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क्रिकेट को उसका ‘कोहिनूर’ देने वाले कोच थे आचरेकर

वह क्रिकेट कोचों की उस जमात से ताल्लुक रखते थे जो अब नजर कम ही आती है। जिसने मध्यमवर्गीय परिवारों के लड़कों को सपने देखने की कूवत दी और उन्हें पूरा करने का हुनर सिखाया।

क्रिकेट को उसका ‘कोहिनूर’ देने वाले कोच थे आचरेकर- India TV Hindi Image Source : TWITTER क्रिकेट को उसका ‘कोहिनूर’ देने वाले कोच थे आचरेकर

नई दिल्ली। क्रिकेट में यूं तो कई नामचीन कोच हुए हैं लेकिन रमाकांच आचरेकर सबसे अलग थे जिन्होंने खेल को सचिन तेंदुलकर के रूप में उसका ‘कोहिनूर’ दिया। आचरेकर का बुधवार को मुंबई में 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह क्रिकेट कोचों की उस जमात से ताल्लुक रखते थे जो अब नजर कम ही आती है। जिसने मध्यमवर्गीय परिवारों के लड़कों को सपने देखने की कूवत दी और उन्हें पूरा करने का हुनर सिखाया। 

आधी बाजू की सूती शर्ट और सादी पतलून पहने आचरेकर देव आनंद की ‘ज्वैल थीफ ’ मार्का कैप पहना करते थे। उन्होंने शिवाजी पार्क जिमखाना पर अस्सी के दशक में 14 बरस के सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का ककहरा सिखाया। भारत की 1983 विश्व कप जीत के बाद वह दौर था जब देश के शहर शहर में क्रिकेट कोचिंग सेंटर की बाढ आ गई थी। आचरेकर और बाकी कोचों में फर्क यह था कि जिसे योग्य नहीं मानते , उसे वह क्रिकेट की तालीम नहीं देते थे। 

तेंदुलकर और उनके बड़े भाई अजित ने कई बार बताया है कि आचरेकर कैसे पेड़ के पीछे छिपकर तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखते थे ताकि वह खुलकर खेल सके। 
क्रिकेट की किवदंतियों में शुमार वह कहानी है कि कैसे आचरेकर स्टम्प के ऊपर एक रूपये का सिक्का रख देते थे और तेंदुलकर से शर्त लगाते थे कि वह बोल्ड नहीं हो ताकि वह सिक्का उसे मिल सके। तेंदुलकर के पास आज भी वे सिक्के उनकी अनमोल धरोहरों में शुमार है। 

अपने स्कूल की सीनियर टीम को एक फाइनल मैच खेलते देखते हुए तेंदुलकर ने जब एक मैच नहीं खेला तो आचरेकर ने उन्हें करारा तमाचा जड़ा था। 
तेंदुलकर ने कई मौकों पर आचरेकर के उन शब्दों को दोहराया है ,‘‘ तुम दर्शक दीर्घा में से ताली बजाओ , इसकी बजाय लोगों को तुम्हारा खेल देखने के लिये आना चाहिये।’’ 

अस्सी और नब्बे के दशक में शिवाजी पार्क जिमखाना पर क्रिकेट सीखने वाले हर छात्र के पास आचरेकर सर से जुड़ी कोई कहानी जरूर है। चंद्रकांत पंडित, अमोल मजूमदार, प्रवीण आम्रे, अजित अगरकर, लालचंद राजपूत सभी बतायेंगे कि ‘गुरू’ क्या होता है और वह समय कितना चुनौतीपूर्ण था। बचपन में तेंदुलकर कई बार आचरेकर सर के स्कूटर पर बैठकर स्टेडियम पहुंचे। 

तेंदुलकर ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर क्रिकेट को अलविदा कहते हुए कहा था ,‘‘ सर ने मुझसे कभी नहीं कहा ‘वेल प्लेड’ क्योंकि उनको लगता था कि मैं आत्ममुग्ध हो जाऊंगा। अब वह मुझे कह सकते हैं कि मैने कैरियर में अच्छा किया क्योंकि अब मेरे जीवन में कोई और मैच नहीं खेलना है।’’ यह आचरेकर का जादू था कि दुनिया जिसके फन का लोहा मानती है , वह क्रिकेटर उनसे एक बार तारीफ करने को कह रहा था। तेंदुलकर ने आज उन्हें श्रृद्धांजलि देते हुए कहा ,‘‘ वेल प्लेड सर। आप जहां भी हैं, वहां और सिखाते रहें।’’ 

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