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बिजली उत्पादकों की उत्सर्जन में कमी लाने वाली तकनीक के लिए समयसीमा बढ़ाने की मांग

इंडस्ट्री के मुताबिक लॉकडाउन और भारत-चीन तनाव की वजह से मुश्किलें काफी बढ़ गईं

<p>Power Sector</p>- India TV Paisa Image Source : FILE PHOTO Power Sector

नई दिल्ली। बिजली उत्पादकों के संघ (एपीपी) ने अपने संयंत्रों में उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले उपकरणों को लगाने के लिये और समय मांगा है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी और चीन से आपूर्ति बाधाओं जैसे कारणों से दिसंबर 2022 तक इन उपकरणों को लगाना मुश्किल है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एक जुलाई को भेजे पत्र में एपीपी ने इसके लिये तीन साल का और समय मांगा है। सरकारी आदेश के अनुसार देश में सभी तापीय बिजली संयंत्रों को एफजीडी (फ्लू गैस डि-सल्फराइजेशन) प्रौद्योगिकी चरणबद्ध तरीके से दिसंबर 2022 तक लगानी है। यह उपकरण कोयला जलने पर सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाता है।

पत्र में संघ ने पीएमओ को सूचित किया है कि मौजूदा हालात में समयसीमा का पालन करना मुश्किल होगा क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण चीन से आपूर्ति बाधित हो रही है। संगठन का कहना है कि उत्सर्जन में कमी लाने वाले उपकरणों में केवल 20 से 30 प्रतिशत ही भारत में बनता है जबकि 70 से 80 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है। पत्र की प्रति बिजली मंत्रालय को भी भेजी गयी है। इसमें कहा गया है कि महामारी के कारण उत्पन्न बाधा और भारत-चीन सेनाओं के बीच हाल में हिंसक झड़प के बाद चीन में बने उत्पादों के बहिष्कार की जोर पकड़ती मांग से तय लक्ष्य के भीतर काम होना मुश्किल लगता है।

संगठन ने पत्र में लिखा है कि यह सब नियामकीय बाधाओं और बैंकों के बिजली क्षेत्र को अतिरिक्त कर्ज देने में ना-नुकुर के अलावा है। संघ के मुताबिक कई बिजलीघरों को वितरण कंपनियों से बड़ी राशि लेनी है। यह बकाया राशि अब कोविड-19 संकट के कारण और बढ़ गयी है। एपीपी ने बिजली कंपनियों के समक्ष चुनौतियों को देखते हुए सरकार से उत्सर्जन में कमी लाने के लिये उपकरण लगाने की समयसीमा कम-से-कम दो-तीन साल बढ़ाने का आग्रह किया है।

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