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Hindi News भारत राष्ट्रीय वीटो पॉवर लेकर भी 6 वर्षों से तड़प रहा चीन, जानें पीएम मोदी ने कैसे निकाली ड्रैगन की हवा

वीटो पॉवर लेकर भी 6 वर्षों से तड़प रहा चीन, जानें पीएम मोदी ने कैसे निकाली ड्रैगन की हवा

India Vs China: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में हर बार भारत को स्थाई सदस्यता दिए जाने का विरोध करने वाला चीन पीएम मोदी के जाल में बुरा फंस गया है। लंबे समय बाद पीएम मोदी ने चीन का ऐसा इलाज किया है कि उसका वीटो पॉवर भी काम नहीं आ रहा। लिहाजा पिछले 6 वर्षों से ड्रैगन तड़प रहा है।

पीएम मोदी और शी जिनपिंग - India TV Hindi Image Source : FILE पीएम मोदी और शी जिनपिंग

India Vs China: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में हर बार भारत को स्थाई सदस्यता दिए जाने का विरोध करने वाला चीन पीएम मोदी के जाल में बुरा फंस गया है। लंबे समय बाद पीएम मोदी ने चीन का ऐसा इलाज किया है कि उसका वीटो पॉवर भी काम नहीं आ रहा। लिहाजा पिछले 6 वर्षों से ड्रैगन तड़प रहा है। मामला ही कुछ ऐसा है कि चीन के मर्ज की चाबी पीएम मोदी के हाथों में आ गई है। हालत यह है कि भारत की अनुमति के बगैर चीन किसी भी देश के साथ खरीद-फरोख्त नहीं कर सकता। किसी भी देश में ऐसा करने के लिए उसे भारत से स्वीकृति लेनी होगी। लिहाजा भारत अब चीन को इस मामले में हर बार झटका देकर यूएनएससी में अपने खिलाफ लगाए जाने वाले उसके वीटो पॉवर का हिसाब पूरा कर रहा है। ऐसे में चीन भारत से मिन्नतें करने को मजबूर है। आइए जानते हैं कि पूरा मामला है क्या ?

दरअसल विश्व की सबसे बड़ी 5वीं अर्थव्यवस्था होने और दुनिया की चौथी बड़ी सेना होने के साथ मजबूत टेक्नोलॉजी के दम पर भारत का दावा अब यूएनएससी में बेहद मजबूत हो चुका है, मगर चीन भारत की राह का रोड़ा बन रहा है। यूएनएससी के 5 स्थाई सदस्य हैं, जिनमें अमेरिका, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और चीन का नाम शामिल है। इनमें से चीन को छोड़कर सभी सदस्य भारत को स्थाई सदस्यता दिए जाने के पक्ष में हैं, लेकिन चीन इस प्रस्ताव पर हर बार वीटो पॉवर लगाकर देश की उम्मीदों पर पानी फेर देता है। चीन के चलते ही भारत को यूएनएससी की स्थाई सदस्यता नहीं मिल पा रही है। जबकि भारत इसका प्रबल दावेदार है। यूएनएससी के पांचों सदस्यों के पास ही वीटो पॉवर है। किसी भी मामले में पांचों देशों में से यदि कोई एक भी असहमत हो तो वह वीटो पॉवर लगा देता है। ऐसी स्थिति में यह प्रस्ताव खारिज हो जाता है। चीन भारत के साथ वर्षों से यही करता आ रहा है। मगर अब वह भी भारत के एक ऐसे ही नए जाल में फंस गया है, जहां से निकलने के लिए ड्रैगन को कोई राह नहीं सूझ रही है। इसलिए ड्रैगन भारत के सामने घुटने टेकने को मजबूर है।

जानें चीन क्यों भारत के आगे हुआ मजबूर
दुनिया में मिसाइल टेक्नोलॉजी नियंत्रण और हस्तांतरण (एमटीसीआर) सबसे बड़ा ऐसा संगठन है, जो पूरे विश्व में प्रक्षेपास्त्र और मानव रहित विमान यानि ड्रोन से संबंधित प्रौद्योगिकी क्षमता रखता है। यह परमाणु मिसाइलों के प्रसार को रोकने और उस पर नियंत्रण रखने वाला अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन की अनुमति के बगैर कोई भी देश किसी भी दूसरे देश से मिसाइल, मिसाइल टेक्नोलॉजी, प्रक्षेपास्त्र, ड्रोन इत्यादि की खरीद या फरोख्त नहीं कर सकता। वर्तमान में इसमें अमेरिका, रूस, इटली, जापान, यूक्रेन, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, ब्रिटेन जैसे 35 देश शामिल हैं। भारत भी 27 जून 2016 को इस संगठन का सदस्य बन चुका है। इस संगठन की खासियत यह है कि यदि 35 से कोई भी एक देश आपत्ति लगा दे तो किसी 36वें देश को न तो इसमें शामिल किया जा सकता है और न ही किसी अन्य देश को दूसरे देश से मिसाइल, ड्रोन इत्यादि के खरीद-फरोख्त की अनुमति दी जा सकती है। इसके गैर सदस्य केवल 300 किमी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल की ही खरीद या बिक्री कर सकते हैं। चीन इसका सदस्य अभी तक नहीं बन पाया है। इसलिए वह परेशान है।

भारत की आपत्तियों से चीन नहीं बन पा रहा सदस्य
एमटीसीआर विशेषकर परमाणु युक्त मिसाइलों यानि बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रसार को रोकने और उसकी खरीद-फरोख्त पर नियंत्रण व निगरानी रखने वाली प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्था है। जो देश इसके सदस्य नहीं हैं, वह न तो किसी दूसरे देश से 300 किलोमीटर की दूरी से अधिक मारक क्षमता वाली परमाणु मिसाइल खरीद सकते हैं और न ही किसी को बेच सकते हैं। इसका सदस्य नहीं होने के नाते चीन अपनी मिसाइलों को पाकिस्तान समेत किसी दूसरे देश को न तो बेच सकता है और न ही उसे खरीद सकता है। इससे चीन का रक्षा व्यापार पिट गया है। चीन ने इसमें शामिल होने के लिए कई बार प्रयास किया। एक बार अमेरिका, रूस समेत सभी देश चीन को संगठन का सदस्य बनाने के लिए तैयार हो गए थे, लेकिन भारत ने अपनी आपत्ति दर्ज करा दी। इससे चीन इसका सदस्य नहीं बन पा रहा। चीन की हर कोशिश पर भारत आपत्ति कर देता है। नियम के मुताबिक 35 में से सभी देशों की सहमति के बाद ही किसी अन्य देश को इस संगठन में बतौर सदस्य शामिल किया जा सकता है। ऐसे में भारत के पास भी चीन के यूएनएससी में विरोध का बदला लेने का यह बड़ा शस्त्र हाथ आ गया है।

पीएम मोदी ने अथक प्रयास से दिलाई थी भारत को सदस्यता
भारत को एमटीसीआर का सदस्य बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 से ही इसके सदस्य देशों से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। अमेरिका से लेकर जापान, ब्रिटेन, रूस, ब्राजील, बुल्गारिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे सभी सदस्य देशों को उन्होंने भारत के पक्ष में किया। तब इस संगठन के 34 सदस्य थे। प्रधानमंत्री मोदी की छवि को देखते हुए 34 में से किसी भी देश ने भारत को सदस्य बनाने का विरोध नहीं किया। लिहाजा 27 जून 2016 को ही भारत इसका सदस्य बन गया। इसका फायदा यह है कि भारत अब दूसरे देशों से उन्नत मिसाइलें, ड्रोन इत्यादि खरीद सकता है और अपनी ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें दूसरे देशों को बेच भी पा रहा है। वहीं चीन को भारत ने इस संगठन का सदस्य बनने के लिए हमेशा के लिए रोक दिया है।  इससे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के सामने घुटने टेकने को मजबूर हैं।

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