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Hindi News Explainers Explainer: भारत-अमेरिका की "टू प्लस टू'' वार्ता पर क्यों है पूरी दुनिया की नजर, पाकिस्तान और चीन कैसे घबराए?

Explainer: भारत-अमेरिका की "टू प्लस टू'' वार्ता पर क्यों है पूरी दुनिया की नजर, पाकिस्तान और चीन कैसे घबराए?

भारत-अमेरिका के बीच शीघ्र टू-प्लस-टू वार्ता नई दिल्ली में होने वाली है। इसके लिए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आएंगे। वह यहां विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात करेंगे। भारत और अमेरिका इस दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा पर अहम रणनीति बनाएंगे।

भारत-अमेरिका टू प्लस टू वार्ता (प्रतीकात्मक फोटो)- India TV Hindi Image Source : AP भारत-अमेरिका टू प्लस टू वार्ता (प्रतीकात्मक फोटो)

भारत और अमेरिका के बीच होने वाली "टू प्लस टू'' मंत्रिस्तरीय वार्ता को लेकर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इसी हफ्ते यह बैठक शुरू हो सकती है। इस बैठक से पहले भारत और अमेरिका पर पूरी दुनिया की निगाह है। भारत की ओर से इसमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका की तरफ से विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन शामिल होंगे। यह बैठक भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ दोस्ती की नई ऊंचाई तक ले जाने को बेताब है। इससे भारत और अमेरिका दोनों ही देशों की ताकत और बढ़ने की उम्मीद है। 

विशेषज्ञों के अनुसार भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों की वैश्विक साझेदारी के प्रति अटूट प्रतिबद्धता व स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के लिए उनके साझा दृष्टिकोण की पुष्टि करने के वास्ते एक मंच के रूप में काम करेगी। यह बैठक नई दिल्ली में आयोजित की जाएगी। एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इस सप्ताह पांचवीं ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता के लिए अमेरिकी रक्षा और विदेश मंत्री भारत आएंगे। मंत्रालय ने कहा कि ब्लिंकन और ऑस्टिन अन्य वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय एवं वैश्विक चिंताओं एवं हिंद-प्रशांत में जारी गतिविधियों पर चर्चा करेंगे। इस वार्ता पर विशेषकर चीन और पाकिस्तान की भी पैनी नजर है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका की नई ताकत का होगा प्रादुर्भाव

भारत-अमेरिका के बीच होने वाली यह मंत्रिस्तरीय वार्ता कई मायने में दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के लिए काम करेगी।  एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के साउथ एशिया इनिशिएटिव्स की निदेशक फरवा आमेर ने कहा कि एक जटिल और लगातार विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में यह संवाद अमेरिका और भारत की वैश्विक साझेदारी और एक स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए उनकी साझा दृष्टि के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के मंच के रूप में काम करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘आगामी पांचवीं अमेरिका-भारत ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता एक मजबूत साझेदारी को गहरा करने का वादा करती है जिसमें खासकर रक्षा सहयोग के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। इस सप्ताह भारत में होने वाली ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता में दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी शामिल होंगे।

इसलिए घबराया चीन

भारत-अमेरिका की वार्ता के एक अहम बिंदु’’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र भी है, जो एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर सहित पश्चिमी और मध्य प्रशांत महासागर शामिल है। अमेरिका, भारत और कई अन्य विश्व शक्तियां संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधि की पृष्ठभूमि में एक स्वतंत्र, खुले और संसाधन संपन्न हिंद-प्रशांत को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर चर्चा कर रही हैं। जबकि चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर दावा करता है। वहीं ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद है। इन सबको देखते हुए भारत और अमेरिका यहां अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। यह चीन की चिंता और घबराहट की प्रमुख वजह है। भारत-अमेरिका इन क्षेत्रों में अपने नौरक्षकों की संयुक्त तैनाती पर भी विचार कर सकते हैं।

क्वाड में भारत का जलवा

चीन और पाकिस्तान के लिए क्वाड संगठन भी बड़ा सिरदर्द है। भारत-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान क्वाड के सदस्य देश हैं। इन चारों देशों की दोस्ती और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों और वैश्विक आतंकवाद पर प्रहार ने चीन समेत पाकिस्तान को भी चिंता में डाल दिया है। फरवा आमेर आमेर ने कहा कि भारत-अमेरिका के बीच बातचीत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहां यूक्रेन में संकट और इजरायल-हमास संघर्ष की छाया मंडरा रही है। ये संघर्ष सीधे तौर पर अमेरिका-भारत संबंधों से जुड़े नहीं हो सकते हैं, लेकिन वे एक ऐसी पृष्ठभूमि बनाते हैं जो दोनों देशों की रणनीतिक गतिशीलता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि वार्ता के दौरान इन संकटों पर भी व्यापक चर्चा होने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘‘इजरायल-हमास संघर्ष पर भारत ‘क्वाड’ देशों के साथ कहीं अधिक जुड़ा हुआ है, जो गंभीर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ भारत के गहरे जुड़ाव का संकेत है।

भारत-कनाडा विवाद पर भी चर्चा संभव

कनाडा द्वारा खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाए जाने के बाद से ही भारत ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। इससे कनाडा की हवा खराब हो गई है। दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण चल रहे हैं। मगर अमेरिका और ब्रिटेन ने कनाडा को भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए दबाव डाला है। इससे अब दोनों देशों के संबंध फिर से सामान्य होने की उम्मीद में हैं।  विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका भारत-कनाडा विवाद मामले में अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करने के महत्व पर जोर देते हुए कनाडा की जांच में फिर से भारत के सहयोग का आह्वान कर सकता है। यह कूटनीतिक उलझन एक चुनौती पैदा कर सकती है, लेकिन यह इस बात की याद भी दिला सकता है कि विशिष्ट मुद्दों पर मतभेद से द्विपक्षीय संबंध पटरी से नहीं उतरेंगे। इन चुनौतियों से परे संवाद का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के दायरे का विस्तार करना है।

ये वैश्विक मुद्दे होंगे अहम

भारत और अमेरिका के बीच टू-प्लस-टू वार्ता में सिर्फ रक्षा ही नहीं, बल्कि जलवायु, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद विरोधी, शिक्षा, खाद्य संकट और लोगों से लोगों के बीच संबंध जैसे मुद्दे भी शामिल है।’ ‘‘वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-उत्पादन पर ध्यान केंद्रित है, जो सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देने में नवाचार के महत्व को रेखांकित करता है। क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर पहल (आईसीईटी) के एजेंडे में होने की उम्मीद है, जो भारत-अमेरिका रक्षा त्वरित पारिस्थितिक तंत्र (इंडस-एक्स) के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने वाला है।’’ उन्होंने कहा कि सीओपी28 से पहले जलवायु कार्रवाई को बढ़ाने की अनिवार्यता भी बातचीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को 2050 तक शून्य कार्बन-उत्सर्जन देश बनने का भारत का आह्वान जलवायु परिवर्तन की तत्काल चुनौती से निपटने में साझा जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। ​ (भाषा)