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Hindi News पैसा फायदे की खबर Chemical Formula: ये है पटाखे बनाने का तरीका, जानिए कैसे हर केमिकल से निकलती है अलग रोशनी और आवाज

Chemical Formula: ये है पटाखे बनाने का तरीका, जानिए कैसे हर केमिकल से निकलती है अलग रोशनी और आवाज

पटाखे जलाते वक्त आपके जहन में अक्सर आया होगा की कैसे बम में से इतनी आवाज आती है या फिर हवा में उड़ने वाले रॉकेट कैसे अलग-अलग रंगो की रोशनी देते हैं।

Chemical Formula: ये है पटाखे बनाने का तरीका, जानिए कैसे हर केमिकल से निकलती है अलग रोशनी और आवाज- India TV Paisa Chemical Formula: ये है पटाखे बनाने का तरीका, जानिए कैसे हर केमिकल से निकलती है अलग रोशनी और आवाज

नई दिल्‍ली। दिवाली पर पटाखे जलाते वक्त ये आपके जहन में अक्सर आया होगा की कैसे बम में से इतनी आवाज आती है या फिर हवा में उड़ने वाले रॉकेट कैसे अलग-अलग रंगो की रोशनी देते हैं। किसी भी पटाखे में रोशनी या आवाज के लिए अलग-अलग तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। केमिकल्स का मिश्रण ही रोशनी का रंग तय करते हैं। जिस पटाखे में से हरे रंग की रोशनी निकलती है उसमें बेरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल होता है। यह एक विस्फोटक पदार्थ होता है और इसे बारूद के साथ मिलाया जाता है। जब पटाखे में आग लगाई जाती है तो ये हरा रंग देता है।

Diwali Crackers

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पटाखे में लाल रंग की रोशनी के लिए सीजियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बारूद के साथ मिलाने पर पटाखे में से लाल रंग निकलता है। पीले रंग के लिए सोडियम नाइट्रेट को बारूद के साथ मिलाया जाता है। इसमें नाइट्रेट की मात्रा बढ़ाने पर मिश्रण का रंग गाढ़ा पीला हो जाता है। इसी वजह से जलाने पर इसमें से पीला रंग निकलता है। इसका इस्तेमाल अधिकांश पटाखों में किया जाता है। चकरी में इसका खासतौर पर ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

पटाखा फैक्टरी में बिजली के इस्तेमाल पर होती है पाबंदी

जिस जगह भी पटाखे की फैक्टरी लगाई जाती है वहां कुछ दिशा निर्देशों का पालन करना होता है। दिशा-निर्देश अनुसार फैक्टरी में बिजली का कनेक्शन नहीं दिया जाता, क्योंकि शॉर्ट सर्किट का खतरा होता है। बिजली कनेक्शन केवल दफ्तर तक ही होता है, जो फैक्टरी से दूर होता है। पटाखे बनाने वाली जगह दो तरफ से खुली होती है, ताकि पटाखे बनाते वक्त पर्याप्‍त रोशनी हो और दो तरफ से इसलिए खुला होता है, क्योंकि किसी भी हादसे के दौरान वहां काम कर रहे श्रमिकों का निकलना आसान हो। कई चरणों से गुजरने के बाद पटाखे बनते हैं। अलग-अलग चरण में पटाखे बनाने के पीछे का कारण यह है कि दुर्घटना के दौरान कारोबारी को कम से कम नुकसान हो।

शिवकाशी में सबसे ज्यादा पटाखे बनाए जाते हैं-

इसका मुख्य कारण मौसम है। पटाखे बनाने के लिए सूखे मौसम की जरूरत होती है। मौसम में नमी के कारण पटाखों में सीलन आ जाती है। शिवकाशी में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में दिवाली से पहले सूखा होता है। दिवाली तक उत्तर पूर्वी इलाकों में मानसून पहुंच जाता है, इस वक्त तक पटाखे पूरे देश में भेजे जा चुके होते हैं।
पटाखे होते हैं दो तरह के-
1. साउंड क्रैकर- ये पटाखे तेज धमाके की आवाज के साथ फूटते है। कागज और अन्य सामान के साथ पोटेशियम नाइट्रेट, एल्‍यूमिनियम पाउडर और सल्फर का इस्तेमाल किया जाता है।

2. एरियल क्रैकर- ये पटाखे ऊपर हवा में जाकर फूटते हैं, जैसे कि रॉकेट और स्काई शॉट्स। इनमें गन पाउडर डाला जाता है ताकि ये झटका लगते ही हवा में जाके फूट जाएं।

कैसे तय होता है पटाखा कितनी ऊपर जाएगा

गन पाउडर की मात्रा से पता लगाया जाता है कि रॉकेट कितनी ऊपर जाएगा। रॉकेट की लंबाई के मुताबिक गन पाउडर मिक्स किया जाता है। 6 इंच के रॉकेट के लिए 2 ग्राम गन पाउडर की जरूरत होती है। इसके बाद जितने साइज का रॉकेट तैयार करना हो, उसके मुताबिक गन पाउडर डाला जाता है। 2 ग्राम गन पाउडर को बारूद में मिलाया जाता है। मिश्रण को ठोस बनाकर रॉकेट में भरा जाता है। इसके बाद इसमें एक सुतली डाली जाती है। बारूद गन पाउडर  पर आग लगते ही झटका लगता है और रॉकेट ऊपर हवा में जाकर फट जाता है।

अनार में डलता है काला पाउडर

पटाखों के धुएं में तकरीबन 75 फीसदी पोटेशियम नाइट्रेट, 10 फीसदी सल्‍फर और 15 फीसदी कार्बन की मात्रा होती है। पटाखों में सोडियम, चारकोल, सल्फर, कॉपर, बैडमियम लेड, नाइट्रेट, जिंक नाइट्रेट, बेरियम नाइट्रेट, मैग्‍नीशियम , एल्यूमीनियम परक्‍लोरेट और काला पाउडर जैसे केमिकल्स का भी इस्तेमाल होता है। इनका इस्तेमाल अनार में होता है।

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