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Hindi News पैसा बिज़नेस Economic Survey 2019-20: 'भारत की जीडीपी वृद्धि दर पर उठाए जा रहे सवालों का कोई अर्थ नहीं है'

Economic Survey 2019-20: 'भारत की जीडीपी वृद्धि दर पर उठाए जा रहे सवालों का कोई अर्थ नहीं है'

सरकार ने संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा के जरिए देश की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान के तौर तरीके और इसके आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर चल रही बहस को विराम देने का प्रयास किया है। 

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नयी दिल्ली। सरकार ने संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा के जरिए देश की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान के तौर तरीके और इसके आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर चल रही बहस को विराम देने का प्रयास किया है। इसमें कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि के अनुमान को न तो बढ़ा-चढ़ाकर और न ही कमतर करके आंका गया है और आंकड़ों को लेकर जो चिंता जतायी जा रही है, वह अनुचित है।

उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने हाल में कहा था कि 2011-12 से 2016-17 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर को करीब 2.5 प्रतिशत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। इसका कारण जीडीपी आकलन के तौर-तरीकों में बदलाव है। अरविंद सुब्रमण्यम ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र में कहा था कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर इस अवधि में करीब 4.5 प्रतिशत वार्षिक रहनी चाहिए थी जबकि इसके 7 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान जताया गया ।

संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि देश की जीडीपी वृद्धि का स्तर कई महत्वपूर्ण नीतिगत पहल का संकेत देता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के आकार और सेहत का आईना है। इसमें कहा गया है, 'यह निवेश का बेहतरीन चालक है। इसीलिए यह महत्वपूर्ण है कि जीडीपी का आकलन जितना संभव, हो उतना सही तरीके से किया जाए।' समीक्षा में कहा गया है कि 2011 में आर्थिक वृद्धि आकलन के तरीकों में संशोधन को लेकर विद्वानों, नीति निर्माताओं और नागरिकों के बीच देश की जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को लेकर बहस और चर्चा खासकर हाल की नरमी को देखते हुए महत्वपूर्ण है। 

समीक्षा में इस विषय पर दिये गये एक अलग अध्याय में कहा गया है कि देश की जीडीपी वृद्धि के गलत अनुमान के बारे में कोई सबूत नहीं मिला है। आंकड़ों के विश्लेषण को लेकर सांख्यिकीय और अर्थमीतिय विश्लेषण काफी सावधानीपूर्वक किये गये लेकिन इसमें अनुमान में गड़बड़ी के कोई साक्ष्य नहीं पाये गये। इसमें कहा गया है कि पूरे देश के आंकड़ों की तुलना करने में भ्रमित वाले कारकों के कारण गलती की गुंजाइश रहती है। ऐसे में इस प्रकार के विश्लेषण को सावधानीपूर्वक किये जाने की जरूरत है ताकि विभिन्न कारकों के बीच सही तरीके से सह-संबंध स्थापित किये जा सके। समीक्षा के अनुसार जो मॉडल 2011 के बाद भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान में 2.77 प्रतिशत के गलत तरीके से अधिक अनुमान की बात करते हैं, वे नमूने में शामिल 95 देशों में 51 के मामले में जीडीपी वृद्धि का गलत अनुमान व्यक्त करते हैं। 

हालांकि जब मॉडल उन सभी कारकों को सही तरीके से ध्यान में रखकर अनुमान करता है जिन पर गौर नहीं किया गया है तथा इसके साथ विभिन्न देशों में जीडीपी वृद्धि की अलग-अलग प्रवृत्ति को ध्यान में रखता है, इन सभी 52 देशों (भारत समेत) की वृद्धि न तो अधिक होती है न ही कमतर होती है। इसमें कहा गया है, ‘‘निष्कर्ष यह है कि भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान को लेकर जो चिंता जतायी गयी है, वह निराधार है।’’ समीक्षा में यह भी कहा गया है कि देश के सांख्यिकीय बुनियादी ढांचे में निवेश करने की जरूरत को लेकर कोई संदेश नहीं है। इस संदर्भ में भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद की अध्यक्षता में आर्थिक सांख्यिकी पर 28 सदस्यीय समिति का गठन महत्वपूर्ण है।

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