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Hindi News भारत राष्ट्रीय अंबुबाची, जब मंदिर में भक्तों को मिलता है 'पीरियड के खून' से सना कपड़ा

अंबुबाची, जब मंदिर में भक्तों को मिलता है 'पीरियड के खून' से सना कपड़ा

माना जाता है कि इऩ दिनों में साल में एक बार कामाख्या देवी रजस्वला हो जाती है और यह उनके श्रद्धालुओं को दिखाई भी देता है। देवी को इन दिनों योनि के रूप में पूजा जाता है। इन दिनों ब्रह्मपुत्र के पानी से लेकर कई जगह तक मां की शक्ति का हल्के लाल रंग में द

ambubachi rituals

इस बार व्यापक हैं तैयारियां

शक्तिपीठ के कपाट आज रात से इस महीने की 25 तारीख तक बंद रहेंगे। वहां आठ से दस लाख श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। भक्तों की सुविधा के लिए प्रशासन द्वारा चार अस्थायी शिविर बनाए गए हैं। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने व्यवस्थाओं के साथ ही बाकयदा अखबारों में विज्ञापन भी दिए हैं। सोनोवाल ने मंदिर में पूजा अर्चना के बाद, मेले की तैयारियों के विषय पर मंदिर के अधिकारियों के साथ बैठक की। प्रशासन द्वारा अंबुबाची मेले के दौरान निलाचल पहाड़ तक आने-जाने के लिए दर्जनों बसें लगाई गई हैं।

मेले में 10 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना को मद्देनजर रखते हुए मेले की सुरक्षा व्यवस्था एक बड़ी चिंता का विषय है। सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर परिसर में 150 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। मेले की सुरक्षा के लिए विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां आपस में सहयोग करेंगी। मेले में श्रद्धालुओं के लिए खाने की व्यवस्था भी की जाएगी।

अंबुबाची के दौरान भक्तों को देवी की योनि के ‘अंगढक’ या ‘अंगवस्त्र’ का टुकड़ा देते हैं। ये लाल रंग का कपड़ा लोग इसलिए लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे पीरियड से जुड़ी दिक्कतें ठीक हो जाएंगी और औरतों का ‘बांझपन’ मिट जाएगा। वही लोग जो इस अंगवस्त्र के टुकड़े को तावीज में बांधकर पहनते हैं, अपनी खून बहाती औरतों को उनके पीरियड के समय उनके कमरों से बाहर भी नहीं निकलने देते।

असम में अगर किसी औरत को उसी समय पीरियड हो रहे हैं, जिस समय अंबुबाची मेला चल रहा हो, तो उसे वही रस्में फिर से निभानी पड़ती हैं, जो उसने पहली बार पीरियड होने पर निभाई थीं। पीरियड की ख़ुशी मनाने वाले इस पर्व में वही औरतें नहीं आ पाती हैं, जिनके पीरियड चल रहे हों। क्योंकि इन दिनों में औरतें मंदिर नहीं जातीं। असमिया बोली में पीरियड के लिए प्रयोग होने वाला शब्द है ‘सुआ लोगा’, जिसका शाब्दिक अर्थ ही ‘अछूत’ है।

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