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Hindi News धर्म चाणक्य नीति Chanakya Niti: अगर जीवन में लगानी है बड़ी छलांग, तो चाणक्य की ये बात कर लें नोट

Chanakya Niti: अगर जीवन में लगानी है बड़ी छलांग, तो चाणक्य की ये बात कर लें नोट

आचार्य चाणक्य की नीतियां हमारे जीवन का सही मार्गदर्शन करती हैं। वह एक नीति में सलाह देते हुए कहते हैं कि भावनाओं में बहकर या जल्दबाजी में निर्णय लेने वाले व्यक्ति के हाथ पछतावे के सिवा कुछ नहीं लगता है। ऐसा कहने के पीछे आखिर चाणक्य का क्या तात्पर्य है आइए जानते हैं।

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Chankaya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में बड़ी-बड़ी बातें बताई हैं। उनकी कुछ बातें तो लोगों के लिए आज भी सोने पर सुहागा है। वह एक कुशल विद्वान थे, उन्हें वेद, शास्त्र और अर्थशास्त्र का गहन ज्ञान था। चाणक्य को उनकी नीतिशास्त्र के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी नीति के माध्य से मानव हित और कल्याण की बात की है। आज हम आपको चाणक्य की एक ऐसी नीति के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि जीवन में कुछ फैसले बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए। आखिर क्या है इसके पीछे की चाणक्य नीति आइए जानते हैं।

आचार्य चाणक्य की नीति इस प्रकार से-

कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धि: कर्मानुसारिणी।
तथापि सुधियश्चार्याः सुविचार्यैव कुर्वते॥

आचार्य चाणक्य अपनी इस नीति में कर्म के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कर्मफल व्यक्ति के कर्म के अधीन ही रहता है। मनुष्य की बुद्धि भी कर्म के अनुसार ही कार्य करती है। फिर भी ज्ञानी व्यक्ति भली-भांति सोच-समझकर ही किसी कार्य को शुरू करते हैं। अगर बिना सोचे समझे आप किसी कार्य को करेंगे तो सफलता हाथ नहीं लगेगी। किसी भी कार्य को करने से पहने उसके लिए एक अच्छी नीति बनाएं तब उस कार्य में जुट जाएं, आपको सफलता निश्चित मिलेगी।

कुछ भी करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है। उनका कहना है कि प्रत्येक बात को अच्छी तरह से सोच समझ कर उसका आंकलन करने के बाद ही उस कार्य पर विचार करना चाहिए। कुलमिलाकर उनका यही कहना है कि बिना-सोचे समझे एकाएक किसी भी कार्य की शुरुआत करना ठीक नहीं है। जो भी कार्य हम करने जा रहे हैं पहले उस पर गंभीरता से विचार कर लें और सही तैयारी के साथ ही उस कार्य को करने में भलाई है। जीवन में निर्णय लेना जरूरी है लेकिन उसके लिए विचार विमर्श भी करना पड़ता है। जो लोग जल्दबाजी में फैसला लेते हैं उन्हें पग-पग पर निराशा हाथ लगती है, वहीं अगर एक सटीक योजना बना कर किसी कार्य को करते हैं तो दिमांग में यह बात स्वीकार होती है कि यहा कार्य में क्यों कर रहा हूं और इसका परिणाम क्या होगा। एकबार मन किसी बात को स्वीकार कर लेता है तो कितनी बार भी निराशा हाथ लगे व्यक्ति की हिम्मत नहीं टूटती है। कहते भी हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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