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Hindi News भारत राष्ट्रीय PM Modi address joint conference: अदालतों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल बढ़ावा देना चाहिए, जजों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन में बोले पीएम मोदी

PM Modi address joint conference: अदालतों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल बढ़ावा देना चाहिए, जजों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन में बोले पीएम मोदी

अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा बल्कि वे इससे अधिक जुड़ाव भी महसूस करेंगे।'

PM Modi in conference of judges and CMs- India TV Hindi Image Source : PTI PM Modi in conference of judges and CMs

PM Modi address joint conference : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट जजों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे आम नागरिकों का भरोसा बढ़ेगा और वे इससे अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संयुक्त सम्मेलन का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने कहा- ''हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा बल्कि वे इससे अधिक जुड़ाव भी महसूस करेंगे।''

पुराने कानूनों को निरस्त करने की अपील

प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से न्याय प्रदान करने को आसान बनाने के लिए पुराने कानूनों को निरस्त करने की भी अपील की। उन्होंने कहा, ''2015 में, हमने लगभग 1,800 कानूनों की पहचान की, जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से, केंद्र के ऐसे 1,450 कानूनों को समाप्त कर दिया गया। लेकिन, राज्यों ने केवल 75 ऐसे कानूनों को समाप्त किया है।'' 

न्याय व्यवस्था में तकनीकी पर जोर

भारत सरकार न्याय व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांसजेक्शन आम बात होने लगी है

न्यायपालिका की भूमिका संविधान के संरक्षक की-मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, तो एक ऐसी न्यायिक प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जहां न्याय आसानी से उपलब्ध हो, न्याय त्वरित और सभी के लिए हो। उन्होंने कहा, ''हमारे देश में, जहां न्यायपालिका की भूमिका संविधान के संरक्षक की है, वहीं विधायिका नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मेरा मानना ​है कि इन दोनों का संगम एक प्रभावी व समयबद्ध न्यायिक प्रणाली के लिए रोडमैप तैयार करेगा।'

ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों की भूमिका-जिम्मेदारियां निरंतर स्पष्ट हुई हैं-मोदी

आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आज़ादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों के ही भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ,देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है। 2047 में जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने न्याय व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएँ कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए।

कर्तव्य का निर्वहन करते समय हमें लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए: चीफ जस्टिस

वहीं इस सम्मेलन में चीफ जस्टिस एन.वी.रमन्ना ने कहा कि अपने कर्तव्य का पालन करते समय लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि कहा न्यायिक निर्देशों के बावजूद सरकारों द्वारा जानबूझकर निष्क्रियता दिखाना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।   चीफ जस्टिस ने कहा, ''संविधान तीनों अंगों के बीच शक्तियों के पृथक्करण का प्रावधान करता है तथा इनके बीच सामंजस्य से लोकतंत्र मजबूत होगा। अपने कर्तव्य का निर्वहन करते समय हमें लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए।'' चीफ जस्टिस ने जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब यह 'निजी हित याचिका' बन गई है और निजी मामलों को निपटाने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता है।

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