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बुंदेलखंड की युवतियां महानगरों में हो रही हैं यौन शोषण की शिकार

सामाजिक कार्यकर्ता विनय श्रीवास ने बताया कि बुंदेलखंड में रोटी और पानी के संकट ने लोगों का यह हाल कर दिया है कि उनके लिए इज्जत-आबरू बचाना मुश्किल हो गया है। जो लोग रोजी-रोटी के लिए महानगर जाते हैं, उन परिवारों की कहानी दर्दनाक है।

Bundelkhand women are being sexually exploited in Metro cities- India TV Hindi बुंदेलखंड की युवतियां महानगरों में हो रही हैं यौन शोषण की शिकार

भोपाल: वर्तमान दौर में गरीबी सबसे बड़ा अपराध है, पेट की आग बुझाने के लिए बुंदेलखंड जाने वाले परिवारों को ऐसे दंश भोगना पड़ते हैं, जिनकी कल्पना मात्र से रूह कांप जाती है। यहां से रोजगार की तलाश में जाने वाले कई परिवार ऐसे हैं, जिनकी बेटियां यौन शोषण की शिकार हो चुकी हैं। इतना ही नहीं, कई परिवारों की युवतियों को तो दबंगों ने अपनी रखैल बना लिया है। बुंदेलखंड की जमीनी हकीकत जानने के लिए सामाजिक संगठन 'बुंदेलखंड जल मंच' ने अध्ययन किया है। अध्ययन दल की सदस्य अफसर जहां ने कहा, "अध्ययन के दौरान हम छतरपुर जिले के लवकुशनगर के पास रनमउ गांव पहुंचे तो पता चला कि यहां की एक युवती को, जो अपने परिवार के साथ दिल्ली काम करने गई थी, उसे कई लोगों ने अपनी हवस का शिकार बनाया। किसी तरह वह वापस अपने गांव आई और बाद में उसकी शादी हो गई।"

उन्होंने आगे बताया कि पीड़ित युवती और उसके परिवार का नाम वे उजागर नहीं कर रही हैं, क्योंकि वे दलित वर्ग से हैं। इतना ही नहीं, कई परिवार तो ऐसे मिले हैं, जो काम की तलाश में महानगर गए और साथ में उनकी जवान बेटियां भी थीं। वे जब लौटे तो उनके साथ बेटियां नहीं लौटीं। उन लड़कियों को किसी व्यक्ति ने गुमराह कर अपने पास रख लिया। लड़कियों से देह व्यापार कराया जा रहा है, मगर इसकी जानकारी किसी को नहीं है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार जब पुलिस के पास जाता है तो सिर्फ गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर खानापूर्ति कर ली जाती है। वहीं कुछ पीड़ित परिवार बदनामी के डर से थानों के चक्कर नहीं लगाते।

घुवारा थाना क्षेत्र के बोरी गांव के बुजुर्ग मलखान सिंह (70) ने बताया कि उनके गांव का एक व्यक्ति रोजगार की तलाश में अपनी पत्नी के साथ दिल्ली गया था, कुछ दिनों बाद वह अकेला लौटा। जब उससे पूछा गया कि पत्नी कहां है, तो उसका जवाब था कि वह किसी और के साथ रहने लगी है। आज वह व्यक्ति परेशान है और गांव में मवेशियों को चराकर अपना गुजारा कर रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता विनय श्रीवास ने बताया कि बुंदेलखंड में रोटी और पानी के संकट ने लोगों का यह हाल कर दिया है कि उनके लिए इज्जत-आबरू बचाना मुश्किल हो गया है। जो लोग रोजी-रोटी के लिए महानगर जाते हैं, उन परिवारों की कहानी दर्दनाक है। सामाजिक कार्यकर्ता और जल-जन जोड़ो के संयोजक संजय सिंह का कहना है कि जो परिवार अपनी बेटियों को साथ महानगर ले जाते हैं, उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बेटियों और जवान पत्नियों की सुरक्षा की होती है। गरीबी से जूझती युवतियां महानगरों के लोगों के झांसे में आ जाती हैं और अपना भविष्य सोचे बिना उनके साथ हो लेती हैं।

उन्होंने कहा कि युवतियों को लगता है कि उनकी रोजी-रोटी का कोई इंतजाम है नहीं, किसी व्यक्ति के साथ चले जाने पर कम से कम रोटी के लिए तो परेशान नहीं होना पड़ेगा। सिंह ने कहा कि अध्ययन के जरिए सामने आई बुंदेलखंड की तस्वीर डरावनी है, मगर उन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जो लोग ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार हैं। बहुत शोर मचाने पर सत्तापक्ष बजट और सुविधाओं का ऐलान कर देगा और विपक्ष चुनावी मुद्दा बना लेगा, मगर इन गरीबों के जख्मों पर मलहम लगाने वाला कोई नहीं है।

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