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Hindi News हेल्थ ब्रेन स्ट्रोक होने के सिर्फ इतने घंटे के अंदर पहुंच जाएं अस्पताल... तो बिलकुल सामान्य हो सकता है मरीज

ब्रेन स्ट्रोक होने के सिर्फ इतने घंटे के अंदर पहुंच जाएं अस्पताल... तो बिलकुल सामान्य हो सकता है मरीज

देशभर में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मगर जागरूकता की कमी और लापरवाही व इलाज मिलने में देरी के चलते ज्यादातर मरीजों की जान चली जाती है। जो मरीज बच भी गए तो फिर वह अपनी सोचने, समझने और बोलने और याद करने की क्षमता खो देते हैं।

प्रतीकात्मक फोटो- India TV Hindi Image Source : FILE प्रतीकात्मक फोटो

Brain Stroke Case: देशभर में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मगर जागरूकता की कमी और लापरवाही व इलाज मिलने में देरी के चलते ज्यादातर मरीजों की जान चली जाती है। जो मरीज बच भी गए तो फिर वह अपनी सोचने, समझने और बोलने और याद करने की क्षमता खो देते हैं। कई मरीजों का मुंह टेढ़ा हो जाता है या शरीर के एक तरफ हाथ और पैर में शून्यता हो जाने से अपंगता आ जाती है। ऐसे में उनकी जिंदगी दर्द भरी हो जाती है। अब सवाल यह है कि यदि अचानक किसी को ब्रेन स्ट्रोक हो जाए तो क्या करें?

4 से 6 घंटे में इलाज मिलने से हो सकते हैं सामान्य
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में न्यूरो और स्पाइन सर्जरी के डायरेक्टर व पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व कंसलटेंट डॉ राहुल गुप्ता कहते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक होने के तुरंत बाद यदि मरीज को किसी अच्छे अस्पताल में पहुंचा दिया जाए, जहां न्यूरो सर्जरी से संबंधित समस्त सुविधाएं (अच्छा न्यूरो सर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, सीटी स्कैन, एमआरआई मशीन, एंजियोग्राफी युक्त कैथ लैब) मौजूद हों तो उसकी जान बचाई जा सकती है। घंटे दो घंटे में अस्पताल पहुंच सकें तो सबसे अच्छा है। मगर यदि मरीज कहीं दूर- दराज गांव क्षेत्र में है तो भी उसे 4 से 6 घंटे के अंदर किसी अच्छे न्यूरो अस्पताल में जरूर पहुंच जाना चाहिए। यह समय गोल्डन आवर है। इस दौरान मरीज को सटीक इलाज मिल जाने से वह बिल्कुल सामान्य हो सकता है।

दिया जाता है ये विशेष इलाज
डॉ राहुल गुप्ता ने बताया कि इस्कीमिक ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को 4 से 6 घंटे के भीतर एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे दिमाग की नसों को खून पहुंचाने में बाधा डालने वाला ब्लॉकेज खुल जाता है और फिर मरीज 2 से 3 महीने के इलाज से सामान्य स्थिति में आ सकता है। वहीं एक्यूट इस्कीमिक ब्रेन स्ट्रोक होने पर  मैकेनिकल थ्रांबेक्टमी बहुत ही कारगर इलाज का तरीका है। इसके जरिए हाथ में एक छोटा सा चीरा लगाकर वहीं से विशेष उपकरणों के जरिए दिमाग को खून पहुंचाने वाली धमनियों में जमें रक्त के थक्के या गुच्छे तक पहुंच कर उसे बाहर निकाल दिया जाता है। इससे खून का प्रवाह मस्तिष्क में दोबारा शुरू हो जाता है।

क्या होता है ब्रेन स्ट्रोक
गलत खानपान, अनियमित जीवनशैली, सिगरेट और धूम्रपान की लत शारीरिक क्रियाशीलता का शून्य होना देर रात तक मोबाइल या टीवी देखनने व बहुत अधिक स्ट्रेस लेने से दिमाग को खून पहुंचाने वाली नसों में चर्बी जमा हो जाती है या ब्लॉकेज हो जाता है तो रक्त अपने स्थान तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। यह लाइफ स्टाइल डिजीज है। इसे इस्कीमिक ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं। 85 फीसद ब्रेन स्ट्रोक इस्कीमिक ही होता है। युवाओं में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। न्यूरो विशेषज्ञों के अनुसार करीब 10 से 15 फ़ीसदी मरीज 40 वर्ष से कम उम्र में ही ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं।

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