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Hindi News पैसा बिज़नेस स्विट्जरलैंड ने भारत को सौंपी भारतीयों के स्‍विस बैंक खातों की पहली सूची, सितंबर 2020 में आएगी दूसरी लिस्‍ट

स्विट्जरलैंड ने भारत को सौंपी भारतीयों के स्‍विस बैंक खातों की पहली सूची, सितंबर 2020 में आएगी दूसरी लिस्‍ट

स्विट्जरलैंड के कर विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सितंबर 2020 में भारत के साथ फिर वित्तीय खातों की सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा।

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नई द‍ि‍ल्‍ली। कालाधन के खिलाफ लड़ाई में सरकार को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। भारत और स्विट्जरलैंड के बीच कालाधन सूचना के स्‍वत: आदान-प्रदान की नई व्‍यवस्‍था के तहत भारत को अपने नागरिकों के स्विस बैंक खातों की पहली सूची स्‍विट्जरलैंड सरकार से हासिल हो गई है।  

इसके साथ ही भारत अब उन 75 देशों में शामिल हो गया है, जिनके साथ स्विट्जरलैंड सरकार ने बैंक खातों से जुड़ी जानकारियां साझा की हैं। स्विट्जरलैंड के कर विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सितंबर 2020 में भारत के साथ फिर वित्तीय खातों की सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा।

स्‍विट्जरलैंड के फेडरल टैक्‍स एडमिनिस्‍ट्रेशन (एफटीए) एईओआई के वैश्विक मानकों के अनुरूप व्‍यवस्‍था के तहत 75 देशों के साथ वित्‍तीय खातों की जानकारी साझा करता है।  

एफडीए के प्रवक्‍ता ने कहा कि यह पहली बार है जब भारत को एईओआई नियमों के तहत स्विस बैंकों में भारतीय खाताधारकों की जानकारी उपलब्‍ध कराई गई है। इस जानकारी के तहत वर्तमान में सक्रिय खातों और 2018 के दौरान बंद हो चुके खातों का विवरण उपलब्‍ध कराया गया है।

भारत को सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान की नई व्यवस्था के तहत स्विट्जरलैंड के बैंकों में अपने नागरिकों के खातों के ब्योरे की पहली सूची प्राप्त हो गई है। दोनों देशों के बीच सूचनाओं के स्वत: आदान प्रदान की इस व्यवस्था से भारत को विदेशी में अपने नागरिकों द्वारा जमा कराए गए कालेधन के खिलाफ लड़ाई में काफी मदद मिलेगी। प्रवक्ता ने कहा कि इस व्यवस्था के तहत अगली सूचना सितंबर, 2020 में साझा की जाएगी।

हालांकि, सूचनाओं के इस आदान प्रदान की कड़े गोपनीयता प्रावधान के तहत निगरानी की जाएगी। एफटीए के अधिकारियों ने भारतीयों के खातों की संख्या या उनके खातों से जुड़ी वित्तीय संपत्तियों का ब्योरा साझा करने से इनकार किया। कुल मिलाकर एफटीए ने भागीदार देशों को 31 लाख वित्तीय खातों की सूचना साझा की है। वहीं स्विट्जरलैंड को करीब 24 लाख खातों की जानकारी प्राप्त हुई है। साझा की गई सूचना के तहत पहचान, खाता और वित्तीय सूचना शामिल है। इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्योरा दिया गया है।

स्विट्जरलैंड सरकार ने अलग से बयान में कहा कि इस साल एईओआई के तहत 75 देशों के साथ सूचना का आदान-प्रदान किया गया है। इनमें से 63 देशों के साथ यह परस्पर आदान-प्रदान है। करीब 12 देश ऐसे हैं जिनसे स्विट्जरलैंड को सूचना तो प्राप्त हुई है लेकिन उसने उनको कोई सूचना नहीं भेजी है क्योंकि ये देश गोपनीयता और डेटा सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर पाए हैं। इन देशों में बेलीज, बुल्गारिया, कोस्टा रिका, कुरासाओ, मोंटेसेराट, रोमानिया, सेंट विन्सेंट, ग्रेनेडाइंस और साइप्रस शामिल हैं। इसके अलावा बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, केमैन आइलैंड, तुर्क्स एंड कैकोज आइलैंड आदि देशों ने सूचना नहीं मांगी है, इसलिए उन्हें खातों का ब्योरा साझा नहीं किया गया है।

एफटीए ने बैंकों, न्यासों और बीमा कंपनियों सहित करीब 7,500 संस्थानों से ये आंकड़े जुटाए हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी सबसे अधिक सूचनाओं का आदान-प्रदान जर्मनी को किया गया है। बयान में कहा गया है कि एफटीए वित्तीय संपत्तियों के बारे में कोई सूचना नहीं देता है। भारत के नागरिकों के बारे मे साझा की गई सूचनाओं के बाबत एफटीए प्रवक्ता ने कहा कि सांख्यिकी आंकड़े भी गोपनीयता के प्रावधान के तहत आते हैं। एफटीए ने कहा कि अगले साल इस व्यवस्था के तहत 90 देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा।

स्विट्जरलैंड में एईओआई को कानूनी आधार पर पहली बार एक जनवरी, 2017 को क्रियान्वित किया गया थाा। आदान-प्रदान के जरिये हासिल सूचनाओं के जरिये कर अधिकारी इस बात का पता लगा सकते हैं कि क्या करदाता ने अपने कर रिटर्न में विदेशों में अपने वित्तीय खाते का सही ब्योरा दिया है। इस व्यवस्था के तहत पहली बार सूचना का आदान-प्रदान सितंबर, 2018 में 36 देशों के साथ किया गया था। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन का वैश्विक मंच एईआईओ के क्रियान्वयन की समीक्षा करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सूचनाओं के आधार पर भारत बेहिसाबी धन रखने वाले लोगों के खिलाफ अभियोजन का ठोस मामला बना सकता है। कई अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस सूची में ज्यादातर उद्योगपतियों के नाम है। इनमें प्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी शामिल हैं जो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ कुछ अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों में बस चुके हैं।

 

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