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मोदी सरकार पर लगे आक्षेप पूर्वाग्रह से ग्रस्त

जब से मोदी ने कार्यभार संभाला है उन पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उनकी सोच देश के हित में नहीं बल्कि सांप्रदायिक, विभाजक और बैर भाव बढा़ने वाली है। पिछले साल भर

मोदी ने सबका साथ सबका...- India TV Hindi मोदी ने सबका साथ सबका विकास जैसा आचरण ही किया

जब से मोदी ने कार्यभार संभाला है उन पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उनकी सोच देश के हित में नहीं बल्कि सांप्रदायिक, विभाजक और बैर भाव बढा़ने वाली है। पिछले साल भर का अनुभव यह दर्शाता है कि ये आक्षेप कितने पूर्वाग्रहग्रस्त थे जहां तक मोदी का प्रश्न है उन्होंने अपने चुनावी वादे-नारे के अनुसार ही आचरण किया है- सबका साथ-सबका विकास। समावेशी सोच के साथ कोई समझौता नहीं किया गया है। हां कुछ घटनाएं निश्चय ही चिंताजनक रहीं हैं जैसे  धर्मांतरण और घर वापसी वाला अनावश्यक धूर्ततापूर्ण प्रकरण। पर क्या यह सच नहीं कि यह वारदातें उन राज्यों से शुरू हुईं जहां भाजपा विरोधी दल शासन कर रहे हैं?

क्या यह सोचना तर्क संगत नहीं कि इन्हें भोली जनता को भावावेश में भरने के लिए अंजाम दिया गया? क्यों इनकी जांच और शमन दमन में राज्य सरकारें अक्षम रहीं जबकि यह जिम्मेदारी उनकी थी? ईसाई अल्पसंख्यकों पर , उनके उपासना सस्तलों पर आगज़नी तोडफोड की घटनाएं भी इसी श्रेणी में रखी जानी चाहिए। इनका अचानक विस्फोट-चुनावों की पूर्वसंद्धया में देशी-  विदेशी मानवाधिकार संरक्षक संगठनों की प्राथमिकता के अनुसार संचालित लगता है। 

सामाजिक संदर्भ में जो बात हमारे लिए चिंता का विषय है वह सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती है। पर यहां भी यह याद रखें कि बजट राशि का एलान या आंवटन हमें लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकता। इसके समुचित उपयोग की चिंता होनी चाहिए। संभवतः भ्रष्टाचार के कारण ही इन की कतर ब्यौंत हुई है। जन धन योजना और जनसाधारण के लिए बीमा और पेंशन योजना का अवमूल्यन  साधन संपन्न शहरी ही कर सकते हैं जिन्हें इस चिल्लर की जरूरत नहीं। जिन्हें इनका लाभ होगा उनके लिए यह वरदान हैं। 

कन्या शिशु की तरफ ध्यान दिया गया , स्वच्छता को सर्वोच्च फ्राथमिकता। इनके सामाजिक परीणाम दूरगामी होंगे भले तत्काल नजजर ना आएं। इन फेसलों का स्वागत विपक्षियों ने भी किया है।       (लेखक जाने-माने पत्रकार हैं।)