिहाज से बढ़ोतरी के पूर्वानुमान को 8-10 प्रतिशत से बढ़ाकर 10-12 प्रतिशत कर दिया है।

सोने की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के चलते बढ़ाया अनुमान

खबर के मुताबिक, इक्रा ने कहा कि मुख्य रूप से सोने की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के चलते उसने अपने अनुमान को बढ़ाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 की पहली छमाही में जूलरी की बिक्री सालाना आधार पर 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ने की उम्मीद है। एजेंसी ऐसा होने के पीछे अक्षय तृतीया के दौरान स्थिर मांग और सोने की ऊंची कीमतों को मानते हैं। हालांकि, इक्रा का अनुमान है कि महंगाई के बीच लगातार सुस्त ग्रामीण डिमांड के चलते चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में यह वृद्धि दर घटकर 6-8 प्रतिशत रह जाएगी।

आभूषण विक्रेताओं की इनकम में इजाफा

रिपोर्ट में कहा गया कि 2023-24 की पहली छमाही में सोने की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर थीं, हालांकि एक साल पहले की समान अवधि की औसत कीमतों की तुलना में यह 14 प्रतिशत ज्यादा थीं। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि मात्रा के लिहाज से धीमी बढ़ोतरी के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी के चलते खुदरा आभूषण विक्रेताओं की इनकम बढ़ी।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) का अनुमान है कि 2023 तक भारत की वार्षिक खपत 700-750 टन होगी। सितंबर तिमाही में भारत में सोने की मांग साल-दर-साल 10% बढ़कर 210 टन हो गई थी। इस मांग का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण भारत से आया, जो भारत की सालाना खपत का 60% है।

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