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Demonetisation : तीन हफ्ते बाद भी जारी है परेशानियां, दूर-दूर तक नजर नहीं अा रहा कोई लाभ

Demonetisation के तीन सप्ताह गुजर चुके हैं, मगर उसके बाद से कोई खास सकारात्मक प्रभाव लोगों के सामने नहीं आया है। हांलाकि कैशलेस लेन-देन में बढ़ोतरी हुई है।

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोटों का चलन बंद (Demonetisation) कर देश के आम और खास व्यक्ति को एक धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। नोटबंदी के तीन सप्ताह गुजर चुके हैं, मगर उसके बाद से कोई खास सकारात्मक प्रभाव लोगों के सामने नहीं आया है। लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि नोटबंदी ने देश को कैशलेस लेन-देन की ओर एक और कदम बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

नोटबंदी के नकारात्‍मक पहलुओं की लंबी है फेहरिस्‍त

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले ने देश के हर वर्ग और क्षेत्र को चौंकाया।
  • तीन सप्ताह बाद अगर इस फैसले के नकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो इसकी फेहरिस्त काफी लंबी है।
  • नोटबंदी की घोषणा के बाद देश की 86 फीसदी नगदी के रातों-रात यूं पानी-पानी हो जाने से पूंजीपति से लेकर आम इंसान भी प्रभावित हुआ।
  • नोटबंदी को तीन सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन इससे होने वाले फायदों की तस्वीर अभी भी धुंधली है, जिसका सरकार पहले दिन से दावा कर रही है।
  • हालांकि हम खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह की पहल से लोगों के रहन-सहन, खर्चो में बदलाव आएगा और वह नगदी पर कम आश्रित होंगे।
  • 500 और 1000 रुपए की शक्ल में देश की मुद्रा के 86 प्रतिशत को हटाने के नकारात्मक प्रभाव आश्चर्य की बात नहीं है।
  • सरकार कह रही है कि इसके बाद हमारा देश सोने की तरह चमकेगा।
  • कई लोगों ने इस कदम का समर्थन भी किया, मगर यह स्पष्ट नहीं हुआ कि इससे क्या फायदा होगा और वह वाकई लंबे समय के लिए होगा।

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इंडिया सेंट्रल प्रोग्राम ऑफ द इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के निदेशक प्रणव सेन ने एक वेबसाइट आइडियाज फॉर इंडिया में लिखा

विमुद्रीकरण से समूचा असंगठित क्षेत्र स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है। विशेष रूप से असंगठित वित्तीय क्षेत्र जो बैंक ऋण देने या सकल घरेलू उत्पाद के 26 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। यह क्षेत्र गांव के किसानों और कम आय वाले लोगों को बचत और ऋण सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।

असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के लोग हुए सबसे ज्‍यादा प्रभावित

  • देश की अर्थव्यवस्था में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान करने वाले असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों का कुल कामगार आबादी में हिस्सा 80 प्रतिशत है, जो कई तर्को के हिसाब से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  • सरकार के 500 और 1,000 रुपये के नोट को अमान्य करने से व्यापार और अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुआ।
  • खुद पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने 30 दिसंबर तक अर्थव्यवस्था को 1.28 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात कही।

ATM पर अब भी उमरती भीेड़ ने उठाया नोटबंदी पर प्रश्‍न

  • नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम पर उमड़ी भीड़ ने नोटबंदी की तैयारी पर प्रश्न चिन्ह उठाया।
  • इस फैसले के लिए समूची तैयारियों की जरूरत थी, जो नदराद रहीं।
  • वहीं इस बीच जिन लोगों के पास 500 और 1000 के अधिक संख्या में जायज नोट भी हैं, वह भी बैंकों की भीड़ के डर से अपनी मेहनत की कमाई को जाया होते देख रहे हैं।
  • नोटबंदी के इस दौर में कई लोगों ने तो अपनी जानें भी गवाई हैं।
  • आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के बाद से 65 से अधिक लोगों की मौत हुई।
  • इसके अलावा नगदी की कमी से वह क्षेत्र भी प्रभावित हुए, जिनसे सबसे अधिक लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ था।
  • नोटबंद के साथ ही नोटों को बदलने व निकालने की सीमा, बैंकों में उमड़ी भीड़ और एटीएम की अधूरी व्यवस्थाओं ने लोगों को खीजने पर मजबूर कर दिया।
  • वहीं, बैंकों से जैसे-तैसे पैसा निकाल कर लाए लोग उस समय खुद को ठगा सा महसूस करने लगे जब बाजार में दुकानदारों ने 2,000 हजार रुपए का छुट्टा देने से मना कर दिया।

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कृषि क्षेत्र पर भी पड़ा असर

  • नोटबंदी से देश के तमाम राज्यों जैसे यूपी, उत्तराखंड, बिहार झारखंड में रबी की फसलों की बुवाई धीमी हो गई।
  • गेंहू, तरबूज, सरसों, पालक समेत बीजों की बिक्री छोटे नोट की कमी से वजह से 70 प्रतिशत प्रभावित हुई।

सरकार द्वारा नोटबंदी के समर्थन में भी कम नहीं हैं लोग

  • सरकार के इस फैसले का लोगों में हालांकि बढ़-चढ़ कर समर्थन भी देखने को मिला।
  • कई लोग इस बात से खुश दिखे कि जिसके पास बड़ी संख्या में काला धन है उनके नोट पूरी तरह से रद्दी हो जाएंगे।
  • इस डर से काले धन रखने वालों द्वारा नोटों की बोरियां जलाने, गंगा में बहाने और दान करने जैसी खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरीं।
  • नोटबंदी के लंबी अवधि के फायदे को बाद में आएंगे लेकिन नोटबंदी के ठीक बाद हमारे सामने सबसे बड़ा उदाहरण कैशलैस लेनदेन रहा।
  • नोटबंदी के ठीक बाद देश के उन पढ़े-लिखे लोगों के बीच क्रेडिट-डेबिट और पेटीएम जैसे माध्यमों का इस्तेमाल बढ़ गया, जो इनका कम ही इस्तेमाल करते थे या फिर बिल्कुल नहीं करते थे।

विकास दर को नीचे ले जा सकती है नोटबंदी

  • तीन सप्ताहों के अनुसार अगर गणना की जाए तो विभिन्न क्षेत्रों में पड़ने वाला नोटबंदी का नकारात्मक असर विकास दर को काफी नीचे ले जा सकता है।
  • अनुमान लगाए जा रहे हैं कि विकास दर 3.5 से 6.5 प्रतिशत तक नीचे रहेगी, हालांकि यह बहुत हद कर निवेश के रुख पर भी निर्भर करता है।
  • नोटबंदी भ्रष्टाचार को खत्म करने की छोटी सी रणनीति हो सकती है लेकिन इससे आम आदमी को बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी है।

मुंबई स्थित इक्विटी अनुसंधान फर्म एंबिट कैपिटल के आकंड़ों के अनुसार, नोटबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही में GDP विकास दर 0.5 प्रतिशत गिरने का अनुमान है। इसका मतलब यह है सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अक्टूबर 2016 से मार्च 2017 तक 0.5 प्रतिशत नीचे जा सकती है।

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