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Hindi News भारत राष्ट्रीय ग्रामीण भारत: ‘सृजन’ से गरीब महिलाओं ने कपड़ों पर लिखी नई इबारत

ग्रामीण भारत: ‘सृजन’ से गरीब महिलाओं ने कपड़ों पर लिखी नई इबारत

गुजरात के कच्छ के सुदूर इलाकों में रहने वाली महिलाओं की जिंदगी बदल गई है। जिन महिलाओं ने कभी शहर नहीं देखा उनका काम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है।

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कच्छ: गुजरात के कच्छ के सुदूर इलाकों में रहने वाली महिलाओं की जिंदगी बदल गई है। जिन महिलाओं ने कभी शहर नहीं देखा उनका काम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है। ‘सृजन’ नाम की इस संस्था ने कच्छ के गांव की गरीब महिलाओं द्वारा बनाए गए कपड़ों को पूरी दुनिया में पहुंचाया। कपड़ों पर की गई इन महिलाओं की कारीगरी के लाखों कायल हैं। इससे इनकी कमाई बढ़ी, जीवनस्तर सुधरा और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई शुरू हुई।

‘सृजन’ ने दिया कारीगरी दिखाने का मौका
कच्छ गांव की महिलाएं परंपरा की तरह कढ़ाई का काम करती आई हैं। अब इसका कमर्शियल इस्तेमाल हो रहा है। अब ‘सृजन’ नाम की संस्था उनके बनाए कपड़ों की प्रदर्शनी लगाती है, फैशनवीक में मॉडल्स कच्छ की महिलाओं के कपड़े पहन कर रैंप वाक करती हैं। ये महिलाएं तरह-तरह की साड़ियों और दूसरे कपड़ों के साथ-साथ बेल्ट, बैग और वाल हैंगिंग्स जैसी 15 से ज्यादा अलग-अलग आइटम्स पर हाथों से कढ़ाई करती हैं। इनके बनाए सामान को ग्राहकों तक पहुंचाने का काम ‘सृजन’ संस्था करती है। इन महिलाओं के काम को कितनी प्रसिद्धि मिली है इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि जस्सी बेन नाम की एक महिला को उसकी कारीगरी के लिए यूनेस्को भी सम्मानित कर चुका है।

घर से ही काम करती हैं महिलाएं
इन महिलाओं को काम करने के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। ‘सृजन’ की प्रॉडक्शन टीम इनके दरवाजे तक जाती है उन्हें कपड़े, धागे और डिजाइन देती है। उसके बाद महिलाएं बताए गए डिजाइन के हिसाब से हाथों से कढ़ाई बनाती हैं। बताया जाता है कि कभी-कभी एक साड़ी तैयार करने में एक साल तक का वक्त लग जाता है। ‘सृजन’ से जुड़ने पर महिलाओं की आमदनी तो बढ़ी ही है, उन्हें अपने स्किल को और बेहतर बनाने का भी मौका मिलता है। ‘सृजन’ की शुरुआत चंदाबेन श्रॉफ ने की थी। उन्हें यह आइडिया लगभग 48 साल पहले आया था। उस समय कच्छ में भयंकर सूखा पड़ा था और चंदाबेन वहां रिलीफ प्रोजेक्ट के लिए गई थीं। वहीं उन्होंने महिलाओं के हाथ का काम देखा, और उसी वक्त गांव की महिलाओं के इस हुनर को पूरी दुनिया में पहुंचाने का फैसला कर लिया।

यहां तक पहुंचा सफर
1969 में ही चंदाबेन श्रॉफ ने मुंबई में गांव की इन महिलाओं के बनाए कपड़ों की एग्जिबिशन लगाई। एग्जिबिशन चल निकला और इससे हुई कमाई को उन्होंने रॉ मैटिरियल खरीदने में खर्च किया। फिर उन्हीं महिलाओं के साथ इस काम को कमर्शियल लेवल पर शुरु किया। 48 साल पहले 30 महिलाओं से ये काम शुरू हुआ था और आज कच्छ के लगभग 100 गांवों की 3,500 से ज्यादा महिलाएं इस प्रॉजेक्ट के साथ जुड़ी हैं। आज इस संस्था का टर्नओवर करीब 5 करोड़ रुपयों का है। ‘सृजन’ ने अब इन महिलाओं के साथ मिलकर आसपास के इलाके की 20 हजार से ज्यादा लड़कियों को कढ़ाई की ट्रेनिंग भी दी है। चंदाबेन श्रॉफ ने कच्छ की परंपरागत कढ़ाई के काम को नई जिंदगी दी है और वहां के लोगों की इनकम को बढ़ाने में मदद की है। उनकी इन्हीं कोशिशों के लिए 2006 में उन्हें रॉलेक्स अवार्ड दिया गया, जिसे पाने वाली वह पहली भारतीय महिला बनीं थीं।

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