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प्रणब मुखर्जी: राष्ट्रपति भवन में छोड़ जायेंगे यादों का खजाना

दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी एक अनकही प्रगाढ़ता साझा करते हैं सिर्फ लाक्षणिकता के लिये ही नहीं वास्तविक रूप में। कहा जाता है कि यह मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव सा था कि कोई बाहरी उनसे वह जानकारी निकलवा सके जिसका व

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नई दिल्ली: दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी एक अनकही प्रगाढ़ता साझा करते हैं सिर्फ लाक्षणिकता के लिये ही नहीं वास्तविक रूप में। कहा जाता है कि यह मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव सा था कि कोई बाहरी उनसे वह जानकारी निकलवा सके जिसका वे खुलासा नहीं करना चाहते।

पत्रकार और राष्ट्रपति के लंबे समय से मित्र रहे जयंत घोषाल 1985 से उन्हें जानते हैं और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बीच अटूट विश्वास को याद करते हुए कहते हैं, यहां तक कि श्रीमती गांधी भी कहती थीं, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितनी शिद्दत से कोशिश करता है, वह प्रणब के मुंह से कभी एक शब्द बाहर नहीं निकलवा सकता। वे सिर्फ प्रणब की पाइप से आता हुआ धुंआ देख सकते हैं।

भारत के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर वह कल अपने उत्तराधिकारी राम नाथ कोविंद के लिये राष्ट्रपति भवन छोड़ेंगे। इस मौके पर पुराने दोस्त उनके लंबे राजनीतिक जीवन कई अहम पड़ावों को बेहद चाव से याद करते हैं। कहा जाता है कि धूम्रपान छोड़ने के बाद भी मुखर्जी का अपनी पाइप के प्रति लगाव कम नहीं हुआ।

घोषाल ने बताया, उन्होंने कभी सिगरेट नहीं पी, सिर्फ पाइप। स्वास्थ्य कारणों से जब उनसे धूम्रपान छोड़ने के लिये कहा गया, तो उसके बाद से वह धूम्रपान भले ही न करें लेकिन बिना किसी निकोटिन के अपने मुंह में पाइप रखते थे, और उसे चबाते रहते थे ताकि उसे महसूस कर सकें।

विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी हस्तियों द्वारा तोहफे में प्रणब दा को 500 से ज्यादा पाइप मिली थीं और उन्होंने यह पूरा संग्रह राष्ट्रपति भवन संग्रहालय को दान दे दिया। घोषाल कहते हैं कि उनका पहला पाइप उन्हें असम के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता देबकांत बरूआ ने दिया था। पत्रकार ने कहा कि वह पहली बार 1985 में प्रणब से दक्षिण कलकाा के सदर्न एवेन्यू स्थित उनके घर पर मिले थे। उस वक्त घोषाल बांग्ला दैनिक बर्तमान में जूनियर रिपोर्टर थे।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिवराज पाटिल ने लंबे समय तक अपने सहयोगी रहे मुखर्जी को एक ऐसा शख्स बताया जो देश की राजनीति और अर्थशास्त्र को श्रेष्ठ संभव तरीके से जानता है। उन्होंने कहा, वह संसद में सबसे वरिष्ठ सदस्यों में से एक रहे और यह बेहद अच्छी तरह जानते थे कि किस तरीके से एक मंत्री को आचरण करना चाहिये। वह जानते थे कि बिना सरकार के लिये परेशानी खड़ी किये संविधान की सुरक्षा कैसे करनी है।

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