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Hindi News भारत राष्ट्रीय प्राइवेट सेक्टर के सफल लोगों के लिए मोदी सरकार ने लिया बड़ा फैसला, बिना UPSC एग्जाम के बनेंगे अफसर!

प्राइवेट सेक्टर के सफल लोगों के लिए मोदी सरकार ने लिया बड़ा फैसला, बिना UPSC एग्जाम के बनेंगे अफसर!

अब बड़े अधिकारी बनने के लिए यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा पास करना जरूरी नहीं होगा। प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले सीनियर अधिकारी भी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं...

<p>प्रधानमंत्री...- India TV Hindi प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली: मोदी सरकार ने नौकरशाही में प्रवेश पाने का अबतक सबसे बड़ा बदलाव कर दिया है। अब बड़े अधिकारी बनने के लिए यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा पास करना जरूरी नहीं होगा। प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले सीनियर अधिकारी भी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं। लैटरल एंट्री की औपचारिक अधिसूचना सरकार की ओर से जारी कर दी गई है।

डीओपीटी की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार मंत्रालयों में ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्ति होगी। इनका टर्म 3 साल का होगा और अगर अच्छा प्रदर्शन हुआ तो 5 साल तक के लिए इनकी नियुक्ति की जा सकती है। इन पदों पर आवेदन के लिए अधिकतम उम्र की सीमा तय नहीं की गई है जबकि न्यूनतम उम्र 40 साल है। पीएम नरेन्द्र मोदी ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री के शुरू से हिमायती रहे हैं।

प्राइवेट वालों को सरकारी नौकरी !

केंद्र सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री की शुरूआत की
ज्वाइंट सेक्रेटरी पद के लिए लैटरल एंट्री की शुरुआत
प्राइवेट कंपनी में काम करने बन सकते हैं ज्वाइंट सेक्रेटरी
10 मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के लिए DoPT ने जारी की अधिसूचना
ज्वॉइंट सेक्रेटरी का कार्यकाल 3-5 साल होगा

वहीं कांग्रेस ने मोदी सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्त पवन खेड़ा ने कहा है कि बीजेपी को सरकार चलानी नहीं आती।

2005 में आया था पहला प्रस्ताव, अब हुआ लागू

ब्यूरोक्रेसी में लैटरल ऐंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में आया था जब प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट आई थी लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया। इसके बाद 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई लेकिन पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई। पीएम मोदी ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिए एक कमिटी बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की। खबरों के मुताबिक ब्यूरोक्रेसी के अंदर इस प्रस्ताव पर विरोध और आशंका दोनों रही थी जिस कारण इसे लागू करने में इतनी देरी हुई। आखिरकार पीएम मोदी के हस्तक्षेप के बाद मूल प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर इसे लागू कर दिया गया।

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