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रणजी ट्रॉफी में डीआरएस को बीसीसीआई ने आंखों में धूल झोंकने वाला फैसला बताया

बीसीसीआई ने प्रशासकों की समिति (सीओए) के मार्गदर्शन में इस साल रणजी ट्रॉफी के नॉक आउट दौर के मैचों में डीआरएस लागू करने का फैसला किया है।

<p>रणजी ट्रॉफी में...- India TV Hindi Image Source : GETTY IMAGES रणजी ट्रॉफी में डीआरएस को बीसीसीआई ने आंखों में धूल झोंकने वाला फैसला बताया

नई दिल्ली| पिछले घरेलू सीजन में खराब अंपायरिंग के कारण निशाने पर आए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने प्रशासकों की समिति (सीओए) के मार्गदर्शन में इस साल रणजी ट्रॉफी के नॉक आउट दौर के मैचों में डीआरएस लागू करने का फैसला किया है। इस पर बीसीसीआई ने कहा कि यह सीओए का एक और कदम है जिससे वह मुख्य वजह को नजरअंदाज कर गलती को छुपाना चाहती है।

बीसीसीआई के एक अधिकारी ने कहा कि सीओए के रहते हुए यह आम बात हो गई है कि बाहर बोर्ड की छवि साफ सुथरी रहे चाहे बोर्ड अंदर से खोखला होता जाए।

अधिकारी ने कहा, "हम इस बात से हैरान नहीं हैं। इसी तरह से आजकल चीजें की जा रही हैं, एड हॉक तरीके से। यहां मंशा क्या है? इसके पीछे वजह नॉक आउट मैचों में खराब फैसलों को कम करने की है? अन्य 2010 मैचों का क्या? वहां खराब अंपारिंग की जिम्मेदारी किसकी है? वहां अंपायरिंग के स्तर को सुधारने के लिए क्या किया जाएगा? यह बेहतरीन तरीक से आंख में धूल झोंकना है।"

क्रिकेट संचालन के महानिदेशक सबा करीम ने कहा था कि लिमिटेड डीआरएस के पीछे मकसद बीते सीजन में रणजी ट्रॉफी में जो गलतियां देखी गई थीं उन्हें खत्म करने का है। 

उन्होंने कहा, "पिछले साल, कुछ नॉकआउट मैचों में अंपारयरों ने गलतियां की थीं। इसलिए हम इस साल उस तरह की गलतियों को हटाना चाहते हैं इसके लिए हमें जो भी चाहिए होगा हम करेंगे।" बोर्ड के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि अंपायरिंग के स्तर को सुधारने के लिए एक परीक्षा क्यों नहीं कराई जाती।

कार्यकारी ने कहा, "हाल ही में अंपायरों की भर्ती की परीक्षा को लेकर कई सवाल उठे थे। यह क्यों नहीं हो सकता? एक पारदर्शी परीक्षा कोई बड़ी दिक्कत नहीं है। नागपुर में अंपायरों की अकादमी भी है। उसके संचालन की जिम्मेदारी कौन लेगा? हमारे कितने अंपायर अंतर्राष्ट्रीय पैनल में शामिल हैं। एस रवि आखिरी थे। इसलिए यहां साफ जिम्मेदारी लेने वाले की कमी है।"

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