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Hindi News Explainers बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला की कहानी, छल प्रपंच और सत्ता से जुड़ी खौफनाक दास्तां, जानें

बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला की कहानी, छल प्रपंच और सत्ता से जुड़ी खौफनाक दास्तां, जानें

मीर सैयद जाफ़र अली ख़ान मिर्ज़ा मुहम्मद सिराजुद्दौला जिन्हें बंगाल का आखिरी स्वतंत्र नवाब कहा जाता है। उनके सत्ता संभालने से लेकर हत्या तक की कहानी सुनकर आपको हैरानी होगी।

सिराजुद्दौला की कहानी- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO (PUBLIC DOMAIN) सिराजुद्दौला की कहानी

सिराजुद्दौला बंगाल के आखिरी स्वतंत्र नवाब, जिन्होंने 1756 में गद्दी संभाली और 1757 में प्लासी के युद्ध में अंग्रेज़ों से हार गए और उन्हें ऐसी मौत दी गई कि सुनकर रूह कांप जाएंगे। अंग्रेजों ने उनके ही सेनापति मीर जाफ़र के साथ मिलकर सिराजुद्दौला को धोखा दिया, जिससे उनके शासन का अंत हुआ और अंग्रेज़ों का बंगाल पर कब्जा हो गया। मिर्ज़ा मुहम्मद सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी ख़ान थे, जो बिहार के उप-राज्यपाल और बाद में बंगाल के नवाब बने। अलीवर्दी ख़ान के कोई पुत्र नहीं था और उन्होंने अपने नाती, सिराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और नाना की मौत के बाद सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने।

मौसी को कराया था नजरबंद

सिराजुद्दौला को नवाब बनाए जाने से उसकी मौसी घासेटी बेगम (मेहर-उन-निसा बेगम), मीर जाफर, जगत सेठ (मेहताब चंद) और शौकत जंग (सिराज के चचेरे भाई) में ईर्ष्या और दुश्मनी भड़क उठी। सिराज की मौसी घासेटी बेगम के पास अपार धन था, उसकी गंभीर विरोध की आशंका से, सिराजुद्दौला ने मोतीझील महल से उनकी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें नजरबंद कर दिया।

साजिश की शुरुआत

नवाब बनते ही सिराजुद्दोला ने उच्च सरकारी पद भी अपने चहेतों को दे दिया। मीर जाफर के स्थान पर मीर मदन को बख्शी को सेना का वेतनपाल नियुक्त किया गया और मोहनलाल को अपने दीवानखाने में दरबारी के पद पर प्रोमोशन दिया। इससे दरबारियों में फूट पड़ गई थी और सिराजुद्दोला को अपने ही दरबार के कुछ सदस्यों ने उन्हें हटाने की साजिश रची। ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के बाद अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ षड्यंत्र रचा और उसके दरबार में पहले से ही उसे हटाने की साजिश चल रही थी। 

अंग्रेजों के साथ मिलकर षड़्यंत्र रचने में मीर जाफर, राय दुर्लभ, यार लुतुफ खान और ओमीचंद (अमीर चंद), जगत सेठ , कृष्ण चंद्र और सेना के कई अधिकारी शामिल थे। मीर जाफर ने अंग्रेज अफसर क्लाइव के साथ मिलकर एक संधि की जिसके तहत सिराज के बाद उसे नवाब की गद्दी पर बैठाया जाता, बदले में उन्हें युद्ध के मैदान में अंग्रेजों का साथ देना था और कलकत्ता पर हमले के बदले में उन्हें भारी धनराशि देनी थी। 

धोखे से प्लासी का युद्ध हारे सिराजुद्दौला

मीर जाफ़र और सेठ चाहते थे कि अंग्रेज़ों और उनके बीच के समझौते को ओमीचंद से गुप्त रखा जाए, लेकिन जब उन्हें इस बारे में पता चला, तो उन्होंने धमकी दी कि अगर उनका हिस्सा तीन मिलियन रुपये  तक नहीं बढ़ाया गया तो वह षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर देंगे। ये सुनकर चतुर क्लाइव ने दो संधियां तैयार करवाईं, असली संधि सफ़ेद कागज़ पर, जिसमें ओमीचंद से कोई संबंध नहीं था तो दूसरी लाल कागज़ पर, बनवाई गई जिसमें ओमीचंद की शर्तें थीं, ताकि उन्हें धोखा दिया जा सके। इस धोखे के कारण, 23 जून 1757 को प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला हार गए।

प्लासी की लड़ाई हारने के बाद कहा जाता है कि सिराजुद्दौला एक ऊंट पर सवार हो कर भाग गए थे और मुर्शिदाबाद पहुंचे थे। सिराजुद्दौला आम आदमियों के कपड़े पहनकर भागे थे। उन्होंने अपनी पत्नी लुत्फ उन निसा और कुछ नजदीकी लोगों को ढंकी हुई गाड़ियों में बैठाया, जितना सोना-जवाहरात वो अपने साथ ले जा सकते थे, अपने साथ लिया और राजमहल छोड़ कर भाग गए।

अगले ही दिन चतुर रॉबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को एक नोट भिजवाया जिसमें लिखा था, ''मैं इस जीत पर आपको बधाई देता हूं। ये जीत मेरी नहीं आपकी है। मुझे उम्मीद है कि मुझे आपको नवाब घोषित करवा पाने का सम्मान मिलेगा।''

शव को हाथी पर लादकर घुमाया गया

मीर जाफर और उसके बेटे मीरान के आदेश पर मोहम्मदी बेग और उसके सहयोगियों ने सिराजुद्दौला की कटार और तलवार से काटकर हत्या कर दी। अगले दिन सिराजुद्दौला के क्षत-विक्षत शव को हाथी की पीठ पर लाद कर मुर्शिदाबाद की गलियों और बाजारों में घुमाया गया। सैयद गुलाम हुसैन खां इस बर्बरता का वर्णन करते हुए लिखते हैं, 'इस वीभत्स यात्रा के दौरान उस हाथी के महावत ने जानबूझकर हुसैन कुली खां के घर के आगे उस हाथी को रोका। क्योंकि सिराजुद्दौला ने दो साल पहले  हुसैन कुली खां की हत्या करवा दी थी। 

मीर जाफर और मीरान की क्रूरता

मीर जाफर और उसके बेटे मीरान की क्रूरता यहीं पर नहीं रुकी। कुछ दिनों बाद उसने अलीवर्दी खां के खानदान की सभी औरतों को भी मरवा दिया गया। 70 मासूम बेगमों को एक नाव में बैठा कर हुगली नदी के बीचो-बीच ले जाकर नाव डुबो दी गई। जो औरतें बचीं उन्हें जहर देकर मार दिया गया। इनमें से सिर्फ एक महिला की जान बख्श दी गई थी। वो महिला थीं, सिराजुद्दौला की पत्नी लुत्फ उन निसा। मिरान और उसके पिता मीर जाफर दोनों ने उनसे शादी करने का पैगाम भिजवाया। लेकिन लुत्फ उन निसा ने शादी को पैगाम को ये कहते हुए ठुकरा दिया, पहले हाथी की सवारी कर चुकी मैं अब गधे की सवारी नहीं करूंगी।