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Hindi News एजुकेशन विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम

विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम

रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास केंद्र जबलपुर, यूजीसी और दिल्ली विश्वविद्यालय के माता सुंदरी कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन द्वि साप्ताहिक फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम आयोजित किया गया।

<p>Faculty Development Program for University Teachers</p>- India TV Hindi Image Source : FILE Faculty Development Program for University Teachers

नई दिल्ली। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास केंद्र जबलपुर, यूजीसी और दिल्ली विश्वविद्यालय के माता सुंदरी कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन द्वि साप्ताहिक फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम आयोजित किया गया। इसके समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि देश की जानी मानी संस्कृत की विदुषी प्रोफेसर प्रज्ञा मिश्रा थीं। दो सप्ताह तक चले पुनश्चर्या कार्यक्रम में देशभर के 45 प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया।

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में संस्कृत की प्रोफेसर प्रज्ञा मिश्रा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय साहित्य के विविध रूपों में भारत की संस्कृति परम्परा और उसके आधुनिकता के तत्व मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि जब हम साहित्य की बात करते हैं तो कबीर, तुलसी, नानक, एकनाथ की पूरी परम्परा हमारे पास मौजूद है।

अगर हम अपने साहित्य का अध्ययन करें तो हमें ज्ञान के साथ-साथ प्रकृति, तीज त्यौहार, रहन- सहन, खान-पान, पर्यावरण संरक्षण, मनुष्य का मनुष्य के प्रति संवेदनशील होना आदि तमाम बातों की जानकारी हमें मिल जाती है। प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि हमारे देश में बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से प्रत्येक तत्व मौजूद हैं। वह दर्शन, चिंतन, मनन, साहित्य, ज्ञान आज तमाम तत्वों का अन्वेषण और विवेचन स्वंय में उपलब्ध होता है।

प्रोफेसर मिश्रा ने बताया कि साहित्य हमें बताता है कि जल, जंगल और जमीन की बात करते हुए कैसे हम प्रकृति के महत्व को समझें। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा के महत्व को समझें चाहे वह मराठी हो, तेलगु हो या अवधी भाषा हो। हमें भाषा के महत्व को जानना और समझना चाहिए, तभी सही अर्थों में विकास कर सकते हैं। उनका कहना था कि हमें अंग्रेजी से कोई समस्या नहीं है लेकिन भाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है।

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के संयोजक डॉ संजीव कुमार पाण्डेय ने बताया है कि द्वि साप्ताहिक इस फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में शिक्षकों और शिक्षण में सुधार के लक्ष्य को लेकर चलने वाले पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से 45 शिक्षकों ने इसमें भाग लिया।

उनके अनुसार प्रशिक्षण के दौरान अपने विषय के विशेषज्ञों को बुलाकर विभिन्न विषयों जैसे श्रमीडिया, दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, विक्लांग की समस्याओं, पर्यावरण, नई शिक्षा नीति, हिंदी पत्रकारिता, इतिहास, दर्शन शास्त्र, आत्मकथाओं, कविता, वैदिक साहित्य और संस्कृति आदि पर दो दर्जन से अधिक रीसोर्स पर्सन को बुलाया गया था।

उन्होंने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे कार्यो से अवगत कराया और कहा कि हम उच्च शिक्षा में किसी से पीछे नहीं है। उन्होंने कहा कि जो विचार आप यहां से लेकर जा रहे हैं उसे अपने विद्यार्थियों में संचार करें, तभी वास्तविक शिक्षा का अर्थ होगा उन्हें ज्ञान देना।

प्रतिभागियों की तरफ से डॉ हंसराज 'सुमन ' ने द्वि साप्ताहिक पुनश्चर्या पाठ्यक्रम की समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को ऐसी कार्यशाला आयोजित करनी चाहिए जो शिक्षक उपयोगी हो जिनका अध्यापन कार्य के समय उपयोग कर सके।
 

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