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Hindi News भारत राष्ट्रीय अब भारतीय सेनाओं को चीन को जवाब देने की जरूरत है: नौसेना प्रमुख

अब भारतीय सेनाओं को चीन को जवाब देने की जरूरत है: नौसेना प्रमुख

गौरतलब है कि एक दिन पहले ही चीनी रक्षा मंत्रालय ने अपने सैन्य विकास पर ‘नये युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा’ शीर्षक से एक श्वेत पत्र जारी किया है। इसमें भारत, अमेरिका, रूस एवं अन्य देशों की तुलना में चीन के सैन्य विकास के विभिन्न पहलुओं को छुआ गया है। 

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नयी दिल्ली: नौसेना प्रमुख करमबीर सिंह ने कहा कि चीन ने अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की अन्य इकाइयों से पीएलए नेवी में काफी संसाधन भेजे हैं और भारत को इसकी सावधानीपूर्वक निगरानी करनी होगी। हिंद महासागर में चीनी नौसेना के बढ़ते दखल पर उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय सेनाओं को चीन को जवाब देने की जरूरत है। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही चीनी रक्षा मंत्रालय ने अपने सैन्य विकास पर ‘नये युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा’ शीर्षक से एक श्वेत पत्र जारी किया है। इसमें भारत, अमेरिका, रूस एवं अन्य देशों की तुलना में चीन के सैन्य विकास के विभिन्न पहलुओं को छुआ गया है। 

चीनी श्वेत पत्र पर जवाब देते हुए नौसेना प्रमुख ने कहा कि अफ्रीका के हॉर्न में जिबूती में अपना पहला ओवरसीज बेस स्थापित करने और कराची में नौसैनिक टर्नअराउंड सुविधाएं जारी रखने के बाद हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना के घुसपैठ को नजरअंदाज करना भारत के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि चीन ने बिना वक्त गंवाए इस क्षेत्र में अपने छह से आठ युद्धपोत लगा दिए हैं।

सिंह ने यहां एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार से इतर संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह महज चीनी श्वेत पत्र नहीं है, बल्कि अतीत में भी यह कहा गया है। (पीएलए की) अन्य इकाइयों से पीएलए नौसेना को काफी सारे संसाधन दिये गए हैं और यह कार्य एक वैश्विक शक्ति बनने के उसके इरादे से किया गया है। हमें इसे सावधानीपूर्वक देखना होगा और इस बात पर गौर करना होगा कि हम अपने बजट और दायरे में किस तरह से इसका जवाब दे सकते हैं।’’ 

दूसरे स्वदेशी विमानवाहक पोत के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में नौसेना प्रमुख ने कहा, ‘‘हमारी योजना इलेक्ट्रिकल प्रणोदन और ‘कैटोबार’ के साथ 65,000 टन का जहाज बनाना है।’’ कैटोबार (सीएटीओबीएआर) एक ऐसी प्रणाली है जिसका इस्तेमाल किसी विमानवाहक पोत पर किसी विमान के ‘‘लॉंच या रिकवरी’’ में इस्तेमाल किया जाता है। रक्षा क्षेत्र के बारे में बजट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘हमें नौसेना का निर्माण करने के लिए दीर्घकालीन वित्तीय सहयोग की जरूरत है, सिर्फ इसी तरीके से हम योजना बना सकते हैं।’’ 

इससे पहले यहां फिक्की में जहाज निर्माण के जरिए राष्ट्र निर्माण शीर्षक वाले सेमिनार में अपने संबोधन में सिंह ने कहा कि वह इस बारे में आश्वस्त हैं कि सेमिनार की कार्यवाही भारत में जहाज निर्माण के विचारों को लागू करने की दिशा में काफी अहम साबित होगी। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने 2024 तक देश को पांच हजार अरब की अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा की है। और मुझे लगता है कि जहाजों का निर्माण इसमें काफी योगदान दे सकता है।’’ 

सिंह ने कहा कि नौसेना ने स्वदेशी जहाज निर्माण के माहौल को प्रोत्साहित करने में पूरी तरह से निवेश किया है और ‘मेक इन इंडिया’ को राष्ट्रीय अभियान बनाये जाने से 50 साल पहले नौसेना ने 1964 में ‘सेंट्रल डिजाइन ऑफिस’ का निर्माण कर इस दिशा में एक ठोस कदम बढ़ाया था। उन्होंने कहा कि नौसेना ने अब तक 19 विभिन्न श्रेणियों में 90 से अधिक युद्धपोत बनाये हैं। नौसेना के जहाज निर्माण को भारत की सफल कहानियों में गिना जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह नौसेना और उद्योग के बीच सहयोग और आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बयां करता है। हमें यह अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि ‘खरीदार नौसेना’ से ‘निर्माता नौसेना’ तक का सफर काफी कठिन रहा है।’’ 

सिंह ने कहा कि परंपरागत अनुमानों के मुताबिक नौसेना पर खर्च किया गया रूपये का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय अर्थव्यवस्था में (लाभ के रूप में) वापस लौट आता है। उन्होंने कहा कि भारत के जहाज निर्माण उद्योग के परिपक्व होने पर रणनीतिक साझेदारी बनाने और भारत को रक्षा जहाज निर्माण निर्यातों तथा मित्र देशों के जहाजों की मरम्मत के लिए एक रणनीतिक स्थान बनाने की काफी संभावना पैदा होंगी।

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