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Hindi News मनोरंजन बॉलीवुड पति ने लिखे बॉलीवुड में गाने, बेटी है एक्ट्रेस, फिर भी इस हाल में रहने को क्यों मजबूर है ये महिला?

पति ने लिखे बॉलीवुड में गाने, बेटी है एक्ट्रेस, फिर भी इस हाल में रहने को क्यों मजबूर है ये महिला?

स दरभंगा हाउस के सामने वो बैठती हैं वो कभी महाराजा कामेश्वर सिंह का महल हुआ करता था। बिहार के गंगा के किनारे ये महल बसा था।

<p>पूर्णिमा</p>- India TV Hindi पूर्णिमा

नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ ना कुछ वायरल होता रहता है, इस बार कुछ ऐसा वायरल हुआ है जिसे देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे। एक बूढ़ी औरत और उसकी दर्दनाक कहानी। जिसके पति के गाने बॉलीवुड में इस्तेमाल हुए, बेटी एक्ट्रेस है और बेटा कभी इलाके का मशहूर गवैया था अब डिप्रेशन में है। पटना के दरभंगा हाउस में गंगा किनारे एक और बैठी रहती है, जो हारमोनियम लेकर गाने गाती रहती है। अपनी कहानी वो गाने गाकर सुनाती है। ऊषा नाम की एक महिला ने उसका वीडियो बनाकर उसकी कहानी लिखकर लोगों को उसकी जो सच्चाई बताई है वो आपको दुखी कर देगी।

ये तस्वीरें पूर्णिमा जी की हैं, जो गाना गाती हैं और जिसे जितनी मर्जी उन्हें पैसे दे देता है जिससे उनका खर्च चलता है। जिस दरभंगा हाउस के सामने वो बैठती हैं वो कभी महाराजा कामेश्वर सिंह का महल हुआ करता था। बिहार के गंगा के किनारे ये महल बसा था।

पूर्णिमा

पूर्णिमा की जी का जन्म 29 दिसंबर 1945 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में महाकाल मंदिर के पुजारी हरिप्रसाद शर्मा के घर हुआ था। पूर्णिमा ने इंटर तक पढ़ाई की और उसके बाद उनकी शादी बाराबंकी के मशहूर फिजिशियन डॉक्टर एचपी दिवाकर से हो गई। दिवाकर डॉक्टर होने के साथ-साथ गाने भी लिखते थे। बतौर पूर्णिमा उनके पति ने बॉलीवुड के गाने शाम हुई सिंदूरी’ और ‘आज की रात अभी बाकी है’ लिखे हैं। उनके लिखे गाने बॉलीवुड में किस तरह पहुंचे ये किसी को नहीं मालूम। उन्हें इन गानों के लिए क्रेडिट भी नही दिया गया। पूर्णिमा की शादी के बाद एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई। संपत्ति के विवाद की वजह से साल 1984 में उनके पति को किसी ने गोली मार दी जिससे उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद पूर्णिमा अपने ससुर और देवर से परेशान थी, जिसकी वजह से उन्हें संपत्ति में अपना हिस्सा छोड़कर भी पटना आना पड़ा। यहां वो अपनी मौसी के साथ रहती थीं, जब तक मौसी जिंदा थीं सब ठीक था लेकिन उनकी मौत के बाद वो फिर से अकेली हो गईं। पूर्णिमा बिल्कुल अकेली हो गई थीं, मायके वालों ने भी उनका साथ नहीं दिया।

ये वही बॉलीवुड गाना है जिसे पूर्णिमा ने अपने पति का लिखा बताया है।

इसके बाद पूर्णिमा ने अपनी कमाई से बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। पटना के एक स्कूल में वो बच्चों को संगीत सिखाने लगी। स्टेज शोज भी किए। बेटा रफी का फैन था वो भी अच्छा गाता था। उसने ऑर्केस्ट्रा ज्वाइन कर लिया और गाने लगा। लेकिन परिवार के दुख देखकर वो खुद को संभाल नहीं पाया और डिप्रेशन में चला गया। बेटी पटना से पढ़ाई करने के बाद मुंबई चली गई। बेटी वहां गई तो कभी नहीं लौटी। कुछ दिन बाद उसके घरवालों ने उसे टीवी सीरियल में देखा, लेकिन वो अपने घरवालों को पहचानने से इनकार करती रही। वो खुद को पटना का ना बताकर गुजरात का बताती है।

पूर्णिमा 1500 रुपये देकर ट्रस्ट द्वारा बनवाए अनुग्रह सेवा सदन में रहती हैं। मंदिर में गाना गाकर उन्हें जो पैसे मिलते हैं उससे वो रूम का किराया भरती हैं। बेटा मानसिक रूप से बीमार है, ना वो कुछ कहता है ना कुछ सुनता है। वो बस अकेले ही रहता है।

यह वीडियो आप देख सकते हैं, जिसमें पूर्णिमा जी अपना दुख दर्द सुना रही हैं।

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