नींद आते ही कभी बजने लगती है फोन की घंटी, इमरजेंसी कॉल पर दौड़ना पड़ता है, इन चैलेंजेज से भरी होती है एक डॉक्टर की जिंदगी
National Doctors Day 2025: धरती पर मां और डॉक्टर दोनों की भगवान का दर्जा दिया गया है। मां जन्म देती है तो डॉक्टर मौत के मुंह से लोगों को वापस ले आते हैं। हालांकि एक डॉक्टर को अपनी लाइफ में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आइये जानते हैं कैसी होती है डॉक्टर की जिंदगी।

1 जुलाई को देशभर में लोग डॉक्टर्स डे का जश्न मनाते हैं। धरती पर डॉक्टर किसी भगवान से कम नहीं हैं। कोविड जैसी महामारी के बाद से तो लोग डॉक्टर को धरती का सुपरहीरो मानने लगे हैं। डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह किए बिना लाखों लोगों की जान बचाई। कोविड महामारी से बचने के लिए सिर्फ डॉक्टर ही ढाल थे। लेकिन एक डॉक्टर प्रोफेशन इतना आसान नहीं है। पढ़ाई से शुरू हुई ये मेहनत डॉक्टर बनने के बाद भी जारी रहती है। डॉक्टर्स बनने के बाद भीजीवन चुनौतियों से भरा होता है। आइये एक डॉक्टर से ही जानते हैं कि कैसी होती है उनकी लाइफ और उन्हें क्या चैलेंजेज फेस करने पड़ते हैं।
इंडिया टीवी ने जब इस बारे में डॉक्टर अक्शत मलिक (प्रिंसिपल कंसल्टेंट सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट (हेड एंड नेक रोबोटिक सर्जरी, मैक्स हॉस्पिटल, दिल्ली, साकेत) से बात की तो उन्होंने बताया कि, 'डॉक्टर्स की जिंदगी बाहर से भले ही सम्मानित और स्थिर लगे, लेकिन इसके पीछे एक बेहद चुनौतीपूर्ण सफर छिपा होता है। लंबे घंटे काम करना, बिना ब्रेक के ओटी शेड्यूल, इमरजेंसी कॉल्स और मरीजों की जिम्मेदारी का दबाव ये सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं।'
हर केस में डर बना रहता है
एक सर्जन के तौर पर हर केस में निर्णय का दबाव और यह डर हमेशा बना रहता है कि अगर ज़रा सी भी चूक हो गई, तो उसका सीधा असर किसी की जान पर पड़ सकता है। कई बार मरीज के परिजन किसी भी लॉस के लिए डॉक्टर्स को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जबकि एक डॉक्टर किसी भी कीमत पर लोगों की जान बचाने में जुटा होता है। मेडिकल प्रोफेशन हमेशा अपडेट होने की मांग करता है, इसलिए समय निकाल कर नए रिसर्च, गाइडलाइंस और टेक्नोलॉजी को सीखते रहना भी जरूरी हो जाता है।
पर्सनल लाइफ मैनेज करना मुश्किल
इतनी हैक्टिक प्रोफेशनल लाइफ के साथ पर्सनल लाइफ को मैनेज करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। सच कहूं तो डॉक्टर की लाइफ और उनके परिवार की लाइफ एक साथ चलती है। कभी साथ, कभी संघर्ष में। परिवार के साथ समय निकालना एक चुनौती है, खासकर तब जब आपका काम कभी भी बुला सकता है चाहे दिन हो या रात। हमें छोटे-छोटे लम्हों को संजोकर जीना पड़ता है। चाहे वो डिनर टेबल पर 20 मिनट हों या बच्चों के साथ वीडियो कॉल पर बातचीत हो। कई बार तो किसी फंक्शन में होते हैं अचानक इमरजेंसी कॉल आ जाता है। रात को जैसे ही बिस्तर पर लेटे और आंख लगी कि फोन की घंटी बजने लगती है और तुरंत हॉस्पिटस भागना पड़ जाता है।'
कोविड का दौर भूलना मुश्किल होगा
डॉक्टर अक्शत मलिक ने बताया महामारी के समय हमें सबसे आगे की पंक्ति में खड़े होते हैं। कोविड-19 जैसी महामारी ने ये साबित भी किया। मानसिक रूप से यह दौर बेहद थकाने वाला होता है। PPE किट पहनकर घंटों काम करना, संक्रमण का डर, सीमित संसाधन और लगातार बदलते प्रोटोकॉल्स के बीच मरीज को बचाना चुनौती से कम नहीं है। एक ओर मरीजों की सेवा का कर्तव्य होता है, दूसरी ओर अपने परिवार को संक्रमण से सुरक्षित रखने की चिंता।
परिवार से दूर रहना पड़ता है
कई बार हमें अपने परिवार से अलग रहना पड़ा, ताकि हम संक्रमित न करें। ऐसे हालात में काम के साथ-साथ इमोशनल स्ट्रेस बहुत ज़्यादा होता है। साथ ही महामारी के वक्त में समाज से अपेक्षाएं बहुत बढ़ जाती हैं, लेकिन जब डॉक्टर्स को सपोर्ट या समझ नहीं मिलती, तो वो हताशा और थकान को बढ़ा देती है।
इसलिए ये समझना जरूरी है कि डॉक्टरी सिर्फ एक प्रोफेशन नहीं, यह एक मिशन है। जो सेवा, समय और त्याग साथ चलता है। चुनौतिया बहुत हैं, लेकिन जब किसी मरीज की मुस्कान मिलती है या वो जिंदगी की जंग जीतकर घर जाता है। तो हर बलिदान साकार लगता है।