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Hindi News भारत राष्ट्रीय Morbi Bridge collapse: गुजरात की उस नदी का इतिहास, जिसमें डूबने की वजह से हुई 135 लोगों की मौत, कैसे पड़ा 'मच्छु' नाम?

Morbi Bridge collapse: गुजरात की उस नदी का इतिहास, जिसमें डूबने की वजह से हुई 135 लोगों की मौत, कैसे पड़ा 'मच्छु' नाम?

Machchu River Bridge Collapse: गुजरात के मोरबी की मच्छु नदी जसदण की पहाड़ियों से निकलती है और 130 किलोमीटर बहकर कच्छ के रण में मालिया से मिलती है। जो केबल ब्रिज यहां टूटा है, वह इसी नदी के ऊपर बना हुआ था। जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है।

जसदण की पहाड़ियों से निकलती है मच्छु नदी- India TV Hindi Image Source : AP जसदण की पहाड़ियों से निकलती है मच्छु नदी

Machchu River History: गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बने केबल पुल के टूटने से जो हादसा हुआ है, उसे देश कभी नहीं भूल सकता। हर देशवासी को इससे मिला दर्द कम नहीं हो रहा। हादसे में 135 लोगों की मौत हो गई है और 100 के करीब लोग घायल हुए हैं। करीब 200 लोगों को बचा लिया गया था। जबकि कई लोगों के अब भी लापता होने की खबर है। गुजरात में आज राजकीय शोक है। सरकार की तरफ से किसी तरह का समारोह या मनोरंजन से जुड़ा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। वहीं गुजरात के सौराष्ट्र में हादसे की सबसे ज्यादा गूंज सुनाई दे रही है। ये पुल मच्छु नदी पर बना था। इस नदी की बात करें, तो यह गुजरात के ही राजकोट जिले में जसदण की पहाड़ियों से निकलती है और 130 किलोमीटर बहकर कच्छ के रण में मालिया से मिलती है।

नदी का नाम मच्छु कैसे पड़ा?

नदी के नाम की बात करें, तो ऐसा कहा जाता है कि इसके किनारे एक मगरमच्छ ने एक शख्स को जिंदा निगल लिया था। लेकिन वो शख्स भगवान शंकर की पूजा करते मगरमच्छ के पेट से बाहर आ गया। इस शख्स को महापुरुष कहा गया और इसके दूसरे जन्म को मत्स्येंद्रनाथ के नाम से जाना जाता है। साथ ही ये शख्स हठयोगी के रूप में विख्यात हुआ। मत्स्येंद्रनाथ को अपने बेटों से काफी लगाव था, उनके एक शिष्य ने उनके बेटों को नदी के किनारे मार डाला था। तब उनके दोनों बेटों ने नदी में मछली के रूप में अवतार लिया। जिसके बाद मच्छ और मत्स्य से ही नदी का नाम मच्छु रख दिया गया।

राजा को लगा था श्राप

एक पौराणिक कथा भी काफी मशहूर है। जिसमें कहा जाता है कि मोरबी के राजा जियाजी जडेडा को एक महिला से प्रेम हो गया था। लेकिन महिला इससे नाखुश थी। फिर राजा से परेशान होकर उसने नदी में छलांग लगाई और अपनी जान दे दी। लोक कथाओं में कहा जाता है कि इस महिला ने अपनी मौत से पहले राजा को श्राप दिया था। उसने राजा के वंश के अंत और शहर का विनाश होने का श्राप दिया था। राजा को यह श्राप लगा भी और उनके वंश का अंत हो गया। साल 1978 में यहां बांध बनाकर तैयार किया गया। जिसके बाद जियाजी के ही सातवें वंशज मयूरध्वज की यूरोप से लड़ाई हो गई थी और इसी दौरान उनकी मौत हो गई।

130 किलोमीटर है नदी की लंबाई

सौराष्ट्र से बहने वाली ये नदी राजकोट, मोरबी और सुरेंद्र नगर से होकर कच्छ के रण में जाकर खत्म होती है। नदी की लंबाई 130 किलोमीटर है। इस पर भौगोलिक स्थिति भी काफी उतार चढ़ाव वाली है। फिलहाल नदी पर दो मुख्य बांध हैं। जिनमें पहला वांकानेर शहर से 10 किलोमीटर दूर है। इसका निर्माण कार्य साल 1952 में शुरू हुआ था और 1965 में पूरा हुआ। इस काम में करीब 60 लाख रुपये खर्च हुए थे। इसके बाद दूसरा बांध बनाने का काम 1960 में शुरू किया गया। ये कार्य 1978 में पूरा हुआ। इसे बनाने में 3.25 करोड़ रुपये का खर्च आया था। हालांकि ये बांध 1979 में टूट गया था।

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