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दिल्ली: दयाल सिंह इवनिंग कॉलेज का नाम अब 'वंदे मातरम महाविद्यालय'

दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज (सांध्य) ने अपना नाम बदलकर वंदे मातरम महाविद्यालय रखने का निर्णय लिया है

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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज (सांध्य) ने अपना नाम बदलकर वंदे मातरम महाविद्यालय रखने का निर्णय लिया है। पिछले कई महीनों से यह दिन में चलने वाले कॉलेज की तरह कार्य कर रहा था। दयाल सिंह कॉलेज के शासी निकाय के अध्यक्ष अमिताभ सिन्हा ने शनिवार को कहा कि यह फैसला भ्रांति दूर करने के लिए लिया गया है।

कॉलेज का नाम बदलने के लिए एक अधिसूचना 17 नवंबर को जारी की गई थी और इसे मंजूरी के लिए कुलपति के पास भेज दिया गया है। कांग्रेस पार्टी की छात्र शाखा एनएसयूआई ने शासी निकाय के इस फैसले पर सवाल उठाया और शासी निकाय पर पंजाब के पहले स्वतंत्रता सेनानी सरदार दयाल सिंह मजीठिया की 'विरासत को अपमानित' करने का आरोप लगाया।

सिन्हा ने बताया, "दयाल सिंह कॉलेज में दो कॉलेज थे, एक दिवाकालीन और दूसरा सांध्य। सांध्य कॉलेज के छात्रों को दोयम दर्जे का समझा जाता है। वे नौकरियों की तलाश में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं। यही कारण है कि शासी निकाय ने इसे एक दिवाकालीन कॉलेज में बदल दिया।"

उन्होंने कहा, "दिवाकालीन कॉलेज में परिवर्तित होने के बाद नाम को लेकर छात्रों के मन में भ्रम को दूर करने के लिए कॉलेज का नाम बदलने का फैसला लिया गया है।" सिन्हा ने कहा कि उन्होंने स्वयं 'वंदे मातरम' नाम का प्रस्ताव रखा था, जिसे शासी निकाय द्वारा अपनाया गया। उन्होंने कहा, "शासी निकाय के सदस्यों ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि इससे बेहतर नाम नहीं हो सकता।"

इस मुद्दे पर एनएसयूआई द्वारा सवाल उठाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, "मुझे इस विवाद की परवाह नहीं है। आप हर समय सभी लोगों को खुश नहीं कर सकते।" उन्होंने कहा कि किसी को भी वंदे मातरम नाम पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह हम सबकी मां के साथ जुड़ा शब्द है।

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कार्यकारी परिषद (ईसी) ने जुलाई में दिवाकालीन कॉलेज के फैकल्टी के विरोध के बावजूद दयाल सिंह (सांध्य) कॉलेज को दिवाकालीन कॉलेज में परिवर्तित होने के लिए मंजूरी दे दी थी।

सांध्य कॉलेज ने 20 जुलाई से पहले वर्ष के छात्रों के लिए कक्षाएं सुबह आयोजित करना शुरू भी कर दिया था। यह कक्षाएं तब तक ऐसी ही चलती रहेंगी, जब तक वह पूरे तरीके से दिवाकालीन कॉलेज के रूप में संचालित करने में सक्षम नहीं हो जाते।

मूल दिवाकालीन कॉलेज के छात्रों और शिक्षकों ने खाली जगह के विवाद का हवाला देते हुए इस फैसले का विरोध किया, जिसमें विलय का आयोजन होना है।

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