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Data Protection Bill Latest Updates: 2 साल बाद डेटा सुरक्षा बिल को संसदीय समिति की मिली मंजूरी

निजी डाटा की सुरक्षा और डाटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना के मकसद से यह विधेयक 2019 में लाया गया था। इसके बाद इस बिल को आवश्यक सुझावों के लिए इस संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) के पास भेज दिया गया था।

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Highlights

  • जयराम रमेश समेत कई विपक्षी नेताओं ने कुछ बिंदुओं को लेकर अपनी ओर से असहमति का नोट भी दिया
  • सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया गया

नई दिल्ली: संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) ने प्राइवेट डाटा प्रोटेक्शन बिल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को पब्लिशर्स के रूप में मानने के साथ-साथ उससे जुड़े डाटा की निगरानी और जांच के अधिकार को भी विधेयक के दायरे लाने की सिफारिश की है। करीब दो साल के विचार-विमर्श के बाद इस बिल में सुधार से जुड़े सुझावों को स्वीकार कर लिया गया है।  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस प्रावधान और कुछ अन्य बिंदुओं को लेकर अपनी ओर से असहमति का नोट भी दिया। निजी डाटा की सुरक्षा और डाटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना के मकसद से यह विधेयक 2019 में लाया गया था। इसके बाद इस बिल को आवश्यक सुझावों के लिए इस संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) के पास भेज दिया गया था। अब इसे कानून बनाने के लिए संसद में पेश किया जाना है।

प्राइवेट डाटा प्रोटेक्शन बिल  के दायरे को बढ़ाने के लिए संसदीय समिति ने अपने सुझावों में गैर-व्यक्तिगत डाटा और इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर द्वारा जुटाए जाने वाले डाटा को भी इसके अधिकार क्षेत्र में शामिल किया है। साथ ही सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया गया है।

प्राइवेट डाटा प्रोटेक्शन बिल के मुताबिक, केंद्र सरकार राष्ट्रीय हित की सुरक्षा, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था और देश की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा के लिए अपनी एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के प्रावधानों से छूट दे सकती है। विपक्षी दलों के  सदस्यों की ओर से मुख्य रूप से इस बात को लेकर विरोध जताया गया कि केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों को कानून के दायरे से छूट देने के लिए बेहिसाब ताकत दी जा रही है। कुछ विपक्षी सदस्यों ने सुझाव दिया था कि सरकार को अपनी एजेंसियों को छूट देने के लिए संसदीय मंजूरी लेनी चाहिए ताकि व्यापक जवाबदेही हो सके, हालांकि इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया गया। 

समिति के सुझावों में उस प्रावधान को बरकरार रखा गया है, जो सरकार को अपनी जांच एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से मुक्त रखने का अधिकार देता है। ऐसा माना जा रहा है कि यह बिल 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध का नया जरिया हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक को लेकर कुल 93 अनुशंसाएं की हैं और सरकार के कामकाज और लोगों की निजता की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास हुआ है।

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