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Hindi News विदेश यूरोप सूर्य का वायुमंडल उसकी सतह से 100 गुणा अधिक गर्म, कारणों का पता चला

सूर्य का वायुमंडल उसकी सतह से 100 गुणा अधिक गर्म, कारणों का पता चला

सूर्य की नजर आने वाली सतह जिसे फोटोस्फेयर कहते हैं वहां तापमान करीब 6,000 डिग्री सेल्सियस रहता है। 

Sun atmosphere, Sun atmosphere hotter, Sun Temperature- India TV Hindi Image Source : NASA सूर्य की नजर आने वाली सतह जिसे फोटोस्फेयर कहते हैं वहां तापमान करीब 6,000 डिग्री सेल्सियस रहता है।

लंदन: सूर्य की नजर आने वाली सतह जिसे फोटोस्फेयर कहते हैं वहां तापमान करीब 6,000 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन इससे कुछ हजार किलोमीटर ऊपर (सूर्य के आकार के विचार से देखें तो थोड़ी ही दूरी मानी जाएगी) सौर वायुमंडल, जिसे कोरोना भी कहा जाता है, वह 100 गुणा गर्म है, यानि वहां का तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस या उससे भी अधिक है। सूर्य के मुख्य ऊर्जा स्रोत से अधिक दूरी होने के बावजूद, तापमान में यह वृद्धि अधिकतर सितारों में देखी जाती है और यह उस मौलिक पहेली को दर्शाता है जिसपर खगोल भौतिकीविदों ने दशकों तक विचार किया है।

स्वीडन के वैज्ञानिक हेन्स एल्फवेन ने 1942 में एक व्याख्या प्रस्तावित की थी। उन्होंने सिद्धांत दिया था कि प्लाज्मा की चुंबकीय तरंगें सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के आस-पास बड़ी मात्रा में ऊर्जा को उसके आंतरिक हिस्से से कोरोना तक ले जाती हैं, फोटोस्फेयर को दरकिनार कर यह ताप सूर्य के ऊपरी वायुमंडल में विस्फोटित होता है। सिद्धांत को अस्थायी तौर पर स्वीकार किया गया था लेकिन अनुभवजन्य अवलोकन के रूप में इस बात के साक्ष्यों की जरूरत थी कि ऐसी तरंगों का अस्तित्व है।

हमारे हालिया अध्ययन में अंतत: ये साक्ष्य मिले जो अल्फवेन के 80 साल पुराने सिद्धांतों को प्रमाणित करते हैं और पृथ्वी पर इस उच्च ऊर्जा घटना को काम में लाने के लिए एक कदम और करीब लाते हैं। कोरोना के ताप समस्या को 1930 के दशक के अंत में स्थापित कर लिया गया था जब स्वीडन के स्पेक्ट्रोस्कोपिस्ट बेंग्ट एडलेन और जर्मनी के खगोल भौतिकविद वाल्टर ग्रोटियान ने पहली बार सूर्य के कोरोना में इस घटना का अवलोकन किया, जो केवल तभी हो सकती है जब उसका तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस के आस-पास हो। यह कोरोना के निचली सतह से 1,000 गुणा ज्यादा अधिक गर्म तापमान को दिखाता है।

फोटोस्फेयर सूर्य की वह सतह है जो हम धरती से देख सकते हैं। सूर्य की सतहों पर तापमान में इतना अधिक अंतर वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक पहेली जैसा रहा है। इस अंतर की व्याख्या के लिए वैज्ञानिकों ने सूर्य की प्रकृति एवं विशेषताओं को समझने की कोशिश की है। सूर्य लगभग पूरी तरह प्लाज्मा का बना हुआ है, जो इलेक्ट्रिकल चार्ज ले जाने वाली अत्यधिक आयनित गैस होती है। सूर्य के आंतरिक भाग के ऊपरी हिस्से कन्वेक्शन जोन में प्लाज्मा की यह गतिविधि बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिकल करंट और मजबूत चुंबकीय क्षेत्र पैदा करती है।

इन चुंबकीय क्षेत्रों को फिर कन्वेक्शन द्वारा सूर्य के आंतरिक हिस्से से खींच कर उसकी नजर आने वाली सतह पर स्याह धब्बों (सनस्पॉट) के रूप में छोड़ दिया जाता है, जो चुंबकीय क्षेत्रों के समूह हैं, जो सौर वातावरण में कई प्रकार के चुंबकीय ढांचे बनाते हैं। यहां अल्फवेन का सिद्धांत आता है। 

उन्होंने कहा था कि सूर्य के चुंबकीय प्लाज्मा के भीतर विद्युत रूप से आवेशित कणों की भारी भरकम गतिविधियां चुंबकीय क्षेत्र में व्यवधान डालती हैं, जिससे ऐसी तरंगें पैदा होती हैं, जो बड़ी दूरियों के साथ-साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा को सूर्य की सतह से उसके ऊपरी वायुमंडल तक ले जाती हैं। यह ताप सौर चुंबकीय प्रवाह ट्यूब के साथ-साथ चलता है और कोरोना में जाकर विस्फोटित हो जाता है, जिससे उच्च तापमान पैदा होता है।

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