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Hindi News लाइफस्टाइल फीचर Premchand Death Anniversary: अगर अंग्रेजों ने हां कर दी होती तो प्रेमचंद आज अभिनेता के रूप में जाने जाते

Premchand Death Anniversary: अगर अंग्रेजों ने हां कर दी होती तो प्रेमचंद आज अभिनेता के रूप में जाने जाते

Premchand Death Anniversary: हिंदी कथा सम्राट और कलम के सिपाही के नाम से मशहूर मुंशी प्रेमचंद विश्व विख्यात शख्सियत हैं। प्रेमचंद के कलम बोलते प्रतीत होते हैं। उनकी रचना तमाम रचनाकारों के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। क्या आपको मालूम है कि प्रेमचंद केवल लेखक न थे बल्कि उनकी रूचि एक्टिंग में भी थी। प्रेमचंद में वे सब गुण

Premchand Death Anniversary- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Premchand Death Anniversary

Highlights

  • प्रेमचंद की कहानी बच्चे से लेकर बूढ़े तक पढ़ते हैं।
  • उनकी तुलना विलियम शेक्सपियर से की जाती है।
  • प्रेमचंद ने अपने जीवन में लगभग 300 से अधिक कहानियां और 20 से अधिक उपन्यास लिखे हैं।

Premchand Death Anniversary: भारत में कालिदास तुलसीदास और कबीरदास के बाद यदि कोई साहित्यकार पूजनीय हुए तो वह है मुंशी प्रेमचंद। प्रेमचंद की कहानी बच्चे से लेकर बूढ़े तक पढ़ते हैं। उनकी तुलना विलियम शेक्सपियर से की जाती है। प्रेमचंद ने अपने जीवन में लगभग 300 से अधिक कहानियां और 20 से अधिक उपन्यास लिखे। भारत के इस शानदार लेखक की आज ही के दिन 8 अक्टूबर 1936 को मृत्यु हो गई थी। 

कहानियों में झलकता था ब्रिटिश सत्ता का विरोध

गुलाम भारत में अपने कहानी लेख और उपन्यास के द्वारा प्रेमचंद आजादी का संदेश रुचिपूर्ण और रचनात्मक ढंग से देते रहे। उनकी कहानियों में ब्रिटिश सत्ता का विरोध साफ झलकता है। वे एक ऐसे साहित्यकार थे जो गरीबी झेले थे। जीवन के रंग मंच पर प्रेमचंद कई भूमिका निभाए। साहित्य उन्हें जितना पसंद था उतना ही उन्हें सिनेमा भी आकर्षित करता था। हिंदी सिनेमा में प्रेमचंद की इंट्री एक लेखक के रूप में होती है। वे एक साल तक सिनेमा के लिए लगातार स्क्रिप्ट लिखते रहे। जिनकी किताब को आज हिंदी साहित्य के IAS के विद्यार्थी पढ़ते हैं वह एक समय सिनेमा के बादशाह बनने के दहलीज पर था। 

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साल 1934 में प्रेमचंद ने एक्टर की भूमिका निभाई थी 

यदि लेखक कहानी गढ़ सकते हैं तो कहानी को फिल्मा भी सकते हैं। इस कथन को सत्यापित किया था प्रेमचंद ने। अपने मृत्यु से दो साल पहले यानी साल 1934 में प्रेमचंद एक्टर की भूमिका में आ गए। प्रेमचंद को एक्टिंग से खूब लगाव था, इसी का नतीजा था कि वे 1934 की फ़िल्म 'मिल मजदूर' में उन्होंने मजदूर के नेता का एक्टिंग किया। इस एक्टिंग को करते हुए प्रेमचंद मजदूर के प्रति भावुक हुए जबकि ब्रिटिश सत्ता के प्रति क्रोधित! एक्टिंग इतना शानदार था कि रातों रात खबर ब्रिटिश ऑफिसर तक जा पहुंची।

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खबर की पुष्टि होते ही प्रेमचंद के किताबों की तरह प्रेमचंद के फ़िल्म के प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी गई। अपने शानदार लेखक को एक्टर के रूप में देखने की ख़्वाहिश से भारतीयों को वंचित करा दिया गया। लेकिन चोरी छिपे यह फ़िल्म दिल्ली लखनऊ और लाहौर में देखा गया। इस फ़िल्म को जिसने भी देखा प्रेमचंद के एक्टिंग के कायल हो गए। परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश के मिल मजदूरों के प्रति क्रूर नीतियों का विरोध होने लगा। ब्रिटिश तो मानो प्रेमचंद को अपना दुश्मन ही समझ लिया। इसलिए बॉलीवुड में प्रेमचंद पर पैनी निगाह रखी जानी लगी।
 
प्रेमचंद एक साल कार्य करने के बाद बॉलीवुड से पुनः घर वापस आ गए और 'गोदान' नामक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास की रचना की। इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद प्रेमचंद 8 अक्टूबर 1936 को दुनिया को अलविदा कह दिए।

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