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कैसे और कहां बनता है राफेल? 7 हजार कर्मचारी 2 साल में करते हैं तैयार

जिस लड़ाकू विमान ने चीन और पाकिस्तान के होश उड़ा दिए हैं, वो लड़ाकू विमान आखिर बनता कैसे है? इस रिपोर्ट में हम आपको वही बताने जा रहे हैं।

कैसे और कहां बनता है राफेल? 7 हजार कर्मचारी 2 साल में करते हैं तैयार- India TV Hindi Image Source : DASSAULT AVIATION कैसे और कहां बनता है राफेल? 7 हजार कर्मचारी 2 साल में करते हैं तैयार

नई दिल्ली: जिस लड़ाकू विमान ने चीन और पाकिस्तान के होश उड़ा दिए हैं, वो लड़ाकू विमान आखिर बनता कैसे है? इस रिपोर्ट में हम आपको वही बताने जा रहे हैं। एक राफेल विमान को 7 हजार कर्मचारी लगातार 2 साल तक काम करके तैयार करते हैं। राफेल का एक मिलीमीटर से छोटा पुर्जा भी पहले डिजाइन किया जाता है। इतनी तपस्या और कड़ी मेहनत के बाद आसमान का सबसे बड़ा योद्धा तैयार होता है। आसमान पर हुकूमत करने वाला ये एक ऐसा लड़ाकू विमान है, जिसका सिर्फ नाम ही दुश्मनों में दहशत पैदा कर देता है।

यूरोप में फ्रांस की राजधानी पेरिस में सेंट क्लाउड सब अर्ब नाम की एक जगह है। यहीं एक मैनुफैक्चरिंग हब में राफेल की असेंबलिंग होती है। ये पूरा प्लांट तीन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। करीब 80 साल से यहां युद्ध के उपकरणों, खास तौर पर लड़ाकू विमानों का प्रोडक्शन किया जा रहा है। इस विशाल फैक्ट्री में राफेल के अलग-अलग हिस्सों को बहुत सावधानी से क्रेन के ज़रिए मूवमेंट करवाया जाता है। 

राफेल फाइटर जेट के फौलादी डेल्टा विंग्स को राफेल के नोज़कोन और कॉकपिट में जोड़ा जाता है। इन फौलादी पंखों के जुड़ जाने के बाद राफेल आसमान में तूफान पैदा कर देता है। राफेल का मतलब ही फ्रेंच भाषा में हवा का तूफान होता है। बता दें कि किसी भी लड़ाकू विमान के सभी हिस्सों को फिट करने से पहले एक स्पेशल सॉफ्टवेयर पर बहुत बारीकी से जांच पड़ताल की जाती है। 

दसॉ कंपनी का निजी सॉफ्टवेयर है, जिसका नाम है कात्या है। इसी सॉफ्टवेयर की थ्री डी इमेज पर एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के माहिर इंजीनियर ये जांच करते हैं कि विमान में लगाए रहा एक-एक हिस्सा सही है या फिर नहीं। इसके डिजाइन या फिटिंग में कोई खामी तो नहीं है। भारत को जो राफेल लड़ाकू विमान मिले हैं, उसके हर हिस्से के डिजाइन को इसी तरह चेक किया गया है।

ये सॉफ्टवेयर बनाना भी हर किसी के बस की बात नहीं है। लड़ाकू विमान बनाने वाली दुनिया की कई बड़ी कंपनियों के पास अपना सॉफ्टवेयर नहीं है और वो डिजाइन को चेक करने के लिए दसॉ की मदद लेती हैं। इस सॉफ्टवेयर की मदद से ये भी देखा जाता है कि फाइटर जेट के डिजाइन पर हवा के दबाव का क्या असर होता है? डिजाइन टेस्ट होने के बाद ही राफेल के कॉकपिट को तैयार करने की सबसे कठिन प्रक्रिया शुरू की जाती है। 

राफेल का कॉकपिट दुनिया का सबसे अत्याधुनिक कॉकपिट है। इसमें पायलट को ऐसी मशीनें और इंटरफेस मिलता है, जहां से लड़ाकू विमान को कमांड दी जाती है। यहीं पर बैठकर फायटर पायलट दुश्मन के एक-एक टारगेट को फिक्स कर सकता है। राफेल का इंजन बहुत जानदार है। ये दुनिया की सबसे ताकतवर और जटिल मशीन होती है। राफेल की ताकत बढ़ाने के लिए राफेल में दो इंजन लगते हैं। इन्हें ट्विन इंजन भी कहा जाता है। 

इस इंजन की ताकत बड़े-बड़े युद्धों में हार और जीत का फैसला तय करती है। राफेल में लगाए गए इंजन का नाम सैफरान स्नेकमा है। इस इंजन की सबसे खास बात ये है कि ये एक कोल्ड स्टार्ट इंजन है यानि ये कम तापमान वाली जगह पर भी फौरन उड़ान भर सकता है।

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