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किस किसको प्यार करूँ फिल्म रिव्यू

कलाकार- कपिल शर्मा, एली अवराम, वरुण शर्मा, अरबाज खान, मंजरी फडनिस निर्देशक- अब्बास-मस्तान शैली- कॉमेडी संगीत- जावेद मोशिन, अमजद, नदीम अब्बास-मस्तान अपनी थिलर शैली के लिए जाने जाते हैं वहीं कॉमेडी की अगर बात करे

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कलाकार- कपिल शर्मा, एली अवराम, वरुण शर्मा, अरबाज खान, मंजरी फडनिस

निर्देशक- अब्बास-मस्तान

शैली- कॉमेडी

संगीत- जावेद मोशिन, अमजद, नदीम

अब्बास-मस्तान अपनी थिलर शैली के लिए जाने जाते हैं वहीं कॉमेडी की अगर बात करे तो फिल्म जैसे 'बादशाह' और '36 चाइना टाउन' ने उनकी कमाल की फिल्मोग्राफी को हल्का ही किया है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो फिर से इस शैली में अपना लक आजमा नहीं सकते। तो एक बार फिरसे वो फिल्म ‘किस किसको प्यार करू’ में कॉमेडी का तड़का डालते है वो भी कॉमेडी के किंग कपिल शर्मा की मदद से। कपिल शर्मा किसी  परिचय के मोहताज नहीं है लेकिन छोटे पर्दे से अपने आपको बड़े पर्दे पर ढ़ालना और उतना ही तीव्रता से अपने दर्शकों को प्रभावित करना हर कॉमेडियन के बस की बात नहीं है और ये हम फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ में देख चुके हैं जिसमें लाफ्टर नाइट्स का लगभग पूरा परिवार था और कमान थी राजू श्रीवास्तव के हाथ में।

बहरहाल किस किसको प्यार करु की अब बात हो रही है तो आपको बता दें कि इसकी कहानी 90 और 2000 के दशक में बनी गोविंदा की उन फिल्मों का लेखा-जोखा है जिसमें वो दो महिलाओं के साथ प्रेम प्रसंग चलाते थे। उसमें डबल ट्रबल था तो अब्बास-मस्तान की फिल्म के मुख्य किरदार के लिए ट्रिपल ट्रबल है जिसमें इजाफा भी होता है।

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SRK मतलब शिव राम किशन (कपिल शर्मा) तीन लडंकियों – जूही (मंजरी फडनिस), सिमरन (सिमरन कौर मुंडी), अंजली (साइ लोकुर) - से शादीशुदा हैं और इन तीनों को उनकी और एक-दूसरी की असलियत पता न चले इसके लिए शिव इन तीनों को अलग-अलग फ्लैट में रखता है। सबके साथ समय बिताने के लिए शिव ये बहाना मारता है कि उनके तीन दफ्तर हैं - हेड आफिस, ब्रॉच आफिस और एरिया आफिस है – और इन तीनों दफ्तरों में उन्हें खूब काम है जिसकी वजह से वो एक रात उनके साथ और दो राते दफ्तरों में बिताएंगे।

मुसीबत तब और बढ़ जाती है जब शिव का पहला प्यार दीपिका (एली अवराम) उनकी जिंदगी में वापस लौट आता है और वो उनसे भी शादी करने का वादा कर बैठते हैं। ये काफी नहीं था कि शिव के माता-पिता (शरत सक्सेना और सुप्रिया पाठक) भी बीच में कूद पड़ते है और वो भी अपने बेटे की करतूत से अंजान है। लेकिन कब तक शिव इन सबको अंधेरे में रख सकेगा?  क्या होगा जब उसका भांडा फूटेगा? अब्बास-मस्तान की ये फिल्म इन सभी सवालों के जवाब देती है।

इस ट्रिपल नहीं बल्कि फोर-वे मुसीबत को अब्बास-मस्तान काफी सरीके से कॉमेडी के साथ पेश करते है। फिल्म के बेहतरीन दृश्यों में से एक है अंडर वॉटर सीन, कर्वा चौथ और मॉल में कन्फ्यूजन वाला सीन। फिल्म की पटकथा, डॉयलाग्स (अनुकल्प गोस्वामी, धीरज सरना) के लिए निर्देशकों की तारीफ करनी होगी जो एक प्रीडिक्टिबल फिल्म को भी रोचक बना देते है खास तौर पर मध्यांकर से पहले।

फिल्म को नुक्सान पहुंचाती है इसकी कहानी जो की कई सारे किरदारों के लदे होने की वजह से समय-समय पर अपनी पकड़ कमजोर करती रहती है। लेकिन जब तक कॉमेडी के बादशाह कपिल शर्मा पर्दे पर है तब तक आप अपनी सीट से चिपके रहते है। पूरी फिल्म में वो बड़ी आसानी से हमें हंसा जाते है वहीं गंभीर सीन में वो हमें भावुक कर चकित भी करते हैं। कॉमेडी टाइमिंग और उनके वन-लाइलर्स का कोई मुकाबला नहीं है और ये फिल्म इस बात को भी साबित करती है।

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फिल्म उनके लिए एक लॉन्च पैड का काम करती है तो अभिनेत्रियों को कम ही समय मिलता है अपने आपके साबित करने का, इसके बावजूद चारो अभिनेत्रियां कम सीन में भी अच्छा प्रदर्शन देती है। कपिल शर्मा के बाद अगर कोई अपनी छाप छोड़ता है तो वो एक वकील के किरदार में वरुण शर्मा हैं जो फिर से हमें आश्चर्य करते हैं। अभिनय के साथ उनके न्यूटन लॉ की परिभाषा दर्शकों में काफी लोकप्रिय होने वाली है। एक बहरे ‘भाई’ के किरदार में अरबाज खान भी अच्छा अभिनय करते हैं।

यही तारीफ हम फिल्म के संगीत, जिसको दिया है जावेद मोशिन, अमजद और नदीम ने, के लिए नहीं कर सकते। फिल्म के गीत स्थिति के हिसाब से ठीक है लेकिन यादगार नहीं वहीं संगीत निराशाजनक है।

कुल मिलाकर फिल्म कपिल शर्मा के लिए एक बार जरूर देखी जा सकती है। वो आपको हंसाने में जरूर कामयाब होंगे।

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