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बिहार में 'चूड़ा-दही भोज' के बाद नए राजनीतिक समीकरण के संकेत

जनता दल (युनाइटेड) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के भोज में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी का अपने कई विधायकों के साथ शामिल होने पर नई सियासी 'खिचड़ी' पकने के संकेत मिलने लगे हैं।

Nitish Kumar makar sankranti- India TV Hindi Image Source : PTI Nitish Kumar makar sankranti

पटना: बिहार की राजनीति में मकर संक्रांति के मौके पर हर साल राजनीतिक दलों द्वारा 'चूड़ा-दही' भोज का आयोजन किया जाता रहा है, लेकिन इस वर्ष जनता दल (युनाइटेड) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के भोज में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी का अपने कई विधायकों के साथ शामिल होने पर नई सियासी 'खिचड़ी' पकने के संकेत मिलने लगे हैं। वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है कि अशोक चौधरी को लेकर ऐसी आशंकाएं और संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। खुद चौधरी ने यह कहकर इसके संकेत भी दे दिए हैं कि 'राजनीति में कोई पूर्णविराम नहीं होता'। 

जद (यू) के रविवार को दही-चूड़ा भोज में शामिल होने के बाद पत्रकारों द्वारा जद (यू) में जाने की संभावनाओं के विषय में पूछे जाने पर चौधरी कहते हैं, "राजनीति में कोई पूर्णविराम या शुरुआत नहीं होती है। दादा यानी वशिष्ठ नारायण से मेरा व्यक्तिगत संबंध था, इसलिए जद (यू) के भोज में शामिल हुआ।"

इस बीच सोमवार को अशोक चौधरी के आवास पर भी चूड़ा-दही भोज का आयोजन किया गया। कांग्रेस के एक नेता का दावा है कि इसमें कांग्रेस के चुनिंदा विधायकों ने शिरकत की थी। हालांकि चौधरी इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं, "मकर संक्रांति के मौके पर कुछ रिश्तेदारों और करीबी मित्रों के लिए भोज का आयोजन किया था। अगर बैठक करनी होगी तो चोरी-छिपे थोड़े ही करेंगे।"

वैसे, जद (यू) द्वारा इस साल मकर संक्रांति के मौके पर आयोजित भोज में भाजपा के नेता पांच साल बाद शामिल हुए। जद (यू) के इस भोज में हालांकि राजद और कांग्रेस के अन्य नेताओं को नहीं देखा गया, लेकिन कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के आने के बाद से चर्चाओं का बाजार गर्म है। इस भोज में चौधरी सहित कांग्रेस के तीन विधायक शामिल हुए थे। 

वैसे, तय है कि बिहार में महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार के भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेने के बाद बिहार कांग्रेस में बहुत कुछ चल रहा है। कई मौकों पर कांग्रेस के नेताओं ने इसके संकेत भी दिए हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बिखरने के बाद बड़ी तेजी से यह खबर आई थी कि बिहार कांग्रेस में टूट होने वाली है। कई कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उस समय तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी की तत्परता और कुछ राजनीतिक कारणों से यह टूट नहीं हो सकी थी। 

वैसे, इस भोज में अशोक चौधरी के शामिल होने के बाद कहा जा रहा है कि उनका जद (यू) के प्रति मोह अभी भंग नहीं हुआ है। कांग्रेस के एक नेता की मानें तो मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 जनवरी को कांग्रेस नेता सदानंद सिंह के आवास पर पार्टी नेताओं की बैठक में भी अशोक चौधरी पहुंचे भी नहीं थे और उनके द्वारा बताया गया था कि वे पटना से बाहर हैं। महागठबंधन तोड़े जाने के बाद भी चौधरी ने कई मौकों पर सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश की तारीफ कर चुके हैं। 

इधर, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी भी चौधरी के खिलाफ खुलकर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। उन्हांेने कहा कि मकर संक्रांति का भोज आपसी मिलन और सौहार्द का भोज है। इस भोज को लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अगर कांग्रेस का कोई नेता दूसरे पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा लेगा तो पार्टी खुद संज्ञान लेगी। 

गौरतलब है कि जद (यू) और भाजपा के नेता महागठबंधन टूटने के बाद से ही राजद और कांग्रेस में टूट को लेकर बयानबाजी करते रहे हैं। बहरहाल, चौधरी के कई विधायकों के साथ जद (यू) के भोज में शामिल होने के बाद बिहार में चल रही ठंडी हवाओं के बीच यहां की राजनीति में नई 'खिचड़ी' पकने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। 

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