A
Hindi News भारत राष्ट्रीय ‘मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं, अपने पापा की बेटी हूं’

‘मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं, अपने पापा की बेटी हूं’

गुरमेहर कौर फिर चर्चा में हैं। इस बार गुरमेहर ने उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल कर रहे लोगों के लिए एक ब्लॉग लिखा है। गुरमेहर ने अपने ब्लॉग में कहा है कि मेरे पिता शहीद हैं, मैं उनकी बेटी हूं लेकिन, मैं आपके शहीद की बेटी नहीं हूं।

Gurmehar Kaur- India TV Hindi Gurmehar Kaur

नई दिल्ली: गुरमेहर कौर फिर चर्चा में हैं। इस बार गुरमेहर ने उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल कर रहे लोगों के लिए एक ब्लॉग लिखा है। गुरमेहर ने अपने ब्लॉग में कहा है कि मेरे पिता शहीद हैं, मैं उनकी बेटी हूं लेकिन, मैं आपके शहीद की बेटी नहीं हूं। ब्लॉग के जरिए गुरमेहर ने लिखा है कि मीडिया में उनके बारे में जो राय बनाई गई है वो वैसी नहीं हैं। गुरमेहर ने मंगलवार को अपने ब्लॉग का लिंक शेयर किया जिसमें गुरमेहर ने लिखा कि 'आपने मेरे बारे में पढ़ा है, लेखों के अनुसार अपनी राय बनाई है, अब मैं अपने बारे में अपने शब्दों में बता रही हूं, मेरा पहला ब्लॉग जिसका शीर्षक है 'आई ऐम'.' मैं कौन हूं..

ये भी पढ़ें

एक शहर, जहां आलू-प्याज से भी सस्ते बिकते हैं काजू!
एक भारतीय जासूस जो बन गया था पाकिस्तानी सेना में मेजर

मुसलमान वहां मस्जिद बनाने की जिद न करें जहां राम मंदिर बनना है: कल्बे सादिक
सूरत का दिल 87 मिनट में पहुंचा मुम्बई, अब यूक्रेन में धड़केगा

गुरमेहर कौन ने अपने ब्लॉग में क्या लिखा है?

मैं कौन हूं?

मैं कौन हूं।
यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मैं कुछ हफ्ते पहले तक अपने हंसमुंख अंदाज में बिना किसी हिचकिचाहट या परवाह के दे सकती थी लेकिन अब मैं पक्के तौर पर ऐसा नहीं कह सकती।
क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं?
क्या मैं वैसी हूं जैसा चित्रण मेरा मीडिया में होता है?
क्या मैं वो हूं जो सिलेब्रिटीज़ मेरे बारे में सोचते हैं?
नहीं, मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती। अपने हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए हुए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टेलीविज़न स्क्रीन पर फ्लैश होते देखा होगा, वह निश्चित तौर पर मुझ सी दिखती है।
उसके विचारों की उत्तेजना जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित तौर पर उनमें मेरी झलक है। वह उग्र लगती है, मैं उससे भी सहमत हूं लेकिन 'ब्रेकिंग न्यूज़ की सुर्खियों' ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई। मैं वो सुर्खियां नहीं हूं।
शहीद की बेटी
शहीद की बेटी
शहीद की बेटी
मैं अपने पिता की बेटी हूं। मैं अपने पापा की गुलगुल हूं। मैं उनकी गुड़िया हूं। मैं दो साल की वह कलाकार हूं जो शब्द तो नहीं समझती लेकिन उन तीलियों की आकृतियां समझती है जो उसके पिता उसे पुकारने के लिए बनाया करते थे।
मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं। राय रखने वाली, बेतहाशा और मूडी बच्ची, जिनमें मेरी मां की भी छाया है। मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं और बड़े मैचों से पहले बहस करने वाली उसकी साथी।
मैं क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वो लड़की हूं जो अपने शिक्षकों से किसी भी बात पर बहस करने लगती है, क्योंकि इसी में तो साहित्य का मज़ा है। मुझे उम्मीद है कि मेरे दोस्त मुझे पसंद करते हैं।
वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है लेकिन चुनिंदा दिनों में यह कारगर भी है। किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं।
मुझे किताबों का शौक है। मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है और पिछले कुछ महीनों से मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके।
मैं आदर्शवादी हूं। ऐथलीट हूं। शांति की समर्थक हूं। मैं आपकी उम्मीद के मुताबिक उग्र और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं। मैं युद्ध इसलिए नहीं चाहती क्योंकि मुझे इसकी क़ीमत का अंदाज़ा है।
ये क़ीमत बहुत बड़ी है। मेरा भरोसा करिए, मैं बेहतर जानती हूं क्योंकि मैंने रोज़ाना इसकी क़ीमत चुकाई है। आज भी चुकाती हूं। इसकी कोई क़ीमत नहीं है। अगर होती तो आज कुछ लोग मुझसे इतनी नफ़रत न कर रहे होते।
न्यूज़ चैनल चिल्लाते हुए पोल करा रहे थे, "गुरमेहर का दर्द सही है या ग़लत?" हमारी तक़लीफों का क्या मोल है? अगर 51% लोग सोचते हैं कि मैं ग़लत हूं तो मैं ज़रूर गलत होऊंगी। इस स्थिति में भगवान ही जानता है कि कौन मेरे दिमाग को दूषित कर रहा है।
पापा मेरे साथ नहीं हैं; वह पिछले 18 सालों से मेरे साथ नहीं है। 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे छोटे से शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए- मौत, पाकिस्तान और युद्ध।
ज़ाहिर है, कुछ सालों तक मैं इनका छिपा हुआ मतलब भी नहीं समझ पाई थी। छिपा हुआ इसलिए कह रही हूं क्योंकि क्या किसी को भी इसका मतलब पता है? मैं अब भी इनका मतलब ढूंढने की कोशिश कर रही हूं।
मेरे पिता एक शहीद हैं लेकिन मैं उन्हें इस तरह नहीं जानती। मैं उन्हें उस शख्स के तौर पर जानती हूं जो कार्गो की बड़ी जैकेट पहनता था, जिसकी जेबें मिठाइयों से भरी होती थीं।
मैं उस शख्स को जानती हूं जो मेरी नाक को हल्के से मरोड़ता था, जब मैं उसका माथा चूमती थी। मैं उस पिता को जानती हूं जिसने मुझे स्ट्रॉ से पीना सिखाया, जिसने मुझे च्यूइंगम दिलाया।
मैं उस शख्स को जानती हूं जिसका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी ताकि वो मुझे छोड़कर न चले जाएं। वो चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए।
मेरे पिता शहीद हैं। मैं उनकी बेटी हूं।
लेकिन,
मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं।

Latest India News