Hungama 2 Review: प्रियदर्शन से बस एक सवाल, ऐसी फिल्म बनाने की क्या जरूरत थी?

शिल्पा शेट्टी के साथ साथ प्रियदर्शन ने भी इस फिल्म के जरिए कमबैक किया है। लेकिन दोनों का कमबैक विफल कहा जाएगा।

विनीता वशिष्ठ 24 Jul 2021, 10:40:45 IST
मूवी रिव्यू:: Hungama 2
Critics Rating: 1 / 5
पर्दे पर: Jul 23, 2021
कलाकार:
डायरेक्टर: प्रियदर्शन
शैली: कॉमेडी
संगीत: अनु मलिक

शिल्पा शेट्टी के कमबैक को लेकर चर्चा में आई हंगामा 2 ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म देखने के बाद जब रिव्यू किया जाता है तो आमतौर पर हर पक्ष देखने के बाद बाकायदा चर्चा होती है कि क्या अच्छा था और क्या अच्छा किया जा सकता था। लेकिन हंगामा 2 देखने के बाद पहला सवाल ये किया जा सकता है कि प्रियदर्शन जैसे डायरेक्टर ने ये फिल्म क्यों और क्या सोचकर बनाई? 

उम्मीद की जा रही थी प्रियदर्शन आठ साल के गैप के बाद कुछ ऐसा ही शानदार शाहकार लेकर आएंगे जिसके लिए वो जाने जाते हैं। सिचुएशनल और साथ सुथरी कॉमेडी ऑफ एरर की विधा में उस्ताद बन चुके प्रियदर्शन की हंगामा 2 में ये सब चीजें इस बार नदारद हैं। 

हंगामा, भूल भुलैया, हेरा फेरी, गरम मसाला, चुप चुप के और मालामाल वीकली जैसी शानदार कॉमेडी फिल्म बनाने वाले प्रियदर्शन से कहां चूक हो गई, ये फिल्म देखने के बाद आप भी जान जाएंगे। 

फिल्म की कहानी कई सारी फिल्मों के छोटे छोटे किस्सों को जोड़कर रची गई है और सब कुछ माएनों में एंटीसिपेटेड है यानी दर्शक को पता चलता रहता है कि आगे क्या होने वाला है, और क्या हो सकता है। समय के साथ कॉमेडी का अंदाज बदला है और ओटीटी पर वेब सीरीज देखने के आदी हो चुकी ऑडिएंस को अब कमर्शियल सिनेमा भी बिलकुल कसे हुए अंदाज में चाहिए। लेकिन हंगामा 2 के साथ ऐसा नहीं है और इसलिए कहा जा सकता है कि प्रियदर्शन इस बार सफल साबित नहीं हो पाए हैं। 

फिल्म की कहानी कई बार देखी जा चुकी है। अपनी बहन के बच्चे को उसका असली घर दिलाने की कोशिश करने वाली हीरोइन और उससे जुदा हो चुका हीरो। बच्चे की कंफ्यूजन और इस कंफ्यूजन में एक दूसरी फैमिली भी कंफ्यूजन में जुड़ जाती है। कॉमेडी ऑफ एरर को सही ढंग से दिखाया जाए तो हंसी फूटना तय है लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं होने पर ऑडिएंस निराश हो सकते हैं।

शिल्पा शेट्टी ने कमबैक के लिए ऐसी फिल्म क्यों चुनी जिसमें उनका रोल ना के बराबर था। हालांकि इतना तय है कि वो बेहद खूबसूरत लगी हैं, जब जब वो दिखती हैं तो उनकी खूबसूरती के साथ साथ उनकी फिट बॉडी इंप्रेस करती है। वो अभी भी काफी स्लिम ट्रिम हैं। लेकिन परेश रावल के साथ उनकी जोड़ी  बिलकुल सूट नहीं कर रही हैं। दूसरी तरफ परेश रावल ने अपने पुराने पैटर्न को ही दोहरा दिया है। उनकी एक्टिंग में कुछ नया नहीं दिखा है। आपको सलमान खान की फिल्म रेडी याद होगी, परेश रावल यहां सेम ऐसा ही रवैया अपनाते दिखे हैं। 

मीजान जाफरी हैंडसम दिखते हैं लेकिन उन्हें एक्टिंग पर ध्यान देना होगा। उनके चेहरे पर इमोशंस नहीं दिखते। सुख हो या दुख, गुस्सा हो या हंसी, वो एक जैसा रिएक्ट करते दिखे हैं।

फिल्म में आशुतोष राणा भी अहम रोल में हैं लेकिन उनके रोल में बहुत लाउडनेस दिख रही है। यानी जब वो व्यग्र दिखते हैं तो काफी बनावटी लगता है। राजपाल यादव को देखकर लगता है कि उम्र उन पर हावी हो रही है और अब ऐसे रोल करने में मिसफिट होने लगे हैं जिसके लिए वो जाने जाते हैं।

फिल्म का सबसे सुखद और याद रखने वाला पक्ष है प्रणीता सुभाष। प्रणीता ने फिल्म की शुरूआत में अच्छी एक्टिंग की है। वो आगे जा सकती हैं बशर्तें वो सही स्क्रिप्ट चुनें और अच्छे रोल्स पर ध्यान दें। फिल्म में मनोज जोशी और टिक्कू तलसानिया जैसे एक्टर भी कुछ करने की स्थिति में नहीं दिखे। वो बस खानापूर्ति करते दिखे।
 
2003 में आई सुपरहिट हंगामा के हीरो रहे अक्षय खन्ना को दो सीन के लिए फिल्म में देखना सुखद भी लगा और बुरा भी लगा। वो बेहद कमजोर लगे हैं। उनका वो बेफिक्र, दिल को भा जाने वाली हंसी और स्टाइल वाला वो अंदाज गायब था जिसके लिए वो जाने जाते हैं। लगता है कि हंगामा की सफलता के बाद प्रियदर्शन ने उन्हें लकी चार्म की तरह इस्तेमाल किया है।

फिल्म के गाने औसत की कैटेगरी में आएंगे। अनु मलिक का संगीत है और गीत लिखे हैं समीर ने। लेकिन कुछ अगर सुनने देखने लायक है तो वो है फिल्म के आखिर में मीका सिंह का गाया गाना हंगामा हो गया... बाकी के गाने फिल्म की लंबाई ज्यादा होने की वजह से फॉरवर्ड ही किए जाएंगे ऐसा सोचा जा सकता है। कैमरावर्क की तारीफ की जा सकती है लेकिन लाउडनेस फिल्म का मजा खराब करने के लिए दूसरी विलेन कही जा सकती है। 

संवादों का मसला भी अखरने वाला है। कहीं कहीं समझ नहीं आता कि ये क्यों बोला गया है। बच्चों के सामने हीरो के मुंह से गाली निकलवाने की क्या जरूरत थी। फिल्म में कई जगह अपशब्दों और गालियों का प्रयोग बेतुका है, इससे क्या साबित किया जाना था, ये समझ से परे है।

शैतान बच्चों के लिए टीचर खोजने और बच्चों द्वारा उसे भगा दिए जाने का किस्सा संजीव कुमार और जया बच्चन की फिल्म परिचय से उठाया गया है लेकिन उतना इंप्रेस नहीं करता। 

फिल्म में एडिटिंग की कमी दिखती है। पटकथा कमजोर कही जाएगी और संवाद लिखने वाले ने शायद स्ट्रेस में आकर संवाद लिखे होंगे तभी कॉमेडी फिल्म में कॉमेडी के ही संवाद नहीं दिख रहे। 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शुक्र है कि फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई क्योंकि यहां बॉक्स ऑफिस की दौड़ नहीं है। अगर फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती तो ऑडिएंस के साथ साथ डिस्ट्रिब्यूटरों को भी काफी निराशा होती।