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महाराष्ट्र बंद: मुंबई में 16 एफआईआर दर्ज, करीब 300 को लिया गया हिरासत में

कोल्हापुर, जो समाज सुधारक दिवंगत छत्रपति साहू महाराज का गृह जिला है, वहां प्रदर्शनकारियों ने कल निगम की 13 बसों पर हमला किया था। एक अधिकारी ने बताया कि कोल्हापुर जिला पुलिस ने एहतियाती तौर पर आज देर रात तक के लिए इंरटनेट सेवाएं निलंबित कर दी हैं।

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मुंबई: मुंबई पुलिस ने कल बंद के दौरान दलित समूहों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों के संबंध में 300 लोगों को हिरासत में लिया है, साथ ही 16 प्राथमिकी भी दर्ज की है। भीमा कोरेगांव जातीय झड़पों के खिलाफ कल बंद की घोषणा की गई थी। जिले में तनाव के मद्देनजर कोल्हापुर में इंटरनेट सेवाएं भी निलंबित की गई। एमएसआरटीसी के अधिकारियों ने बताया कि बंद के दौरान राज्यभर प्रदर्शनकारियों के हमले में महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम की करीब 200 बसें क्षतिग्रस्त हुई थी। पुलिस ने बताया कि मुंबई में विभिन्न पुलिस थानों में 16 प्राथमिकी दर्ज की गई है और 300 से अधिक संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया है।

कोल्हापुर, जो समाज सुधारक दिवंगत छत्रपति साहू महाराज का गृह जिला है, वहां प्रदर्शनकारियों ने कल निगम की 13 बसों पर हमला किया था। एक अधिकारी ने बताया कि कोल्हापुर जिला पुलिस ने एहतियाती तौर पर आज देर रात तक के लिए इंरटनेट सेवाएं निलंबित कर दी हैं। दलित समूहों ने कल जिले में प्रदर्शन किए थे जिसके जवाब में शिवसेना विधायक राजेश क्षीरसागर के नेतृत्व में रैलियां की गईं। पुलिस ने बताया कि मराठवाड़ा क्षेत्र के परभणी जिले में आरएसएस के कार्यालय पर कल हमला किया गया था।

परभणी पुलिस ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने आरएसएस विरोधी नारे लगाए। उन्होंने बताया कि संपत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। पुलिस ने बताया कि राज्य के श्रम मंत्री संभाजी पाटिल निलंगेकर के लातूर जिले स्थित गृह नगर निलंगा में करीब 40 दो पहिया वाहनों और 10 से 12 चार पहिया वाहनों को क्षतिग्रस्त किया। एक जनवरी को पुणे जिले में हुई हिंसा के बाद कल बंद की घोषणा की गई थी।

पुणे जिले में उस समय हिंसा भड़क उठी जब दलित संगठन भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह मना रहे थे। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हरा दिया था। दलित नेता ब्रिटिश जीत का जश्न मनाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उस समय अछूत माने जाने वाले महार समुदाय के सैनिक कंपनी की सेना का हिस्सा थे। पेशवा ब्राह्मण थे और इस लड़ाई को दलित की जीत का प्रतीक माना जाता है।

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