A
Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma's Blog | चाहे गांधी हो या राम : मनरेगा स्कीम में बदलाव जरूरी है

Rajat Sharma's Blog | चाहे गांधी हो या राम : मनरेगा स्कीम में बदलाव जरूरी है

किसी भी कल्याणकारी योजना को जांचने का पैमाना ये होना चाहिए कि योजना से कितने लोगों का भला हुआ? क्या वाकई में पैसा सही लोगों तक पहुंचा, क्या पैसे का सही इस्तेमाल हुआ।

Rajat Sharma Blog- India TV Hindi Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

महात्मा गांधी के नाम पर संसद में जमकर हंगामा हुआ। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में मनरेगा की जगह नई स्कीम वाला बिल पेश किया। मोदी सरकार ग्रामीण इलाकों में रोजगार गारंटी के लिए जो नई स्कीम लाई है उसका नाम है, विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण। संक्षिप्त में इसका नाम है, विकसित भारत -जी राम जी। पहले कांग्रेस की सरकार जो योजना लाई थी, उसका नाम था, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, संक्षिप्त में मनरेगा। नरेंद्र मोदी की सरकार ने योजना के नाम में महात्मा गांधी की जगह राम जी का नाम इस्तेमाल कर दिया। बस यही बात विपक्ष को बुरी लग गई। विपक्ष ने सरकार के इस बिल को राष्ट्रपिता का अपमान बता दिया। आरोप लगाया कि बीजेपी महात्मा गांधी से नफरत करती है, इसलिए अब बापू का अपमान कर रही है। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि महात्मा गांधी भी रामराज्य की बात करते थे। सरकार जी-राम-जी स्कीम लाकर बापू के सपने को ही पूरा कर रही है, इसलिए विपक्ष को महात्मा गांधी के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने की कोई जरूरत नहीं हैं।

विपक्ष के सासंद बिल का विरोध करने की पूरी तैयारी के साथ आए थे। जैसे ही शिवराज सिंह चौहान ने बिल पेश किया, तो हंगामा शुरू हो गया। विपक्ष के सांसद महात्मा गांधी की फोटो वाले पोस्टर लहराए जाने लगे, सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई। प्रियंका गांधी के नेतृत्व में विपक्ष के सांसदों ने जी-राम-जी योजना के विरोध में मार्च निकाला। संसद परिसर में बापू की प्रतिमा के सामने खड़े होकर नारे लगाए, कांग्रेस के कुछ नेता तो संसद के पुराने भवन में गए और छत पर खड़े होकर नार लगाए।

विपक्ष के विरोध का क्या है कारण

विपक्ष का पहला विरोध योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर है। दूसरी आपत्ति योजना के खर्च का शेयर राज्यों पर डालने को लेकर है। मनरेगा के तहत साल में सौ दिन रोजगार की गारंटी है, नई योजना के तहत सरकार 125 दिन के रोजगार की गारंटी दे रही है। मनरेगा के तहत खर्चे में नब्बे प्रतिशत बोझ केन्द्र सरकार उठाती थी, और राज्यों को सिर्फ दस प्रतिशत पैसा देना होता था। लेकिन जी-राम-जी स्कीम के तहत उत्तर पूर्व और हिमालयन राज्यों को छोड़कर बाकी राज्यों को चालीस प्रतिशत बोझ उठाना होगा। केन्द्र सरकार साठ परसेंट पैसा देगी। विपक्ष का कहना है कि इससे राज्यों पर बोझ पड़ेगा, राज्य पैसा नहीं दे पाएंगे और रोजगार गांरटी की स्कीम धीरे धीरे बंद हो जाएगी। अखिलेश ने कहा कि जी-राम-जी योजना राज्यों के लिए खतरनाक है, राज्यों के पास इतना पैसा नहीं है कि हजारों करोड़ रूपए इस योजना के लिए दे सकें।

जी-राम-जी योजना के कुछ और प्रावधानों पर भी विपक्ष को आपत्ति है। मनरेगा के तहत क्या काम होना है, कब होना है? इसका फैसला ग्राम प्रधान या सरपंच करते थे। लेकिन जी-राम-जी योजना के तहत किस ग्राम पंचायत को कितना पैसा मिलेगा, क्या काम होगा, कब होगा, इसका फैसला केंद्र सरकार करेगी। विरोधी दलों के नेता इसे पंचायती राज कानून के खिलाफ बता रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मनरेगा के तहत क्या काम हो रहा है, राज्य इसका ब्यौरा नहीं देते। मनरेगा में भ्रष्टाचार बहुत हो रहा था, लीकेज बहुत हो रहा था, खेती के काम के लिए मजदूरों की जब जरूरत होती है तब मजदूर नहीं मिलते थे, इसलिए वक्त के हिसाब से योजना को बदलने की जरूरत है।

किसी भी कल्याणकारी योजना को जांचने का पैमाना ये होना चाहिए कि योजना से कितने लोगों का भला हुआ, क्या वाकई में पैसा सही लोगों तक पहुंचा, क्या पैसे का सही इस्तेमाल हुआ। ये भी समझना चाहिए कि कल्याण करते करते कोई ऐसे side effect तो नहीं हुए जिससे किसी का नुकसान हुआ। मनरेगा को भी इसी आधार पर तोला जाना चाहिए। अब तक मनरेगा पर 11 लाख करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन क्या कोई बता सकता है कि 19 साल में मनरेगा के जरिए किन-किन योजनाओं पर काम हुआ? असल में ग्राम प्रधानों ने मनरेगा को अपनी मनमर्जी के मुताबिक मजदूरों से निजी काम कराने का जरिया बना लिया। मनरेगा की वजह से खेती के लिए मजदूर कम मिलने लगे। अब इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि योजना का नाम गांधी जी के नाम पर है या 'राम जी' के नाम पर? फर्क तो इस बात से पड़ना चाहिए कि स्कीम में जो बदलाव किए गए हैं, क्या उनसे जनता का ज्यादा फायदा होगा?

दिल्ली में जहरीली हवा : नीयत ठीक, नीति गलत

दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। हालांकि, तीन दिन तक गंभीर और खतरनाक कैटगरी में रहने के बाद मंगलवार सुबह AQI में थोड़ा सुधार हुआ। सुबह दिल्ली में AQI 377 था जबकि सोमवार को AQI 498 था। दिल्ली सरकार पॉल्यूशन को कम करने की तमाम कोशिशें कर रही हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसलिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिल्ली के लोगों से मांफी मांगी। सिरसा ने कहा कि सरकार कोशिश कर रही है लेकिन समस्या बहुत गंभीर है, इसलिए आठ-नौ महीने में इस पर काबू पाने में नाकाम रही। दिल्ली सरकार ने 18 दिसंबर से दूसरे राज्यों की सिर्फ BS-6 ग्रेड की गाड़ियों को ही दिल्ली में प्रवेश देने का फैसला किया है। दिल्ली में बुधवार से उन गाड़ियों को पेट्रोल, डीजल नहीं मिलेगा जिनके पास पॉल्यूशन प्रमाणपत्र नहीं होगा। मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि प्रदूषण की बीमारी आम आदमी पार्टी की सरकार से विरासत में मिली है, 12 साल पुरानी इस बीमारी को 9-10 महीनों में ठीक करना संभव नहीं है लेकिन फिर भी सरकार दिल्ली के लोगों को राहत देने की पूरी कोशिश कर रही है।

दिल्ली में लोग जहरीली हवा के कारण वाकई बेहद परेशान हैं। खांस-खांसकर लोगों का बुरा हाल है लेकिन ये समस्या न तो एक दिन में पैदा हुई और न ही रातों रात इसका कोई हल निकल सकता है। जोश-जोश में सिरसा ने प्रदूषण कम करने के बड़े-बड़े दावे तो कर दिए, हेडलाइन्स बना ली, पर सुधार नहीं हुआ। उनका Artificial Rain का प्रयास भी हवा-हवाई हो गया। नीयत ठीक थी लेकिन नीति गलत हो गई। इसीलिए सिरसा को जनता से माफी मांगनी पड़ी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 12 दिसंबर, 2025 का पूरा एपिसोड

Latest India News