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Hindi News पैसा मेरा पैसा Health Policy: हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्ट करने के होते हैं ये नुकसान, सिर्फ कम प्रीमियम के चक्कर में न बदलें बीमा कंपनी

Health Policy: हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्ट करने के होते हैं ये नुकसान, सिर्फ कम प्रीमियम के चक्कर में न बदलें बीमा कंपनी

सरकार ने ग्राहकों को अपनी पॉलिसी किसी दूसरी कंपनी में पोर्ट करवाने या बदलने की सहूलियत भी दी है।

Health Insurance- India TV Paisa Image Source : FILE Health Insurance

Highlights

  • नई कंपनी पॉलिसी खरीदते वक्त आपको पहले से अधिक प्रीमियम देना पड़ सकता है
  • बीमारियों के प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज की श्रेणी में आने पर चार साल तक करना होगा इंतजार
  • पॉलिसी को पोर्ट करवाने पर आपको नो क्लेम बोनस गंवाना पड़ सकता है

Health Policy: कोरोना के बाद से हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर लोगों की रुचि काफी बढ़ी है। महंगे इलाज से सुरक्षा के लिए लोग अब हेल्थ इंश्योरेंस खरीद रहे हैं। देश में हेल्थ इंश्योरेंस की ओर लोगों के बढ़ते रुझान के चलते इस मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। साथ ही सरकार ने ग्राहकों को अपनी पॉलिसी किसी दूसरी कंपनी में पोर्ट करवाने या बदलने की सहूलियत भी दी है। ग्राहकों के पास विकल्प है कि कीमत और प्लान कवरेज के आधार पर बीमा कंपनी का चुनाव करें। लेकिन ग्राहक सिर्फ कीमत के आधार पर ही अपनी पॉलिसी पोर्ट करवा लेेते हैं। अक्सर यह उनके लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। इंडिया टीवी पैसा की टीम आपको इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्ट करवाने के संभावित नुकसान के बारे में बता रही है। 

क्यों जरूरी है हैल्थ पॉलिसी

आज के समय में जितनी तेजी से मेडिकल साइंस डेवलप हो रही है। उतनी तेजी से ही इलाज का खर्च भी बढ़ रहा है। इस पहाड़ जैसे मेडिकल खर्च को फांदने का सबसे आसान जरिया है हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी। यह पॉलिसी आकस्मिक बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती होने से जुड़े खर्च को कवर करती है। 

बढ़ सकता है प्रीमियम 

जब हम किसी पुरानी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को छोड़कर नई कंपनी के पास जाते हैं तो संभव है कि नई कंपनी आपका हेल्थ चेकअप करवाए। यहां हो सकता है कि पुरानी पॉलिसी लेने के बाद आपको कोई गंभीर बीमारी हुई हो। ऐसे में पॉलिसी पोर्ट करने के बाद हो सकता है कि आपकी मौजूदा बीमारी के मद्देनजर नई कंपनी पॉलिसी खरीदते वक्त आपसे अधिक प्रीमियम वसूले। 

प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज के लिए बढ़ेगा समय 

एक अन्य समस्या प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज का है। कोई पॉलिसीधारक जिसे पॉलिसी लेते समय कोई बीमारी नहीं थी, लेकिन बाद में उसे ब्लड प्रेशर या अन्य कोई बीमारी हो जाती है तो नई बीमा कंपनी, जिसके यहां पॉलिसीधारक अपनी पॉलिसी पोर्ट कराना चाहता है, ऐसी बीमारियों को प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज की श्रेणी में रखते हुए चार साल तक करवा सकती है इंतजार जबकि पुरानी कंपनी उसे प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज की श्रेणी में नहीं रखेगी।

गंवाना पड़ेगा नो क्लेम बोनस

पॉलिसी को पोर्ट करवाने पर सबसे बड़ा नुकसान नो क्लेम बोनस गंवाने का है। अगर किसी व्यक्ति का सम एश्योर्ड 5 लाख रुपये है। उसका नो क्लेम बोनस 50,000 रुपये का है तो नई कंपनी उस पॉलिसीधारक का सम एश्योर्ड 5.50 लाख रुपये रखते हुए तय करेगी प्रीमियम। इससे आपको एनसीबी का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाएगा। 

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