भारत के इन 4 प्राचीन मंदिरों में छिपे हैं कुछ अनसुने रहस्य, पढ़ें इनकी पौराणिक कथाएं

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    प्राचीन नंदा देवी मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित है। नंदा देवी मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। देवी की मूर्ति शिव मंदिर के डेवढ़ी में स्थित है। स्थानीय लोगों में नंदा देवी की बहुत अधिक मान्यता है। प्रतिवर्ष अल्मोड़ा में एक भव्य नंदा देवी मेला लगता है जो पिछले 400 सालों से लग रहा है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करे लिए पहुंचते हैं।

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    गीता की जन्मस्थली हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित है एक अक्षयवट वृक्ष जिसके बारे में मान्यता है कि इसी वृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान देकर पूरे संसार को जीवन जीने की कला सिखाई थी। मान्यता है कि ये अक्षयवट वृक्ष महाभारत काल का है। वैसे तो देशभर से श्रद्धालु इस पेड़ के दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन गीता जयंती पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है। इससे कुछ ही दूरी पर ब्रह्मसरोवर है। यहां स्नान करने की बड़ी मान्यता है।

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    रंगजी मंदिर पवित्र वृंदावन धाम में स्थित है। यह मंदिर वैसे तो पूरी तरह से दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है परंतु इसमें बने सात दरवाजों में से 2 द्वारा राजस्थानी शैली में बने हुए हैं। मुख्य रूप से ये मंदिर भगवान रंगनाथ जी को समर्पित है। मंदिर में भगवान पद्मनाभ का मंदिर के साथ ही राम दरबार, नरसिंह, वेणुगोपाल और रामानुजाचार्य जी के मंदिर भी स्थित हैं। मंदिर में एक सोने का खम्बा स्थापित है, और मंदिर की दीवार के हर कोने पर सोने के कलश लगाए गए हैं। मंदिर के पीछे एक पुरातन कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब गज को मगरमच्छ ने इस कुंड के किनारे पकड़ा तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से मगर का संहार कर गज को छुड़ाया था।

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    छत्तीसगढ़ के जांजगीर नामक स्थान पर स्थित इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में जाज्वल्य देव प्रथम ने करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य शैली के अनुसार बनाया गया है जो पूर्वाभिमुखी है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की गरुण के आसन पर विराजमान विग्रह स्थापित हैं। एक विशाल चबूतरे पर बना ये मंदिर अधूरा माना जाता है। बताया जाता है कि इस मदिर का शीर्ष भाग मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर रखा हुआ है। लोग दूर दूर से यहां भगवान विष्णु के इस अदभुत रूप के दर्शन करने आते हैं।