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Hindi News बिहार लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से मिली जमानत, लेकिन फिलहाल जेल में ही रहेंगे

लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से मिली जमानत, लेकिन फिलहाल जेल में ही रहेंगे

बिहार में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है

<p>Lalu Prasad Yadav grandted bail by Jharkhand High Court...- India TV Hindi Image Source : FILE Lalu Prasad Yadav grandted bail by Jharkhand High Court in chaibasa treasury case

रांची। बिहार में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। लालू प्रसाद यादव को यह जमानत चाईबासा ट्रेजरी मामले में मिली है, सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में लालू को 5 साल की सजा सुनाई हुई है। हालांकि जमानत मिलने के बावजूद लालू यादव अभी जेल में ही रहेंगे क्योंकि वे दूसरे मामलों में भी सजा भुगत रहे हैं। 

जिस मामले में उन्हें जमानत मिली है, वह चारा घोटाले केस में चाईबासा कोषागार से 33 करोड़ 67 लाख रुपये के गबन का मामला है। यह मामला 1992-93 के दौरान का है। इस दौरान लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को इस मामले में सीबीआई के विशेष जज स्वर्ण शंकर प्रसाद की अदालत ने 24 जनवरी 2018 को सजा सुनाई थी।

क्या है चारा घोटाला?

यह चर्चित घोटाला बिहार के पशुपालन विभाग की पूरी तस्वीर बयान करता है कि किस तरह से फर्जी बिलों के जरिए ट्रेजरी से पासा निकाला गया। न जानवारों के लिए चारा खरीदा गया और नहीं दवाएं खरीदी गई। इतना ही नहीं पशुपालन विभाग से जुड़े उपरकरणों की सप्लाई हुई। 950 करोड़ का यह घोटाला 1996 में सामने आया और हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच CBI को सौंपी। 

इसके बाद आरोपियों पर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का केस दर्ज कराया गया। 1997 में लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जुलाई 1997 में पहली बार उन्हें जेल जाना पड़ा। नया राज्य बनने के बाद केस 2001 में रांची ट्रांसफर हो गया। इस घोटाले के दौरान लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भी थे।

जाली दस्तावेजों से दवा-चारे की खपत दिखाई गई और बड़ी कंपनियों के नाम से फर्जी आवंटन पत्र बनवाए गए। 1991 से 1994 के बीच फर्जी दस्तावेजों से पैसे निकाले गए। लालू प्रसाद को फर्जीवाड़े की जानकारी 1993 में हो गई थी। लेकिन लालू प्रसाद ने फर्जीवाड़ा नहीं रोका और जांच रुकवाने के हथकंडे अपनाए। इतना ही नहीं लालू ने इस घोटाले के आरोपी को नौकरी में एक्सटेंशन भी दिया।