न चलाई गोली, न बहाया खून: मुंबई के पहले डॉन की अनोखी कहानी
हाजी मस्तान को मुंबई का पहला डॉन माना जाता है। मस्तान ने बिना गोली चलाए अपनी बादशाहत कायम की और अपनी शख्सियत से अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड दोनों को प्रभावित किया।

बॉलीवुड की चमकती दुनिया में कुछ सितारों की आंखें इतनी गहरी होती हैं, जो स्क्रीन को भेदकर दिलों में उतर जाती हैं। अमिताभ बच्चन की ‘दीवार’ में वो तीखी नजरें, जो गुस्से और बेपरवाही का तूफान लिए थीं, या 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' में अजय देवगन का वो ठहरा हुआ अंदाज, जो सामने वाले को एक पल में अपना दीवाना बना दे, ये कोई मामूली बात नहीं थी। ये नजरें, ये अदा, ये रुतबा, किसी स्क्रिप्ट से नहीं, बल्कि एक असल जिंदगी के किरदार से उधार ली गई थीं। एक गैंगस्टर, जिसने न गोली चलाई, न खून बहाया, लेकिन अपने अंदाज से मुंबई को अपने कदमों में झुका लिया। ये कहानी है एक ऐसे शख्स की, जिसने अपराध को शराफत का जामा पहनाया और बॉलीवुड के हीरोज को एक नया स्टाइल दिया। उस किरदार का नाम था हाजी मस्तान मिर्जा उर्फ़ सुल्तान मिर्ज़ा।
मस्तान से सुल्तान तक का सफर
1 मार्च 1926 को तमिलनाडु के कुडलोर में जन्मा मस्तान एक गरीब किसान का बेटा था। घर में पैसे नहीं थे, रोटी तक नसीब नहीं थी। और जब भूख ने पेट का दरवाजा खटखटाया, तो मस्तान का परिवार मुंबई की ओर चल पड़ा। सपनों का एक हसीन शहर, जहां चमक-दमक और गरीबी एक साथ सांस लेती थी। उस वक़्त मुंबई को लोग बंबई के नाम से जानते थे। बंबई के क्रॉफर्ड मार्केट के पास बंगाली टोला में मस्तान के पिता ने साइकिल पंचर की एक छोटी सी दुकान खोली। मस्तान वहीं बैठा, शहर की रंग-बिरंगी जिंदगी को देखता और सोचता की 'क्या उसका कैनवास हमेशा खाली रहेगा?'
बंबई में धीरे-धीरे दस साल बीत गए। और उस वक़्त भारत छोड़ो आंदोलन भी अपने चरम पर था, छोटे से लेकर बड़े बिजनेस सब फल-फूल रहे थे, लेकिन मस्तान की जिंदगी फिर भी खाली और सादी थी। तभी अचानक उसकी मुलाकात गालिब शेख से होती है। गालिब को एक चतुर लड़के की जरूरत थी, जो बंबई के डॉक पर कुली बनकर होशियारी से सामान की तस्करी कर सके। ये वो दौर था जब अंग्रेज भारत का खजाना लूट रहे थे, और तस्करी एक तरीके की बगावत थी। मस्तान ने ये मौका तुरंत लपक लिया। उसने अपना मक़सद ढूंढ लिया था। उस समय हमारे देश भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, महंगी घड़ियां और गहने तस्करी का बड़ा कारोबार था। अंग्रज़ों द्वारा थोपे जा रहे महंगे टैक्स से बचने के लिए लोग तस्करी का रास्ता चुनते। और मस्तान ने फिर धीरे-धीरे तस्करी के इस खेल का बादशाह बन गया। और ठीक 12 साल बाद उसकी मुलाकात गुजरात के एक तस्कर सुकुर नारायण बखिया से हुई। दोनों की जोड़ी खूब जमी। फिलिप्स के ट्रांजिस्टर, घड़ियां, रेडियो ये सब तब की शादियों में दहेज में खूब दिए जाते थे। मस्तान की कमाई अब आसमान छूने लगी। एक वक़्त का कुली मस्तान अब मस्तान भाई बन चुका था।
मस्तान का गज़ब अंदाज: 'अपराध में भी शराफत'
मस्तान कुछ अलग था। न वरदराजन मुदलियार, न दावूद, न कोई और किसी में वो बात नहीं थी। मस्तान सिर्फ एक तस्कर नहीं था, उसकी अदा औरों से जुदा थी। उसके बात करने का स्टाइल, नजरें दूसरी ओर करके बोलने का वो अंदाज, इंसान को परखने की कला, और सबसे बड़ी बात, वो नैतिकता, जो उसने क्राइम में भी बरती। न छिछोरापन, न कत्ल, न बेकार की हिंसा। मस्तान जानता था कि उसकी ताकत उसकी इमेज है। और यही वजह थी की धीरे-धीरे बंबई उसकी अदा पर फ़िदा हो चुकी थी। 1970 तक मस्तान हाजी मस्तान बन चुका था। वो हज पर भी गया, और अब वो कुलीगिरी नहीं, बल्कि रसूख की सैर करता था। सफ़ेद डिजाइनर सूट, महंगी गाड़ियां, मुंह में सिगार, और समंदर किनारे की बालकनी से जहाजों को निहारने का वो अंदाज, ये मस्तान का स्टाइल था। बॉलीवुड, जो उस वक्त जवान हो रहा था, मस्तान के इस अंदाज का दीवाना हो गया था।
बॉलीवुड और मस्तान का अनोखा रिश्ता
बॉलीवुड मस्तान की माशूका बन चुकी थी। कहते हैं, वो मधुबाला पर फ़िदा हो था। दोनों में अच्छी दोस्ती थी, पर कभी रिश्ता नहीं बन सका। इसलिए बाद में मस्तान ने मधुबाला जैसी ही दिखने वाली एक एक्ट्रेस सोना से शादी कर ली। सोना की फिल्मों के लिए उसने खूब पैसा लगाया, पर कामयाबी न मिली। दिलीप कुमार, राज कपूर, धर्मेंद्र, फिरोज खान, इन बॉलीवुड के दिग्गजों से मस्तान की यारी के किस्से बंबई की गलियों में गूंजते थे। उसका रसूख कुछ ऐसा था कि उसके कामों को ही लोग एक अलिखित कानून मानने लगे थे। मस्तान का अपराध एक सिस्टम बन गया था।
राजनीति का नया मस्तान
1975 में इमरजेंसी ने देश को झकझोर कर रख दिया। मस्तान को भी जेल जाना पड़ा। लेकिन वहां भी उसका रुतबा कायम रहा। अफसरों को महंगे तोहफे, वीआईपी ट्रीटमेंट, मस्तान का स्वैग ही अलग था। लेकिन एक दिन अचानक जेल में उसकी मुलाकात होती है जयप्रकाश नारायण से। जेपी की सादगी और विचारों ने मस्तान को हिलाकर रख दिया। 18 महीने बाद जब वो बाहर आया, तो उसने अपराध की दुनिया को अलविदा कह दिया। कहते हैं, उसने इंदिरा गांधी को रिहाई के लिए पैसे की पेशकश की थी, पर बात नहीं बनी। इमरजेंसी में उसने कई नेताओं को छुपने में मदद भी की, जिसका फायदा उसे बाद में मिला।
1980 में मस्तान ने राजनीति में किस्मत आज़माई। दलित नेता जोगिंदर कावड़े के साथ मिलकर उसने दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ बनाया। एक गैंगस्टर का दलित-मुस्लिम एकता की बात करना तब के समय की सबसे अनोखी बात थी। बॉलीवुड स्टार दिलीप कुमार ने इस पार्टी का खूब प्रचार भी किया, लेकिन आप तो जानते ही है राजनीति कुछ अलग ही चीज है। यहां मस्तान को कामयाबी नहीं मिली। फिर भी, उसने कभी गोली नहीं चलाई, न हिंसा का रास्ता अपनाया। उसका रसूख उसकी शराफत से था।
मस्तान की विरासत और बदलता अंडरवर्ल्ड
25 जून 1994 में हार्ट अटैक से हाजी मस्तान की मौत हो गई, लेकिन तब तक बंबई का अंडरवर्ल्ड बदल चुका था। दाऊद इब्राहिम कास्कर, जो कभी मस्तान के लिए काम करता था, 1993 के बम धमाकों के बाद से शहर छोड़कर भाग गया। मस्तान ने बंबई को अपनी महबूबा माना था, लेकिन दाऊद ने उसी शहर को गहरे जख्म दिए। वहीं इन सबसे दूर मस्तान का गोद लिया बेटा सुंदर शेखर आज भी बंबई में भारतीय माइनॉरिटीज सुरक्षा महासंघ चलाता है। मस्तान की तीन बेटियां हैं, कमरुनिसा, मेहरूनिसा और शमशाद ये तीनों अलग-अलग शहरों में हैं। सोना की बेटी हसीन मिर्जा ने दावा किया है कि वो मस्तान की बेटी है, और उसकी जिंदगी कठिनाइयों से भरी रही। ये सारी कहानियां आज भी कोर्ट में कहीं न कहीं उलझी हैं।
मुंबई का नया डॉन
मस्तान की कहानी में एक और अहम किरदार है, दाऊद इब्राहिम। 19 साल का दाऊद मस्तान का एक वक़्त को सबसे बड़ा फैन हुआ करता था, लेकिन वो उसकी इमेज को कमजोर मानता था। दाऊद ने एक बार मस्तान की 5 लाख की अटैची लूटने का प्लान बनाया। लेकिन गलती से वो मेट्रोपॉलिटन बैंक की वैन लूट बैठा। ये बंबई की पहली बैंक डकैती थी। दाऊद के पिता, कॉन्स्टेबल इब्राहिम कास्कर, ने उस दिन उसे रातभर पीटा और यहीं से जन्म होता है मुंबई के एक नए अंडर वर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का। वो मस्तान की शराफत को छोड़, हिंसा का रास्ता चुनकर आगे बढ़ा।
लेकिन, हाजी मस्तान एक ऐसा गैंगस्टर और तस्कर था, जिसने अपनी इमेज से उस वक़्त की बंबई को अपना दीवाना बना लिया। सफेद सूट, सफेद जूते, सिगार और समंदर को निहारने का अंदाज, ये मस्तान का स्टाइल था, जो बॉलीवुड के नायकों का प्रेरणा स्रोत बना। उसकी जिंदगी अपराध, बॉलीवुड और राजनीति का एक अनोखा मिश्रण थी। मस्तान ने दिखाया कि इमेज ही सबकुछ है। उसकी कहानी आज भी बंबई की गलियों में गूंजती है, एक ऐसे डॉन की, जिसने बिना गोली चलाए, दिलों पर राज किया। (रिपोर्ट: सुधांशु चौरसिया)