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अमेरिका-ईरान तनाव: बगदाद में लगातार दूसरी रात अमेरिकी दूतावास के पास दागे गए रॉकेट, 4 घायल

इराक में अमेरिकी हवाई हमले में ईरान के शीर्ष कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के कारण बढ़े तनाव के बीच बगदाद में अमेरिकी दूतावास के निकट 2 रॉकेट दागे गए।

Baghdad Rockets, Baghdad Green Zone Rockets, Donald Trump, General Qasem Soleimani- India TV Hindi At Least 3 Shells Hit Baghdad's Green Zone, Adjacent Area of US Embassy in Iraq | AP Photo

बगदाद: इराक में अमेरिकी हवाई हमले में ईरान के शीर्ष कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के कारण बढ़े तनाव के बीच बगदाद में अमेरिकी दूतावास के निकट 2 रॉकेट दागे गए। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि ‘ग्रीन जोन’ में रविवार को दो रॉकेट गिरे। ‘ग्रीन जोन’ में लगातार दूसरी रात रॉकेट दागे गए हैं और पिछले दो महीनों में अमेरिकी प्रतिष्ठानों को 14वीं बार निशाना बनाया गया। मेडिकल सूत्रों, ने बताया कि तीसरा रॉकेट ‘ग्रीन जोन’ के बाहर एक मकान में गिरा जिसके कारण 4 लोग घायल हो गए। इससे पहले शनिवार को भी बगदाद के ग्रीन जोन में रॉकेट दागे गए थे, जिसमें कोई हताहत नहीं हुआ था।

ईरान ने कहा- US में लड़ने की हिम्मत नहीं
ईरान के सेना प्रमुख ने रविवार को कहा कि अमेरिका में लड़ाई शुरू करने की ‘हिम्मत’ ही नहीं है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मेजर जनरल अब्दुलरहमान मौसावी के हवाले से कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिकियों ने 52 स्थलों पर हमला करने की जो धमकी दी है, उनमें वह लड़ाई ‘शुरू करने की हिम्मत है।’ आपको बता दें कि ईरान की कुद्स आर्मी के कमांडर मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की बगदाद अमेरिकी हवाई हमले में मौत के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। सुलेमानी की मौत के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने अमेरिका से बदला लेने का संकल्प लिया है।

US की सेना को बाहर करने के पक्ष में इराक की संसद
इराक की संसद ने देश से अमेरिकी सेना को बाहर करने के पक्ष में मतदान किया। सांसदों ने देश में विदेशी सेना की मौजूदगी समाप्त करने की अपील संबंधी प्रस्ताव के पक्ष में रविवार को मतदान किया। प्रस्ताव का मुख्य लक्ष्य अमेरिका को इराक के विभिन्न हिस्सों में मौजूद करीब 5,000 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने को कहना है। इराकी प्रस्ताव में खास तौर पर उस समझौते को खत्म करने का आह्वान किया गया है जिसके तहत करीब 4 साल पहले अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट समूह के खिलाफ लड़ने में मदद के लिए सैनिक भेजे थे। इस प्रस्ताव को संसद के ज्यादातर शिया सदस्यों ने समर्थन दिया, जिनके पास ज्यादातर सीटें हैं।

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