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क्रिकेट में धोनी की तरह दिमाग पढ़ने वाला कोई नहीं हुआ : आशीष नेहरा

आशीष नेहरा ने कहा मैंने पहली बार 2004 की शुरुआत में महेंद्र सिंह धोनी को पाकिस्तान जाने से पहले देखा था। 

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हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का अलविदा कहने वाले पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की अगुवाई में 2011 में विश्व कप जीतने वाले भारतीय तेज गेंदबाज आशीष नेहरा ने पीटीआई-भाषा के लिए कॉलम लिखकर इस दिग्गज खिलाड़ी के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करने अनुभवों को बताया। भारतीय टीम के अलावा नेहरा ने चेन्नई सुपरकिंग्स की टीम में भी धोनी के नेतृत्व में खेला है। 

आशीष नेहरा ने कहा मैंने पहली बार 2004 की शुरुआत में महेंद्र सिंह धोनी को पाकिस्तान जाने से पहले देखा था। यह दलीप ट्रॉफी का फाइनल था और मैंने वापसी की थी लेकिन तब कप्तान सौरव गांगुली ने मुझसे कहा कि ‘आशु, फाइनल खेलो और मुझे बताओ कि तुम कैसा महसूस कर रहे हो’। यह वह मैच था जहां मैंने पहली बार एमएस धोनी को गेंदबाजी की थी और मुझे याद नहीं है कि उन्होंने कितने रन बनाये थे, लेकिन एक बार जब आप भारत के लिए खेलते है तो आपको अंदाजा हो जाता है कि वह कैसा करेगा। 

उस संक्षिप्त समय में मैंने जो देखा, उससे मुझे अहसास हुआ कि वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बने रह सकते है। उस समय मैं लगातार 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहा था और उसका एक शॉट गलत तरीके से बल्ले पर लगने के बाद भी गेंद सीमा रेखा के पर छह रनों के लिए चली गयी। 

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उसकी ताकत ने मुझे चकित कर दिया था। अगर आप मुझे उनकी विकेटकीपिंग के बारे में पूछते हैं, तो वह निश्चित रूप से सैयद किरमानी, नयन मोंगिया या किरण मोरे के करीब भी नहीं थे। लेकिन समय के साथ, वह बेहतर होते गये और जब उन्होंने अपना करियर समाप्त किया, तो वह अपने दिमाग और फुर्ती के कारण सबसे तेज हाथों वाले कीपर बन गये थे। 

जब वह भारतीय क्रिकेट में आये थे तो वह ज्यादा जिम नहीं जाते थे लेकिन वे नियमित रूप से बैडमिंटन और फुटबॉल खेलते थे जिससे उनके शरीर का निचला हिस्सा काफी ताकतवर था। जब वह 2004-05 सत्र में भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में पहुंचे तो मेरी पहली धारणा क्या थी? मैं कहूंगा कि वह खुद तक सीमित रहने वाले व्यक्ति थे और गलती होने पर माफी मांग लेते थे। 

हम में से पांच - सचिन तेंदुलकर, हरभजन सिंह, युवराज सिंह, जैक (जहीर खान) और खुद मैं दौरे के दौरान ज्यादातर समय एक साथ रात का खाना खाते थे। मुझे याद नहीं है कि धोनी कभी हमारे साथ आए हो। वह हमेशा आरक्षित रहते थे। वह कभी किसी सीनियर क्रिकेटर के कमरे में नहीं जाते थे और ज्यादातर समय खुद तक सीमित थे। 

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यह 2004-05 की बात थी लेकिन जब तक मैंने आखिरी बार 2017 में खेला, तब भी वह लगभग उसी तरह थे। उन तक आसानी से पहुंचा जा सकता था लेकिन वह खुद अपने कमरे में रहना पसंद करते थे, उनका कमरा सभी के लिए खुला रहता था। संभवतः वह एकमात्र क्रिकेटर रहे है, जो कभी किसी के कमरे में नहीं गये, लेकिन हमेशा जूनियर क्रिकेटरों का स्वागत करते थे। 

आप कभी भी माही के कमरे में प्रवेश कर सकते हैं, फोन उठा कर कुछ मांगा सकते हैं, वीडियो गेम खेल सकते हैं, क्रिकेट खेल के बारे में बात कर सकते हैं, और यदि आपके पास क्रिकेट से जुड़ी कोई समस्या है, तो आप उसे बता सकते हैं। लेकिन हां, वह कोई बाहरी गॉसिप या पीठ पीछे किसी की बुराई नहीं सुनना चाहते थे। वह चर्चा को अभी दूसरी तरफ भटकने नहीं दते थे। यही कारण है कि वह हमेशा चाहते थे कि ड्रेसिंग रूम में मुद्दों का हल वही निकले । वहां की बाते बाहर ना जाए। 

उनका सबसे बड़ा कौशल अविश्वसनीय रूप से मजबूत उनका दिमाग था जिसकी वजह से आज वह ऐसे बने है। अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैंने ऋषभ पंत को सोनेट (टूर्नामेंट) में देखा है, जब वह 14 साल के चुलबुले बच्चे थे, मुझ पर भरोसा करिये कि 22 साल के पंत में उस धोनी से ज्यादा स्वाभाविक प्रतिभा थी जिन्होंने 2004 में 23 साल के पहली बार खेला भारत के लिए था। मैंने धोनी के बारे में यह सुना है वह खिलाड़ियों की पहुंच से दूर रहते है जो बिल्कुल गलत है। उनके मन में सभी वरिष्ठ खिलाड़ियों के लिए बेहद सम्मान था। 

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मैं यह विश्वास दिला सकता हूं कि उन्होंने दिमाग पढ़ने क्षमताओं के कारण बदलाव के दौर में टीम को बहुत अच्छी तरह से संभाला था। उन्होंने सबको सम्मान दिया और इसलिए उन्हें सम्मान मिला। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने किसी खिलाड़ी को उसके बारे में स्थिति से स्पष्ट रूप से अवगत नहीं कराया कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। वह सबसे अच्छे से बेहतर क्यों है? क्योंकि धोनी से बेहतर भावनाओं को कोई नियंत्रित नहीं कर सकता था। आपको क्या लगता है, वह कभी भी आहत, अपमानित या क्रोधित नहीं हुआ? लेकिन वह इसे छुपाना जानता थे। यह उसका दूसरा स्वभाव है। उनमें दूसरे के दिमाग को पढ़ने की शानदार क्षमता है जिसके कारण वह सबसे अच्छे व्यक्ति-प्रबंधकों में से एक बने। 

उन्होंने 2009 और 2011 के बीच टीम में मेरी वापसी को शानदार तरीके से संभाला था। उन्होंने मुझ से पॉवरप्ले में ज्यादा ओवर डलवाये और तीन या चार स्पैल में मुझ से गेंदाबजी करवाया। जिस मैच में जहां आप 325 रन के लक्ष्य का बचाव कर रहे होतो थे वह कहते थे ‘ अगर आप ने 70 रन भी दे दिये तो भी चिंता की कोई बात नहीं, जब तक आपको विकेट मिलते हैं। मैं आपके साथ हूं।’’ 

उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उस समय के चयनकर्ता टीम में खिलाड़ियों को ज्यादा अंदर-बाहर नहीं करें। वह आखिरी ओवरों में गेंदबाजी करवाने को लेकर काफी स्पष्ट थे। दिमाग पढ़ने के मामले में आप धोनी को पछाड़ नहीं सकते। अगर उन्हें पता रहता था कि किसी खिलाड़ी में सीमित क्षमताएं हैं, तो वह उसे बिना निराश किये या बिना गुस्सा दिखाये उसका बेहतरीन उपयोग करते थे। 

वह टी20 क्रिकेट में अपने गेंदबाजों को जानते थे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में मेरे अंतिम चरण के दौरान, वह मुझे पॉवरप्ले में तीन ओवर करवाते थे जबकि दूसरी ओर से तीन अलग-अलग गेंदबाज ओवर डालते थे। सभी संसाधनों से उपयोग लेना उनकी ताकत थी और सुरेश रैना, रविंद्र जडेजा जैसे शीर्ष अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाना उनके सबसे बड़े योगदानों में से एक रहा है। 

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