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झारखंड में भी टूटकर बिखर गया बीजेपी से मुकाबले के लिए बना महागठबंधन? जानें, पूरा हाल

इसी वर्ष झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं, मगर महागठबंधन में शामिल दल अपने-अपने राग अलाप रहे हैं।

Leaders of Mahagathbandhan in Jharkhand | PTI File Photo- India TV Hindi Leaders of Mahagathbandhan in Jharkhand | PTI File Photo

रांची: लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को रोकने के लिए झारखंड में विपक्षी दलों को एकजुट कर बना महागठबंधन चुनाव में मिली करारी हार के बाद खंड-खंड होकर बिखरता नजर आ रहा है। इसी वर्ष झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं, मगर महागठबंधन में शामिल दल अपने-अपने राग अलाप रहे हैं। लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को झारखंड में रोकने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), झारखंड विकास मोर्चा (JVM) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने मिलकर महागठबंधन बनाया था, परंतु चुनाव के दौरान ही चतरा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस व RJD के दोस्ताना संघर्ष से महागठबंधन की दीवार दरकने लगी थी। इसके बाद तो भाजपा के हाथों मिली करारी हार के बाद महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर ही हार का ठिकरा फोड़ते रहे हैं। दीगर बात है कि कोई भी दल महागठबंधन से अलग होने की बात नहीं कर रहा है, परंतु सभी दलों के नेताओं के बोल ने इनके एक साथ लंबे समय तक रहने पर संशय जरूर बना दिया है। 

‘कांग्रेस को मैदान में अकेले ही उतरना चाहिए लेकिन...’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता आलोक दूबे स्पष्ट कहते हैं, ‘कांग्रेस पिछले कई चुनावों में गठबंधन के साथ चुनाव में जाती रही है इसका लाभ अन्य दल तो उठा लेते हैं, परंतु कांग्रेस को उसका लाभ नहीं मिल पाता।’ उन्होंने झामुमो का नाम लेते हुए कहा कि झामुमो अपने वोटबैंक को कांग्रेस उम्मीदवारों को नहीं दिलवा पाते है, जिसका नुकसान अंतत: कांग्रेस को उठाना पड़ता है। उन्होंने बिना किसी के नाम लिए लोकसभा चुनाव की चर्चा करते हुए कहा कि कई सीटों पर समझौता होने के बावजूद गठबंधन में शामिल दलों ने उन क्षेत्रों से प्रत्याशी उतार दिए, जिसका नुकसान गठबंधन को उठाना पड़ा। दूबे 'एकला चलो' की बात को जायज बताते हुए कहा कि कांग्रेस को अकेले चुनाव मैदान में उतरना चाहिए परंतु वे कहते हैं कि कांग्रेस में तय तो आलाकमान को ही करना है।

‘लोगों के बीच नहीं है राहुल गांधी की स्वीकार्यता’
इधर, झाविमो के वरिष्ठ नेता सरोज सिंह कहते हैं कि अभी महागठबंधन पर कुछ भी बोलना जल्दबाजी है। उन्होंने कहा कि गठबंधन का प्रयोग अब तक पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। उन्होंने झामुमो को 'बड़ा भाई' मानने पर सीधे तो कुछ नहीं कहा परंतु इतना जरूर कहा कि गठबंधन में सम्मानजनक समझौता होना जरूरी है। झामुमो के विधायक कुणाल झामुमो को अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से लोगों में स्थानीय समस्याओं को लेकर गलत संदेश जाता है, जिसका नुकसान झामुमो को उठाना पड़ता है। कुणाल यहीं नहीं रूकते। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की स्वीकार्यता भी लोगों के बीच नहीं है।

झारखंड में 2 धड़ों में बंट गया है राष्ट्रीय जनता दल
झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन और मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यो को लेकर मतदाता मतदान करेंगे। गठबंधन में शामिल दलों द्वारा हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं मानने के संबंध में पूछे जाने पर पांडेय कहते हैं कि यह तो तय है। झाविमो के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहते हैं कि झाविमो अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी किसी भी सूरत में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनावी मैदान में नहीं उतरना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी को प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने से गठबंधन को नुकसान हो सकता है। इस बीच, लोकसभा चुनाव के परिणाम के 'साइड इफेक्ट' में झारखंड में राजद दो धड़ों में बंट गया है। राजद ने अभय सिंह को झारखंड का अध्यक्ष घोषित कर दिया है जबकि राजद के पूर्व अध्यक्ष गौतम सागर राणा ने राजद (लोकतांत्रिक) पार्टी बनाकर अलग राह पकड़ ली है।

आसान नहीं होगा विपक्षी दलों को एकजुट कर पाना
राजद (लोकतांत्रिक) के कार्यकारी अध्यक्ष कैलाश यादव कहते हैं कि उनकी पार्टी को किसी से परहेज नहीं है। उन्होंने कहा कि NDA हो या महागठबंधन राज्यहित में किसी के साथ भी जा सकते हैं। राजद के अध्यक्ष अभय सिंह महागठबंधन को तो जरूरी मानते हैं परंतु यह कहने से नहीं हिचकते हैं कि विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी को अपना अहं छोड़ना होगा। उन्होंने स्पष्ट कहा, ‘कांग्रेस का बहुत जनाधार झारखंड में नहीं है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों से समझौता करना होगा वरना जो हाल अभी कांग्रेस का हुआ है, वैसा ही होता रहेगा।’ बहरहाल, झारखंड में लोकसभा चुनाव की हार से अभी महागठबंधन बाहर भी नहीं निकल पाया कि उसके अंदर विवाद की जमीन तैयार होने लगी है। ऐसे में तय है कि विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के एकजुट करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है।