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Hindi News भारत राष्ट्रीय विभाजन के बाद आए भारत, दो दशक से खिला रहे हैं लंगर, पद्मश्री के लिए चुने जाने पर बोले- बढ़ गई जिम्मेदारी

विभाजन के बाद आए भारत, दो दशक से खिला रहे हैं लंगर, पद्मश्री के लिए चुने जाने पर बोले- बढ़ गई जिम्मेदारी

आहूजा 12 साल की उम्र में विभाजन के बाद भारत आ गए थे। उन्होंने 1980 के दशक में शहर के कुछ हिस्सों में 'लंगर' (सामुदायिक रसोई) का आयोजन शुरू किया था।

Langar Baba- India TV Hindi Image Source : TWITTER Langar baba

चंडीगढ़। ‘लंगर बाबा’ के नाम से मशहूर जगदीश लाल आहूजा (85) ने देश के चौथे सर्वोच्‍च नागरिक सम्मान पद्मश्री के लिए चुने जाने पर कहा कि इससे उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। उन्होंने गरीब लोगों को खाना खिलाना जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई। ‘लंगर बाबा’ स्वास्थ्य संस्थानों के सामने गरीब मरीजों और उनके परिचारकों (अटेंडेंट) को खाना खिलाते है। 

आहूजा ने अपनी संपत्ति बेचकर धन जुटाया था और गरीबों को खाना खिलाने का संकल्प लिया था। आहूजा पिछले छह साल से गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जीएमसीएच) के सामने और दो दशक से अधिक समय से पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के बाहर गरीब मरीजों और उनके परिचारकों को मुफ्त भोजन परोस रहे हैं। उन्होंने मीडिया से कहा, ‘‘अब मेरे कंधों पर और अधिक जिम्मेदारी आ गई है।’’ 

Image Source : TwitterJagdish Lal Ahuja

आहूजा 12 साल की उम्र में विभाजन के बाद भारत आ गए थे। उन्होंने 1980 के दशक में शहर के कुछ हिस्सों में 'लंगर' (सामुदायिक रसोई) का आयोजन शुरू किया था। बाद में उन्होंने 2001 में अपनी सेवाएं पीजीआईएमईआर में देना शुरू कर दी। जब आहूजा की गाड़ी दाल, चपाती, चावल और अन्य खाद्य पदार्थ लेकर आती है तो पीजीआईएमईआर और जीएमसीएच के बाहर लंबी कतार देखने को मिलती है। भोजन के अलावा, वह कपड़े और कंबल देकर भी गरीब लोगों की मदद करते हैं।

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