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US Federal Reserve : अमेरिकी केंद्रीय बैंक के फैसले का जानिए आपकी जेब पर क्या होगा असर?

जब 2020 में कोविड -19 ने दुनिया को अपनी चपेट में लिया, तब अमेरिकी फेडरल रिजर्व वैश्विक मंदी को रोकने में सबसे आगे रहा था।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: January 25, 2022 19:57 IST
US Fed- India TV Paisa
Photo:AP

NY Stock Exchange

Highlights

  • तय है कि 26 जनवरी को यूएस फेडरल रिजर्व अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी करेगा
  • माना जा रहा इसका असर भारत सहित एशिया और यूरोप के देशों पर भी देखने को मिलेगा
  • डॉलर की मजबूती से सोना, तेल आदि भी महंगा हो जाएगा

'अमेरिका को छींक आती है तो दुनिया को जुखाम हो जाता है' यह कहावत 2022 में भी काफी हद तक सच होती दिख रही है। दरअसल अमेरिकी केंद्रीय बैंक यानि यूएस फैडरल रिजर्व की बैठक 25 जनवरी को शुरू हो चुकी है। यह तय है कि 26 जनवरी को यूएस फेडरल रिजर्व अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी करेगा। ऐसे में माना जा रहा इसका असर भारत सहित एशिया और यूरोप के देशों पर भी देखने को मिलेगा। अर्थशास्त्रियों की मानें तो इससे भारत में भी रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा, वहीं डॉलर की मजबूती से सोना, तेल आदि भी महंगा हो जाएगा। 

जब 2020 में कोविड -19 ने दुनिया को अपनी चपेट में लिया, तब अमेरिकी फेडरल रिजर्व वैश्विक मंदी को रोकने में सबसे आगे रहा था। अब जहां अर्थव्यवस्था अपने पैरों पर वापस खड़ी हो रही है और श्रम बाजार कोविड पूर्व के स्तर पर वापस आ रहा है, फेड अपनी बैलेंस शीट को वापस आकार देने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर रहा है।

क्या जल्द ही अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ाना शुरू करेगा?

इस बात के मजबूत संकेत हैं कि 2022 में दरें तेजी से बढ़ेंगी। फेडरल रिजर्व बोर्ड के सदस्य अब अनुमान लगा रहे हैं कि फेड फंड की दर 2022 में 0.6 से 0.9 प्रतिशत और 1.4 से 1.9 तक होगी। वर्तमान में दर 0.1 प्रतिशत है। 

भारत जैसे उभरते बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

फेड द्वारा फंड में कमी और फेड फंड की दरें बढ़ने से भारतीय कंपनियों के लिए विदेशी वित्त की उपलब्धता और लागत पर असर पड़ेगा। अप्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय इक्विटी और बॉन्ड बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह का है। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाली मुद्राओं में उधार लेते हैं। इसे कैरी ट्रेड कहा जाता है, जो आंशिक रूप से भारत और अन्य जगहों पर शेयरों में तेजी के लिए जिम्मेदार है। जैसे-जैसे दरें बढ़ना शुरू होती हैं, वैश्विक बिकवाली के कारण कैरी ट्रेड उलट सकता है। 

क्या इससे भारत में भी ब्याज दरें बढ़ेंगी?

हां, फेड की हरकतों का असर आरबीआई पर जरूर पड़ेगा। यदि यूएस में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो यूएस और भारत सरकार के बॉन्ड के बीच का अंतर कम हो जाएगा, जिससे वैश्विक फंड भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों से पैसा निकालेंगे। इसलिए भारतीय बॉन्ड बाजार से FPI के बहिर्वाह को रोकने के लिए RBI को भारत में ब्याज दरें बढ़ानी होंगी।

फेड की गतिविधियों से रुपये पर क्या असर पड़ेगा?

रुपया तीन कारकों से प्रभावित होता है। एक, अमेरिकी डॉलर और मजबूत होगा क्योंकि डॉलर मूल्यवर्ग की प्रतिभूतियों की ब्याज दरें अधिक बढ़ने लगती हैं। इससे रुपये में गिरावट आएगी। दूसरा, अगर एफपीआई स्टॉक और बॉन्ड बाजारों से पैसा निकालना जारी रखते हैं तो इससे रुपया भी कमजोर होगा। तीसरा, यदि वैश्विक जोखिम से बचने में वृद्धि होती है, तो आम तौर पर जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों जैसे कि सोने और अमेरिकी ट्रेजरी उपकरणों में पैसा निकाला जाता है। इसका असर रुपये पर भी पड़ेगा।

क्या भारत में महंगाई बढ़ेगी?

विशेषज्ञों के मुताबिक, रुपये में कमजोरी से भारत को कच्चे तेल की खरीदारी के लिए पहले के मुकाबले अधिक रुपये खर्च करने होंगे। कच्चे तेल की खरीद मूल्य बढ़ने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें और बढ़ेंगी, जिससे अन्य चीजों की ढुलाई लागत में इजाफा होगा और उसका असर खुदरा कीमत पर दिखेगा। इसके अलावा आयात होने वाले सभी कच्चे माल की खरीदारी के लिए पहले के मुकाबले अधिक रुपये खर्च करने होंगे, जिस कारण उन कच्चे माल से बनने वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे।

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