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Hindi News पैसा बिज़नेस रूस-यूक्रेन जंग से कच्चा तेल 8 साल में पहली बार 100 डॉलर के पार, भारत में लगेगा तगड़ा झटका

रूस-यूक्रेन जंग से कच्चा तेल 8 साल में पहली बार 100 डॉलर के पार, भारत में लगेगा तगड़ा झटका

बता दें कि रूस (Russia) दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चा तेल बेचता है।

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का औपचारिक ऐलान हो चुका है। इस खबर से वैश्विक बाजारों में हाहाकार मच गया है। भारतीय शेयर बाजार धराशाई हो चुके हैं। वहीं कच्चे तेल के मोर्चे पर बुरी खबर है। रूस के यूक्रेन के हमले की खबर आते ही कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया। 

बता दें कि रूस (Russia) दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चा तेल बेचता है। इसके अलावा, यूरोप को प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, जो इसकी आपूर्ति का लगभग 35% प्रदान करता है। ऐसे में युद्ध की घोषणा से इस क्षेत्र एनर्जी एक्सपोर्ट में व्यवधान की आशंका बढ़ गई है।

110 के पार जा सकते हैं तेल के दाम

पेट्रोलियम उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पेट्रोल एवं डीजल की खुदरा बिक्री दरें 82-83 डॉलर प्रति बैरल के कच्चे तेल भाव के अनुरूप हैं। ऐसे में 10 मार्च को चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद पेट्रोल एवं डीजल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर पड़ना लाजिमी है। अक्टूबर, 2021 के अंतिम सप्ताह में ब्रेंट क्रूड के भाव 86 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर होने के समय दिल्ली में पेट्रोल 110 रुपये और डीजल 98 रुपये प्रति लीटर के भाव पर बिक रहा था।

चुनाव तक ही राहत

नवंबर की शुरुआत में उत्पाद शुल्क में कटौती और राज्य सरकार के स्तर पर वैट में राहत देने के बाद पेट्रोल 95.41 रुपये प्रति लीटर और डीजल 86.67 रुपये प्रति लीटर के भाव पर आ गया। नवंबर की शुरुआत से ही ब्रेंट क्रूड के भाव में नरमी आनी शुरू हो गई थी और दिसंबर में यह 68.87 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया था। लेकिन नए साल की शुरुआत से ही इसके दाम बढ़ने लगे थे और फरवरी में ही यह 12 प्रतिशत से अधिक चढ़ चुका है। 

भड़केगी महंगाई 

रूस और यूक्रेन के बढ़ते तनाव के कारण वैश्विक नेताओं ने रूसी राष्ट्रपति की आलोचना की है। इससे तेल एवं गैस आपूर्ति के प्रभावित होने की आशंका पैदा हुई है। आपूर्ति चिंताओं के कारण कच्चे तेल की कीमत लगभग सात वर्ष के उच्चतम स्तर को छू गई, जिससे रुपये की धारणा प्रभावित हुई। वैश्विक मानक ब्रेंट कच्चे तेल का दाम 3.56 प्रतिशत की तेजी के साथ 100 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।

आपकी जेब में एक और महंगाई का छेद 

रुपये की कमजोरी से सीधा असर आपकी जेब पर होगा। आवश्यक सामानों की कीमतों में तेजी के बीच रुपये की कमजोरी आपकी जेब को और छलनी करेगी। भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। अमेरिकी डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी। इसका सीधा असर हर जरूरत की चीज की महंगाई पर होगा। 

रूस की वैश्विक तेल उत्पादन में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी 

रूस यूरोप में प्राकृतिक गैस का करीब एक-तिहाई उत्पादन करता है और वैश्विक तेल उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत है। यूरोपीय देशों को जाने वाली गैस पाइपलाइन यूक्रेन से होकर ही गुजरती है। हालांकि, भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी बहुत कम है। वर्ष 2021 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 43,400 बैरल तेल का आयात किया था जो उसके कुल तेल आयात का करीब एक प्रतिशत ही है। इसके अलावा रूस से भारत का कोयला आयात 18 लाख टन रहा जो कुल कोयला आयात का 1.3 प्रतिशत है।

भारत पर भी बुरा असर

भारत रूसी गैस कंपनी गैजप्रॉम से 25 लाख टन एलएनजी भी खरीदता है। इस तरह रूस से होने वाली आपूर्ति भारत के लिए अधिक चिंता का विषय नहीं है लेकिन कच्चे तेल की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतें उसकी मुश्किल जरूर बढ़ा सकती हैं। इसकी एक खास वजह यह भी है कि विधानसभा चुनावों के दौरान रिक़ॉर्ड 110 दिन से देश में ईंधन के दाम अपरिवर्तित बने हुए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम विपणन कंपनियों आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को दैनिक आधार पर पेट्रोल एवं डीजल की कीमतें तय करने का अधिकार सरकार ने दिया हुआ है। ये कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम से प्रभावित होती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में जारी विधानसभा चुनावों के दौरान पेट्रोल एवं डीजल के दाम स्थिर बने हुए हैं।

 

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