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Hindi News लाइफस्टाइल हेल्थ उत्तर प्रदेश: मुरादाबाद की 'डॉक्टर फैमिली' ने किया इस खास सीरिंज का आविष्कार

उत्तर प्रदेश: मुरादाबाद की 'डॉक्टर फैमिली' ने किया इस खास सीरिंज का आविष्कार

क्या बिना सीरिंज के ही दवाओं को सीधे हमारे शरीर में पहुंचाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब आमतौर पर ‘न’ में ही आएगा, लेकिन मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के 'राठौर परिवार' ने 11 साल की मेहनत के बाद कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है।

Futuristic Safe Injection System-2020- India TV Hindi Futuristic Safe Injection System-2020

नई दिल्ली: क्या बिना सीरिंज के ही दवाओं को सीधे हमारे शरीर में पहुंचाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब आमतौर पर ‘न’ में ही आएगा, लेकिन मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के 'राठौर परिवार' ने 11 साल की मेहनत के बाद कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। डॉक्टर भुवन चंद्र राठौर एवं उनकी पत्नि डॉ० नीलम राठौर अपनी बेटियों प्रतिभा राठौर, भारती राठौर तथा बेटे जय हिन्द राठौर के साथ पिछले 11 से अधिक वर्षों से इस खास इंजेक्शन सिस्टम को विकसित करने में लगे हुए थे। इस आविष्कार को उन्होंने ‘फ्यूचरिस्टिक सेफ इंजेक्शन सिस्टम-2020’ नाम दिया है। हाल ही में इस आविष्कार को दुनिया की 10 सर्वश्रेष्ठ ‘फ्यूचर मेडिकल टेक्नोलॉजीज-2020’ में चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। 

हाल ही में जर्मनी के हैम्बर्ग में संपन्न हुए ‘जी-20’ सम्मलेन के मंच से आयोजित प्रतियोगिता में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 32,000 मत प्राप्त करके यह आविष्कार सम्पूर्ण विश्व में दूसरे स्थान पर रहा है। भारत सरकार द्वारा भी इस आविष्कार को एक लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस इंजेक्शन सिस्टम की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत जैसे विकासशील तथा अविकसित देशों में लगभग 70%  इंजेक्शंस ऐसी सीरिंजों द्वारा दिए जाते हैं, जिन्हें पहले से ही कई बार प्रयोग में लाया जा चुका होता है। इन्हीं के कारण एड्स/हिपेटाइटिस-बी, हिपेटाइटिस-सी तथा कई अन्य प्रकार के गंभीर एवं संक्रामक रोगों के खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों के शरीर में पहुंचते हैं, जिससे प्रतिवर्ष करोड़ों लोग अकारण ही काल के गाल में समा जाते हैं। 

‘फ्यूचरिस्टिक सेफ इंजेक्शन सिस्टम-2020’ एक सस्ती, सरल एवं सबको आसानी से उपलब्ध हो सकने वाली ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा शरीर में सीरिंज से इंजेक्ट की जाने वाली दवा को बिना सिरिंज के ही शरीर में इंजेक्ट किया जा सकता है। इस तकनीक में दवाओं की उतनी ही मात्रा को एक ऐसे कैप्सूलनुमा ‘ड्रग-कार्ट्रिज’ में पैक किया जाएगा जितनी दवा की आवश्यकता हो। इस ड्रग-कार्ट्रिज में पहले से ही नीडल पैक्ड होती है। इस ड्रग-कार्ट्रिज को एक इंजेक्टर पर फिट करने पर यह अपने आप ही एक ऐसी स्वचालित सीरिंज में बदल जाती है, जिसे न केवल साधारण सीरिंज की तरह प्रयोग ही किया जा सकता है, बल्कि शरीर में पूरी दवा पहुंचते ही प्रयोग की गई नीडल अपने आप ही खाली ड्रग-कार्ट्रिज के अंदर पीछे खिसक कर बंद हो जाती है। इंजेक्शन के बाद अब खाली ड्रग-कार्ट्रिज को इंजेक्टर से निकालकर सुरक्षित कचरे के रूप में निस्तारित किया जा सकता है। नीडल ड्रग-कार्ट्रिज में बंद होने के कारण किसी को भी उसके चुभने की सभी संभावनाएं पूरी तरह से समाप्त हो जातीं हैं।

इसके आविष्कारकों का दावा है कि उनकी इस तकनीक को व्यापक रूप से यदि विश्व भर में प्रयोग किया जाए, तो न केवल एड्स/हिपेटाइटिस-बी, हिपेटाइटिस-सी तथा कई प्रकार के अन्य गंभीर एवं संक्रामक रोगों के खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया को फैलने से रोककर प्रतिवर्ष करोड़ो लोगों की अकारण मृत्यु को रोका जा सकता है, बल्कि इससे इलाज को बहुत सस्ता करके स्वास्थ्य पर किए जाने बाले खर्चे में अरबों-खरबों रुपया बचाया जा सकेगा। इसके आविष्कारकों के मुताबिक उन्होंने 10 मार्च 2015 को इस खास सीरिंज का पेटेंट भी फाइल कर दिया जिसे विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन द्वारा 15 सितंबर 2016 को प्रकाशित किया गया था। उन्होंने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन के पश्चात् जिन-जिन देशों में पेटेंट प्राप्त करना है, उन सभी देशों में 10 सितम्बर, 2017 के पहले ही पेटेंट फाइल करना अत्यंत आवश्यक है। पेटेंट फाइल न होने की दशा में यह आविष्कार "पब्लिक-डोमेन" में चला जाएगा।

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