सड़क 2 मूवी रिव्यू: खुद के रिस्क पर ही करें इस फिल्म का 'सफर'

'सड़क 2' से लंबे समय बाद महेश भट्ट ने निर्देशन में वापसी की है। ये 1991 में रिलीज हुई 'सड़क' का सीक्वल है, जिसमें संजय दत्त और पूजा भट्ट लीड रोल में नज़र आए थे।

Sonam Kanojia 29 Aug 2020, 8:08:41 IST
मूवी रिव्यू:: सड़क 2
Critics Rating: 1.5 / 5
पर्दे पर: Aug 28, 2020
कलाकार: आलिया भट्ट
डायरेक्टर: महेश भट्ट
शैली: ड्रामा/थ्रिलर
संगीत: -

आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर की फिल्म 'सड़क 2' डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है। लंबे समय बाद महेश भट्ट ने इस मूवी के जरिए निर्देशन में वापसी की है। ये 1991 में रिलीज हुई 'सड़क' का सीक्वल है, जिसमें संजय दत्त और पूजा भट्ट लीड रोल में नज़र आए थे। ये फिल्म तभी से सुर्खियों में हैं, जबसे इसके ट्रेलर को यूट्यूब पर सबसे ज्यादा डिसलाइक मिले हैं। आइये जानते हैं कि क्या ये दर्शकों की कसौटी पर खरी उतरी है!

'सड़क 2' की कहानी शुरू होती है आर्या (आलिया भट्ट) के सीन है। वो अपनी मां की मौत का बदला, सौतेली मां और धर्मगुरु से लेना चाहती है। आर्या का पूरा परिवार इस ढोंगी बाबा का अंधभक्त है। दूसरी तरफ रवि किशोर (संजय दत्त) अपनी पूजा (पूजा भट्ट) की मौत से बेहद दुखी हैं और जीना नहीं चाहते हैं। अपनी मां की इच्छा के अनुसार आर्या कैलाश मानसरोवर जाने के लिए घर से भाग जाती है। टूर एंड ट्रैवल्स के जरिए आर्या और रवि किशोर की मुलाकात होती है। रवि को आर्या में उसकी बेटी मीशा नज़र आने लगती है। उसे आर्या से लगाव हो जाता है। सड़क पर सफर करते हुए विशाल (आदित्य रॉय कपूर) की एंट्री होती है, जो पहले तो आर्या को मारना चाहता था, लेकिन बाद में उसके प्यार में पड़ जाता है। इस सीधी, लेकिन उलझी हुई कहानी में थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन कई मोड़ आते हैं। आर्या की मां का कातिल कौन है? क्या आर्या अपनी मां की मौत का बदला ले पाती है? क्या विशाल की सच्चाई जानने के बाद वो उसे माफ कर देती है? क्या रवि किशोर खुद को मारने की जिद छोड़ देता है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी होगी। 

अब बात करते हैं कि ये फिल्म कैसी है? इसमें 'सड़क' फिल्म के कई सीन्स को दिखाया गया है। उस मूवी की तरफ इस फिल्म में भी संजय दत्त जिंदगी से निराश हैं। धीमी गति से चल रही इस फिल्म की स्क्रिप्ट और क्लाइमैक्स बेहद कमजोर है। सस्पेंस थोड़ी ही देर में खत्म हो जाते हैं। इमोशनल सीन्स कूट-कूटकर भरे गए हैं, लेकिन दर्शक इससे खुद को कनेक्ट नहीं कर पाते हैं। सब कुछ बहुत बोझिल और उबाऊ है। कोई ऐसा सीन नहीं है, जो आपके चेहरे पर मुस्कान लाए। विलेन का खौफ डराने से ज्यादा हंसाने वाला लगता है। कहानी बेहद सपाट और प्रीडेक्टिबल है। महेश भट्ट की फिल्मों की एक खासियत दिल को छू लेने वाले गाने भी होते थे, लेकिन यहां इसकी भी कमी देखने को मिली। 

एक्टिंग की बात करें तो जीशू सेनगुप्ता (आर्या के पिता) और संजय दत्त के अलावा किसी भी किरदार ने गहरी छाप नहीं छोड़ी है, लेकिन जीशू को स्क्रीन पर ज्यादा समय नहीं मिला और संजय दत्त हर फ्रेम में सिर्फ इमोशनल ही नज़र आए। आलिया भट्ट अपना बेस्ट नहीं दे पाई हैं। आदित्य रॉय कपूर को काफी समय मिला, लेकिन वो कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके। गुरुजी बने मारकंड देशपांडे विलेन कम और फनी ज्यादा लगे। गुलशन ग्रोवर (दिनेश हथकटा) के पास भी ज्यादा कुछ करने को नहीं था। 

सारांश, आशिकी, हम हैं राही प्यार के, दिल है कि मानता नहीं, राज़, जिस्म और मर्डर जैसी तमाम रोमांटिक और थ्रिलर फिल्म बनाने वाले महेश भट्ट इस बार अपना जादू नहीं बिखेर पाए। अगर आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर के फैन हैं, तभी ये फिल्म देखें। इंडिया टीवी इस फिल्म को 5 में से 1.5 स्टार देता है। 

यहां देखें फिल्म का ट्रेलर: