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Hindi News भारत राष्ट्रीय 'वायग्रा' ने बिगाड़ी हिमालय की सेहत, ग्लेशियर पर पड़ रहा गंभीर असर

'वायग्रा' ने बिगाड़ी हिमालय की सेहत, ग्लेशियर पर पड़ रहा गंभीर असर

शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल के दशकों में, इस कीड़े की लोकप्रियता बढ़ गई है और इसके दाम आसमान छूने लगे हैं। बीजिंग में इसके दाम सोने की कीमत के मुकाबले तीन गुना अधिक तक जा सकते हैं।

'वायग्रा' ने बिगाड़ी हिमालय की सेहत, ग्लेशियर पर पड़ रहा गंभीर असर- India TV Hindi 'वायग्रा' ने बिगाड़ी हिमालय की सेहत, ग्लेशियर पर पड़ रहा गंभीर असर

नई दिल्ली: हिमालय वायग्रा जड़ी बूटी का साइंटिफिक नाम कोर्डिसेप्स साइनेसिस (Caterpillar fungus) है। इसे कीड़ा-जड़ी, यार्सागुम्बा या यारसागम्बू नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़ों पर पाई जाती है जिसे अत्‍यधिक मात्रा में निकाले जाने और उससे संबंधित गतिविधियों को अंजाम देने से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी की संवेदनशीलता को गंभीर खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है।

हिमालय पर बढ़ रहा है कार्बन
उत्‍तराखंड वन विभाग की ओर से हाल ही में कराए सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि हिमालयन वायग्रा को 'अवैज्ञानिक तरीके' से निकाले जाने से वनस्‍पतियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इसके अलावा इतनी ऊंचाई पर मानवीय गतिविधियों जैसे लकड़‍ियों को जलाने से क्षेत्र में कार्बन बढ़ रहा है। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला ब्‍लॉक में कराए गए अध्‍ययन से खुलासा हुआ है कि 11 गांवों में मई और जून महीने में 7.1 करोड़ रुपये की आय हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की गतिविधियां ऊपरी हिमालय के तापमान को बढ़ाएंगी और इसका ग्‍लेशियर पर बुरा असर पड़ेगा। इससे वायग्रा की पैदावार को भी नुकसान पहुंचेगा। बताया जा रहा है कि छह हजार वर्गफुट इलाके में खुदाई के लिए करीब एक हजार टेंट लगाए गए। इसमें रहने वाले लोगों ने खुद को गरम रखने के लिए 72 हजार किलो लकड़ी जलाई। रिपोर्ट के मुताबिक दोनों जिलों में पैदा हुई हिमालय वायग्रा की वैश्विक बाजार में कीमत 5 से 11 अरब डॉलर के बीच है।

दाम सोने की कीमत के मुकाबले तीन गुना अधिक
शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल के दशकों में, इस कीड़े की लोकप्रियता बढ़ गई है और इसके दाम आसमान छूने लगे हैं। बीजिंग में इसके दाम सोने की कीमत के मुकाबले तीन गुना अधिक तक जा सकते हैं। कई लोगों को संदेह है कि अत्यधिक मात्रा में इस फफूंद को एकत्र करने से इसकी कमी हो गई होगी लेकिन शोधकर्ताओं ने इसकी वजह जानने के लिए इसे एकत्र करने वालों और व्यापारियों का साक्षात्कार किया।

मुख्य शोधकर्ता केली होपिंग ने कहा कि यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें ध्यान देने की मांग की गई है कि ‘कैटरपिलर फंगस’ जैसी कीमती प्रजातियां ना केवल अत्यधिक मात्रा में एकत्रित किए जाने के कारण कम हो रही हैं बल्कि इन पर जलवायु परिवर्तन का असर भी पड़ रहा है।

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